अमेरिका ने सीरिया इस्लामिक स्टेट और अलकायदा से जुड़े आतंकी ग्रुप्स के ठिकानों पर हमला किया। इसमें 37 आतंकी मारे गए हैं। अमेरिकी सेना ने रविवार को कहा कि उन्होंने सीरिया में दो अलग-अलग दिन ऑपरेशन को अंजाम दिया। US सेंट्रल कमांड के मुताबिक 16 सितंबर को मध्य सीरिया में ISIS के ट्रेनिंग सेंटर पर एयरस्ट्राइक की गई थी। इसमें 28 आतंकी मारे गए। इसके बाद अमेरिकी सेना ने 24 सितंबर को उत्तरी पश्चिमी सीरिया में हमला किया जिसमें अलकायदा ग्रुप के 9 आतंकी मारे गए। 24 सितंबर को मारे गए एक आतंकी की पहचान भी बताई गई है। अमेरिकी सेना के मुताबिक हमले में अलकायदा संगठन से जुड़ा हुर्रस अल-दीन का एक टॉप लीडर ‘अब्द-अल-रऊफ’ मारा गया है। वह सीरिया में मिलिट्री ऑपरेशन्स की देखरेख करता था। सीरिया एक मुस्लिम बहुल देश है जहां पर 74% सुन्नी और 10% शिया आबादी है। सीरिया में काफी कम आबादी होने के बाद भी एक शिया लीडर बशरअल-असद शासन कर रहे हैं। बशर को हटाने के लिए सीरिया में 2011 में संघर्ष छिड़ गया था। लेकिन वे आज भी सत्ता में कायम हैं। हालांकि इसके लिए देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। सीरिया में सुन्नी आबादी ज्यादा होने के बाद भी एक शिया नेता का कब्जा कैसे हुआ? पिछले 13 सालों से सीरिया में संघर्ष क्यों छिड़ा हुआ है ये हम आगे जानेंगे… वॉइस ऑफ अमेरिका के मुताबिक फरवरी 1966 में सीरिया में तख्तापलट हुआ। उस समय सीरिया के वायु सेना कमांडर हाफिज अस असद भी इसमें शामिल थे। तख्तापलट के बाद हाफिज को सीरिया का रक्षा मंत्री बनाया गया। चार साल बाद 1970 में हाफिज असद ने एक और तख्तापलट किया और राष्ट्रपति सलाह हदीद को हटाकर उनकी जगह ले ली। हाफिज असद ने बाथ पार्टी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों को खत्म कर दिया। उन्होंने अपने विरोधियों मरवा दिया और सत्ता में चुन-चुनकर शिया लोगों को जगह दी। मिडिल ईस्ट आई की रिपोर्ट के मुताबिक हाफिज असद ने रूस से बेहतर संबंध बनाए। हाफिज ने साल 1981 में इराक के खिलाफ जंग में ईरान का साथ दिया और ईरान से बेहतर संबंध कायम किया। साल 2000 में हाफिज असद की मौत हो गई जिसके बाद उनकी जगह उनके बेटे बशर अल-असद ने संभाली। अरब स्प्रिंग सीरिया में भी पहुंचा, राष्ट्रपति ने सख्ती से दबाया
साल 2011 में अरब देशों में सत्ता विरोधी लहर शुरू हो गई। मार्च 2011 में यह सीरिया तक पहुंच गया। बहुसंख्यक सुन्नी आबादी बशर अल असद को सत्ता से हटाने के लिए प्रदर्शन करने लगी। बशरअल असद ने सुरक्षा बलों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को दबाने का आदेश दिया, लेकिन प्रदर्शन नहीं रूके। सीरियाई सेना के कई जवान प्रदर्शनकारियों के साथ मिल गए और बसद को हटाने के लिए अभियान चलाने लगे। इसके नाराज होकर सीरिया के राष्ट्रपति ने सड़कों पर टैंक उतार दिए। अपने ही देश में लोगों पर बम गिराए और रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। सीरिया सरकार के खिलाफ बने संगठन को मिला सुन्नी देशों का साथ
राष्ट्रपति असद को हटाने के लिए सुन्नी लड़ाकों ने फ्री सीरियन आर्मी (FRA) का गठन किया। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक FRA को सऊदी अरब, कतर समेत कई सुन्नी देशों का साथ मिला। FRA को हमास जैसे आतंकी संगठन का भी समर्थन मिला। इन्होंने FRA को पैसे और हथियारों से मदद की। सीरिया से सुन्नी सरकार को हटाने के लिए इराक से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (ISI) के लड़ाके भी सीरिया पहुंचे। अब ISI का नाम बदल कर इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) कर दिया गया। अलग-अलग मोर्चे पर लड़ाई में घिर जाने के बाद सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हो गया। सीरियाई जंग में रूस-अमेरिका भी कूदे
अलजजीरा के मुताबिक कुछ साल बाद ISIS को हराने के नाम पर अमेरिका ने भी सीरियाई जंग में उतर गई। अमेरिका ने 2000 सैनिकों को सीरिया में तैनात कर दिया। अमेरिकी सेना ISIS के ठिकाने पर मिसाइल गिराने लगी। एक साथ कई मोर्चे पर घिर जाने और कई शहरों को खो देने के बाद बशर अल-असद ने रूस से मदद मांगी। रूस ने सीरिया में अपनी सेना उतार दी और वहां अपना बेस स्थापित किया। शिया देश होने की वजह से ईरान पहले से ही सीरियाई सरकार की मदद कर रहा था। ईरान के इशारे पर लेबनान से हिजबुल्लाह के लड़ाके भी बशर अल-असद का साथ देने उतर गए। सीरियाई में कई मोर्चे पर शुरू हुई लड़ाई, कुर्दों ने भी सेना बनाई
सीरिया में चारों तरफ से लड़ाई छिड़ी हुई थी। सीरिया के उत्तरी पूर्वी इलाके में कुर्द समुदाय की एक बड़ी आबादी रहती है। कुर्दों ने भी इस विरोध प्रदर्शन का फायदा उठाया। अमेरिका की शह पर 50 हजार कुर्द लड़ाकों ने मिलकर अक्टूबर 2015 में सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज (SDF) बनाई। SDF ने अलग देश ‘कुर्दिस्तान’ बनाने के लिए सरकार के खिलाफ गुरिल्ला वॉर शुरू कर दिया। तुर्की में भी कुर्द समुदाय की बड़ी आबादी रहती है। तुर्की सरकार नहीं चाहती थी कि कुर्द समुदाय मजबूत हो जिससे उनके देश में भी प्रदर्शन शुरू हो जाए। इसलिए तुर्की ने सीरिया में घुसकर SDF को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सीरिया में कई इलाकों पर विद्रोहियों का कब्जा
बीबीसी के मुताबिक सीरिया में रूस, अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, इजराइल, तुर्की जैसे देश अपने-अपने हित देखकर एक-दूसरे गुट का समर्थन कर रहे हैं। सीरिया में अभी भी ज्यादातर हिस्सों पर विद्रोहियों, जिहादियों और कुर्दों का कब्जा है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक सीरिया में 2011 के बाद से 3 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। करीब 70 लाख लोग सीरिया छोड़कर दूसरे देशों में पलायन कर गए हैं। अमेरिकी सेना अभी भी सीरिया में मौजूद क्यों है
अमेरिका ने 2019 में कहा था कि वो सीरिया से निकल जाएगा और कुर्द को अपना समर्थन नहीं देगा। BBC की रिपोर्ट के मुताबाक आज भी करीब 900 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। अमेरिका का कहना है कि वह ISIS के खिलाफ यहां लड़ाई लड़ रहा है। असद सरकार का आरोप है कि अमेरिकी सेना कुर्द फोर्स की मदद से उनके तेल ठिकानों पर कब्जा जमाए बैठी है और तेल बेचकर कमा रही है। हालांकि अमेरिका इससे इनकार करता है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया के पास लगभग 2.5 बिलियन बैरल तेल का भंडार है। बाकी अरब देशों की तुलना में ये काफी कम है लेकिन देश की इकोनॉमी में इसका अहम रोल है। सीरिया के कई तेल कुएं पर लोकल कुर्द फोर्स का कब्जा है।
साल 2011 में अरब देशों में सत्ता विरोधी लहर शुरू हो गई। मार्च 2011 में यह सीरिया तक पहुंच गया। बहुसंख्यक सुन्नी आबादी बशर अल असद को सत्ता से हटाने के लिए प्रदर्शन करने लगी। बशरअल असद ने सुरक्षा बलों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को दबाने का आदेश दिया, लेकिन प्रदर्शन नहीं रूके। सीरियाई सेना के कई जवान प्रदर्शनकारियों के साथ मिल गए और बसद को हटाने के लिए अभियान चलाने लगे। इसके नाराज होकर सीरिया के राष्ट्रपति ने सड़कों पर टैंक उतार दिए। अपने ही देश में लोगों पर बम गिराए और रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। सीरिया सरकार के खिलाफ बने संगठन को मिला सुन्नी देशों का साथ
राष्ट्रपति असद को हटाने के लिए सुन्नी लड़ाकों ने फ्री सीरियन आर्मी (FRA) का गठन किया। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक FRA को सऊदी अरब, कतर समेत कई सुन्नी देशों का साथ मिला। FRA को हमास जैसे आतंकी संगठन का भी समर्थन मिला। इन्होंने FRA को पैसे और हथियारों से मदद की। सीरिया से सुन्नी सरकार को हटाने के लिए इराक से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (ISI) के लड़ाके भी सीरिया पहुंचे। अब ISI का नाम बदल कर इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) कर दिया गया। अलग-अलग मोर्चे पर लड़ाई में घिर जाने के बाद सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हो गया। सीरियाई जंग में रूस-अमेरिका भी कूदे
अलजजीरा के मुताबिक कुछ साल बाद ISIS को हराने के नाम पर अमेरिका ने भी सीरियाई जंग में उतर गई। अमेरिका ने 2000 सैनिकों को सीरिया में तैनात कर दिया। अमेरिकी सेना ISIS के ठिकाने पर मिसाइल गिराने लगी। एक साथ कई मोर्चे पर घिर जाने और कई शहरों को खो देने के बाद बशर अल-असद ने रूस से मदद मांगी। रूस ने सीरिया में अपनी सेना उतार दी और वहां अपना बेस स्थापित किया। शिया देश होने की वजह से ईरान पहले से ही सीरियाई सरकार की मदद कर रहा था। ईरान के इशारे पर लेबनान से हिजबुल्लाह के लड़ाके भी बशर अल-असद का साथ देने उतर गए। सीरियाई में कई मोर्चे पर शुरू हुई लड़ाई, कुर्दों ने भी सेना बनाई
सीरिया में चारों तरफ से लड़ाई छिड़ी हुई थी। सीरिया के उत्तरी पूर्वी इलाके में कुर्द समुदाय की एक बड़ी आबादी रहती है। कुर्दों ने भी इस विरोध प्रदर्शन का फायदा उठाया। अमेरिका की शह पर 50 हजार कुर्द लड़ाकों ने मिलकर अक्टूबर 2015 में सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज (SDF) बनाई। SDF ने अलग देश ‘कुर्दिस्तान’ बनाने के लिए सरकार के खिलाफ गुरिल्ला वॉर शुरू कर दिया। तुर्की में भी कुर्द समुदाय की बड़ी आबादी रहती है। तुर्की सरकार नहीं चाहती थी कि कुर्द समुदाय मजबूत हो जिससे उनके देश में भी प्रदर्शन शुरू हो जाए। इसलिए तुर्की ने सीरिया में घुसकर SDF को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सीरिया में कई इलाकों पर विद्रोहियों का कब्जा
बीबीसी के मुताबिक सीरिया में रूस, अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, इजराइल, तुर्की जैसे देश अपने-अपने हित देखकर एक-दूसरे गुट का समर्थन कर रहे हैं। सीरिया में अभी भी ज्यादातर हिस्सों पर विद्रोहियों, जिहादियों और कुर्दों का कब्जा है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक सीरिया में 2011 के बाद से 3 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। करीब 70 लाख लोग सीरिया छोड़कर दूसरे देशों में पलायन कर गए हैं। अमेरिकी सेना अभी भी सीरिया में मौजूद क्यों है
अमेरिका ने 2019 में कहा था कि वो सीरिया से निकल जाएगा और कुर्द को अपना समर्थन नहीं देगा। BBC की रिपोर्ट के मुताबाक आज भी करीब 900 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। अमेरिका का कहना है कि वह ISIS के खिलाफ यहां लड़ाई लड़ रहा है। असद सरकार का आरोप है कि अमेरिकी सेना कुर्द फोर्स की मदद से उनके तेल ठिकानों पर कब्जा जमाए बैठी है और तेल बेचकर कमा रही है। हालांकि अमेरिका इससे इनकार करता है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया के पास लगभग 2.5 बिलियन बैरल तेल का भंडार है। बाकी अरब देशों की तुलना में ये काफी कम है लेकिन देश की इकोनॉमी में इसका अहम रोल है। सीरिया के कई तेल कुएं पर लोकल कुर्द फोर्स का कब्जा है।