आज (27 मई) ज्येष्ठ मास की अमावस्या है और शनि जयंती मनाई जा रही है। नौ ग्रहों में विशेष स्थान रखने वाले शनि देव को न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त है। वे हमारे कर्मों के अनुसार फल देने वाले देवता हैं। इस समय शनि देव मीन राशि में है। इस कारण कुंभ, मीन और मेष राशियों पर साढ़ेसाती चल रही है, जबकि सिंह और धनु राशियों पर ढय्या है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा बताते हैं कि शनि देव मकर और कुंभ राशियों के स्वामी हैं। इनके माता-पिता सूर्य और छाया हैं। शनि जयंती पर विशेष पूजन और व्रत करने से भक्तों को न सिर्फ शनि दोषों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में स्थिरता, प्रसन्नता, सफलता भी आती है। ज्येष्ठ अमावस्या पर करें ये शुभ काम जानिए शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाते हैं? शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा के पीछे दो प्रमुख धार्मिक कथाएं हैं: पहली मान्यता – जब रावण ने शनि देव को बंदी बना लिया था, तब हनुमान जी ने लंका दहन के समय शनि को मुक्त कराया था। उस समय शनि देव के शरीर पर गहरे घाव थे, जिन्हें हनुमान जी ने सरसों का तेल लगाकर शांत किया। इसके मान्यता के आधार पर शनि को तेल चढ़ाने की परंपरा प्रचलित हुई है। दूसरी मान्यता – एक बार शनि को अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया और उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा तो हनुमान जी ने उन्हें पराजित कर दिया। हनुमान जी के प्रहारों की वजह से शनिदेव को शारीरिक दर्द हो रहा था, उस समय हनुमान जी शनिदेव के शरीर पर तेल लगाया, जिससे शनिदेव का दर्द दूर हो गया। इस मान्यता की वजह से भी शनि को तेल चढ़ाने की परंपरा बनी।