सवाल- मैं आगरा का रहने वाला हूं। मैं और मेरी पत्नी दोनों कॉर्पोरेट जॉब करते हैं। मेरी 14 महीने की एक बेटी है, जो दिन में 10 घंटे अपनी नैनी के साथ रहती है। मेरी बेटी को अभी से मोबाइल की आदत लग गई है। वह बिना मोबाइल देखे कुछ भी खाती-पीती नहीं है। जन्म के समय तो वह बिल्कुल हेल्दी थी, लेकिन अभी डॉक्टर का कहना है कि डेवलपिंग स्टेज में उसकी आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है। हमें काफी चिंता हो रही है। ऐसे में अब हमें उसकी आंखों और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए क्या करना चाहिए। एक्सपर्ट: रिद्धि दोषी पटेल, चाइल्ड एंड पेरेंटिंग साइकोलॉजिस्ट, मुंबई जवाब- मैं आपकी परेशानी समझ सकती हूं। कॉर्पोरेट लाइफ में भागदौड़ इतनी होती है कि बच्चे पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता है। वहीं इस मोबाइल ने तो लोगों की नींद-चैन ही छीन ली है। आपकी 14 महीने की बच्ची को अभी से इसकी आदत लग गई है, ये थोड़ी चिंता की बात तो है। ऊपर से डॉक्टर भी आंखों पर असर पड़ने की बात कह रहे हैं तो ये चिंता और बढ़ गई होगी। बिल्कुल सही बात है, इस उम्र में बच्चों की आंखें और दिमाग बहुत नाजुक होते हैं। ऐसे में स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल नुकसानदायक हो सकता है। हालांकि ये चिंता केवल आपकी नहीं है। बहुत से पेरेंट्स इस समस्या से पीड़ित हैं। मार्च 2023 में नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, पिछले दो दशकों में 0-2 वर्ष की उम्र के बच्चों का स्क्रीन टाइम दोगुना हो गया है। इससे उनमें आंखों से जुड़ी समस्या, अनिद्रा, मोटापा, समेत कई फिजिकल और मेंटल प्रॉब्लम्स का खतरा बढ़ जाता है। वहीं सितंबर 2023 में ‘जर्नल ऑफ एशियन डेवलपमेंट स्टडीज’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, लंबे समय तक फोन देखने से बच्चों में व्यवहार संबंधी बदलाव होते हैं। ऐसे बच्चे समाज में जल्दी घुल-मिल नहीं पाते हैं। वे जल्दी बोलना नहीं सीख पाते हैं। वे अपनी बातों को सही ढंग से नहीं कह पाते हैं। उनका किसी भी काम में मन नहीं लगता है। इसके अलावा वे शारीरिक रूप से भी कमजोर होते हैं। इसे लेकर कुछ और स्टडी भी हुई हैं। सबसे पहले अपनी आदत में करें बदलाव अब सवाल ये उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है। क्या पेरेंट्स को ज्यादा स्क्रीन टाइम के नुकसान के बारे में पता नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हर पेरेंट्स को इस बात की जानकारी है कि स्क्रीन टाइम बच्चों को नुकसान पहुंचाता है। आपको भी पता है, तभी आप ये सवाल पूछ रहे हैं। लेकिन समस्या ये है कि जानकारी होने के बाद भी ऐसा हो रहा है। इसकी वजह है कि आप बहुत बिजी हैं। आपके पास बच्ची को देने के लिए समय नहीं है। बच्ची ज्यादा समय किसी और के साथ रहती है। ऐसे में ये बहुत जरूरी है कि बच्ची को पालने वाले वे लोग हों, जो उसके प्रति जिम्मेदारी और प्यार महसूस करते हैं। इसका रास्ता आपको ही निकालना होगा कि बच्ची के दादा-दादी या नाना-नानी कोई उसके पास मौजूद हों। या फिर बच्ची की नैनी इस बारे में बहुत समझदार, जिम्मेदार व केयरिंग हो। आप ये सुनिश्चित करें कि बच्ची को जो पाल रहा है, बच्ची जिसके साथ अपने बहुत सारे घंटे बिता रही है। उस व्यक्ति में एक जिम्मेदारी का भाव हो। इसके अलावा बच्चे अपने से बड़ों को देखकर ही सीखते हैं। वे मोबाइल इसलिए देखते हैं कि उनके पेरेंट्स खुद मोबाइल में बिजी रहते हैं। ऐसे में आपको अपना स्क्रीन टाइम कम करना होगा। जो काम आप खुद करेंगे और उसके लिए बच्ची को रोकेंगे तो उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसलिए सबसे पहले अपने आप में बदलाव लाएं। ऐसे छुड़ाएं बच्ची की मोबाइल की लत अगर आप एकदम से मोबाइल छीन लेंगे तो बच्ची चिड़चिड़ी हो जाएगी। इसलिए धीरे-धीरे उसका स्क्रीन टाइम कम करें। शुरुआत में खाना खिलाते समय थोड़ा सा दिखा दें, फिर धीरे-धीरे बिना मोबाइल के खिलाने की कोशिश करें। साथ ही अपनी नैनी को बताएं कि मोबाइल का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना है। उन्हें बच्ची को व्यस्त रखने के अन्य तरीकों के बारे में बताएं। जैसे कि गाने गाना, कहानियां सुनाना या खिलौनों से खेलना। बच्ची को दिन में कम-से-कम एक बार बाहर खुली हवा में ले जाएं। प्राकृतिक रोशनी आंखों की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। इसके अलावा बेटी की आंखों की नियमित जांच कराएं, ताकि किसी भी संभावित समस्या का शुरुआती फेज में पता चल सके। उसे उम्र के अनुसार फिजिकल एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करें। साथ ही उससे खूब बातें करें, कहानियां सुनाएं और उसके सवालों का जवाब दें। यह उसकी लैंग्वेज और कॉग्निटिव स्किल डेवलपमेंट में मदद करेगा। उसे पार्क में ले जाएं, पेड़-पौधे दिखाएं और सुरक्षित रूप से मिट्टी व पानी से खेलने दें। उसे ढेर सारा प्यार दें। एक सुरक्षित व प्यार भरा माहौल बच्चे के इमोशनल और मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरी है। कोशिश करें कि दिन में दिनभर में कम-से-कम एक बार आप तीनों एक साथ बैठकर भोजन करें और उस समय मोबाइल का इस्तेमाल न करें। कुल मिलाकर निराश न हों, कोई भी आदत बदलने में समय लगता है। इसलिए लगातार प्रयास करते रहें। इस प्रक्रिया में आप दोनों एक-दूसरे का साथ दें और मिलकर काम करें। यह एक चुनौती हो सकती है, लेकिन सही प्रयासों से इस पर काबू पाया जा सकता है। हालांकि कई बार पेरेंट्स टॉडलर पेरेंटिंग में कुछ सामान्य गलतियां करते हैं, जिससे बचना चाहिए। जैसेकि- बच्चे के लिए समय निकालना जरूरी जैसा कि आपने बताया कि दोनों कॉर्पोरेट जॉब करते हैं और बच्चे की देखभाल के लिए नैनी पर निर्भर हैं। ऐसे में आप दोनों को एक टीम के रूप में मिलकर काम करना चाहिए। इसके लिए अपने ऑफिस टाइम को मैनेज करें। एक ऐसा शेड्यूल बनाएं, जिसमें दोनों में से कोई एक बेटी के साथ मौजूद रहें। इससे बच्ची को नैनी के साथ कम समय बिताना पड़ेगा। साथ ही आप अपने मुताबिक उसकी परवरिश कर पाएंगे। अंत में यही कहूंगी कि जॉब के साथ-साथ बच्चे की पेरेंटिंग करना एक चुनौती भरा काम है। लेकिन इस उम्र में बच्ची को आपकी मौजूदगी और अटेंशन की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसलिए जितना हो सके अपने व्यस्त शेड्यूल से थोड़ा वक्त निकालकर उसके साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। यह न केवल उसकी आंखों और दिमाग के लिए अच्छा होगा, बल्कि इससे आपका रिश्ता भी मजबूत होगा। …………………….. पेरेंटिंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग- “मेरा 13 साल का बेटा पोर्न देख रहा था”: टीन एज बच्चे से इस बारे में कैसे करें बात, चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट के 10 सुझाव दरअसल हमारे समाज में ये सारे सवाल और मुद्दे अभी इतना ज्यादा टैबू बने हुए हैं कि मां-बाप खुद इसके साथ असहज होते हैं। ऐसे में बच्चे का पोर्न देखना पेरेंट्स को शॉक दे सकता है। लेकिन सबसे पहले आप अपने दिमाग से इस डर और शॉक को बाहर निकाल दीजिए क्योंकि ये बहुत स्वाभाविक है। पूरी खबर पढ़िए…