असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल (SMCH) के बाहर पुलिस और कुकी समुदाय के लोगों के बीच विवाद हुआ, जिसके बाद पुलिस ने लोगों पर लाठीचार्ज किया। दरअसल, मणिपुर के जिरीबाम जिले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए 10 उग्रवादियों के परिजन उनके शव मांगने के लिए अस्पताल के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। असम पुलिस ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि शव मणिपुर पुलिस को सौंपे जाएंगे, लेकिन परिजन शव वहीं सौंपे जाने की मांग करते हुए पत्थरबाजी पर उतर आए। इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, जिसके बाद हालात काबू में आए और परिजन मणिपुर पुलिस से शव लेने पर सहमत हुए। इसके बाद शवों को मणिपुर के चुराचांदपुर एयरलिफ्ट किया गया। इससे पहले शुक्रवार को बराक नदी में तीन शव मिलने के बाद घाटी में विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है। शवों में एक आठ महीने का बच्चा भी शामिल था। 11 नवंबर को CRPF और पुलिस के साथ मुठभेड़ के दौरान सशस्त्र उग्रवादियों ने 6 लोगों को अगवा किया था। इनमें से तीन के शव मिलने के बाद तीन विधायकों के घरों में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं भी सामने आईं। पूरी घटना विस्तार से समझिए…
11 नवंबर की मुठभेड़ में मारे गए 10 कुकी उग्रवादियों के शव को 12 नवंबर को असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (SMCH) लाया गया। अगले दो दिनों में सभी शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया। जिरीबाम और असम के करीब 400 स्थानीय लोग 12 नवंबर से ही SMCH में डेरा डाले रहे। ये लोग शवों को उन्हें सौंपने की मांग पर अड़े थे। मृतकों के परिवार यहां नहीं आ सकते, इसलिए उन्हें सौंपने की मांग कर रहे थे। शनिवार (16 नवंबर) सुबह करीब 10 बजे, असम के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अतिरिक्त बल के साथ SMCH पहुंचे और शवों को मुर्दाघर से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई। पुलिस इन शवों को मणिपुर के चुराचांदपुर एयरलिफ्ट करने वाली थी। लेकिन, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने मुर्दाघर के सामने धरना दिया और पुलिस को अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि शव यहीं सौंपे जाएं। उन्होंने पुलिस को शव लेने से रोक दिया। पुलिस और अन्य सरकारी अधिकारियों ने कहा कि शव मणिपुर के चुराचांदपुर में सौंपे जाएंगे। इस पर एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘हम पिछले पांच दिन से यहां इंतजार कर रहे हैं, हम शवों को एयरलिफ्ट नहीं होने देंगे। उन्हें यहां सौंप दें, हम चले जाएंगे।’ सरकारी अधिकारियों और पुलिस ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन करीब एक घंटे की चर्चा के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने भी पुलिस को पीछे धकेला, जिसके चलते कुछ पुलिस अधिकारी जमीन पर गिर गए। इसके बाद अधिकारियों ने लाठीचार्ज किया। इससे भारी अफरातफरी मच गई और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। इससे पुलिस को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद असम के पुलिस महानिरीक्षक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार भुइयां और कछार के पुलिस अधीक्षक (एसपी) नुमाल महत्ता ने प्रदर्शनकारियों से बात की और उन्हें सहयोग करने के लिए 15 मिनट का समय दिया। इसके बाद असम पुलिस और मणिपुर पुलिस शव को असम राइफल ले गई, जहां से शवों को हेलीकॉप्टर से चुराचांदपुर ले जाया गया। कछार पुलिस अधीक्षक बोले- असम में ऐसी हिंसा की अनुमति नहीं देंगे
कछार के पुलिस अधीक्षक (एसपी) नुमाल महत्ता ने कहा, ‘यह मणिपुर नहीं है, यह असम है और हम इस तरह की हिंसा की अनुमति नहीं देंगे। शव मणिपुर से आए हैं और उन्हें मणिपुर के चुराचांदपुर भेजना हमारा कर्तव्य है। अगर आप अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते हैं, तो आप वहां जा सकते हैं। 11 नवंबर को मारे गए थे 10 कुकी उग्रवादी
मणिपुर के जिरिबाम जिले में 11 नवंबर को CRPF जवानों ने एनकाउंटर में 10 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया था। घटना दोपहर 2.30 बजे बोरोबेकेरा के जकुराडोर करोंग इलाके में हुई थी। यहां के पुलिस स्टेशन और CRPF चौकी पर इन उग्रवादियों ने हमला किया था। जवाबी कार्रवाई के दौरान CRPF का एक जवान घायल हो गया, उसे इलाज के लिए असम के सिलचर में ले जाया गया। ये इलाका असम सीमा से लगा हुआ है। पुलिस स्टेशन के नजदीक ही मणिपुर हिंसा में विस्थापित लोगों के लिए एक राहत शिविर है। यहां रह रहे लोग कुकी उग्रवादियों के निशाने पर हैं। शिविर पर पहले भी हमले हो चुके हैं। अधिकारियों के मुताबिक उग्रवादी सैनिकों जैसी वर्दी पहने थे। इनके पास से 3 AK राइफल, 4 SLR , 2 इंसास राइफल, एक RPG, 1 पंप एक्शन गन, बीपी हेलमेट और मैगजीन बरामद हुई हैं। न्याय की मांग को लेकर कुकी समुदाय का प्रदर्शन
कुकी समुदाय से जुड़े लोग मुठभेड़ में मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं। शुक्रवार को चुराचांदपुर में सैकड़ों लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया। उनकी मांग है कि मुठभेड़ की न्यायिक जांच हो। वहीं, तीन शव बरामद होने के बाद शनिवार को इंफाल घाटी के कई इलाकों में मैतेई समुदाय के सैकड़ों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। मुख्य रूप से महिलाओं ने इंफाल वेस्ट जिले के क्वाकिथेल और सगोलबंद टेरा इलाकों में टायर जलाकर सड़कें जाम कीं। ख्वैरामबंद बाजार में महिला व्यापारियों ने विरोध रैली निकाली, जबकि भारी सुरक्षा बल तैनात रहा। मणिपुर के सात जिलों में इंटरनेट बैन, पांच में कर्फ्यू
इंफाल में लोगों ने स्थानीय विधायकों के घरों पर धावा बोल दिया और उनसे इस्तीफे की मांग की। लोगों का कहना है कि ये नेता लोगों की जिंदगी और संपत्तियों की सुरक्षा करने में विफल रहे हैं। कीसामथामथोंग और खुरई विधानसभा क्षेत्रों सहित अन्य क्षेत्रों के विधायकों के घरों पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया। विरोध प्रदर्शन के चलते मणिपुर के सात जिलों में शनिवार शाम 5:15 बजे से दो दिन के लिए इंटरनेट बैन कर दिया गया है। ये जिले हैं- इंफाल ईस्ट, इंफाल वेस्ट, बिष्णुपुर, थौबल, काकचिंग, कांगपोकपी और चुराचांदपुर। वहीं, पांच घाटी जिलों में कर्फ्यू लगाया गया है। पूरी खबर यहां पढ़ें… मणिपुर में हिंसा को लगभग 500 दिन हुए
कुकी-मैतेई के बीच चल रही हिंसा को लगभग 500 दिन हो गए। इस दौरान 237 मौतें हुईं, 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए, 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। करीब 11 हजार FIR दर्ज की गईं और 500 लोगों को अरेस्ट किया गया। इस दौरान महिलाओं की न्यूड परेड, गैंगरेप, जिंदा जलाने और गला काटने जैसी घटनाएं हुईं। अब भी मणिपुर दो हिस्सों में बंटा है। पहाड़ी जिलों में कुकी हैं और मैदानी जिलों में मैतेई। दोनों के बीच सरहदें खिचीं हैं, जिन्हें पार करने का मतलब है मौत। स्कूल- मोबाइल इंटरनेट बंद किए गए। मणिपुर में अचानक बढ़ी हिंसक घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने 10 सितंबर को 5 दिन के लिए इंटरनेट पर बैन लगाया था। हालांकि 12 सितंबर को ब्रॉडबैंड इंटरनेट से बैन हटा लिया गया था। 4 पॉइंट्स में समझिए मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं। कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए। मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया। नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा। सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
11 नवंबर की मुठभेड़ में मारे गए 10 कुकी उग्रवादियों के शव को 12 नवंबर को असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (SMCH) लाया गया। अगले दो दिनों में सभी शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया। जिरीबाम और असम के करीब 400 स्थानीय लोग 12 नवंबर से ही SMCH में डेरा डाले रहे। ये लोग शवों को उन्हें सौंपने की मांग पर अड़े थे। मृतकों के परिवार यहां नहीं आ सकते, इसलिए उन्हें सौंपने की मांग कर रहे थे। शनिवार (16 नवंबर) सुबह करीब 10 बजे, असम के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अतिरिक्त बल के साथ SMCH पहुंचे और शवों को मुर्दाघर से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई। पुलिस इन शवों को मणिपुर के चुराचांदपुर एयरलिफ्ट करने वाली थी। लेकिन, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने मुर्दाघर के सामने धरना दिया और पुलिस को अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि शव यहीं सौंपे जाएं। उन्होंने पुलिस को शव लेने से रोक दिया। पुलिस और अन्य सरकारी अधिकारियों ने कहा कि शव मणिपुर के चुराचांदपुर में सौंपे जाएंगे। इस पर एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘हम पिछले पांच दिन से यहां इंतजार कर रहे हैं, हम शवों को एयरलिफ्ट नहीं होने देंगे। उन्हें यहां सौंप दें, हम चले जाएंगे।’ सरकारी अधिकारियों और पुलिस ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन करीब एक घंटे की चर्चा के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने भी पुलिस को पीछे धकेला, जिसके चलते कुछ पुलिस अधिकारी जमीन पर गिर गए। इसके बाद अधिकारियों ने लाठीचार्ज किया। इससे भारी अफरातफरी मच गई और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। इससे पुलिस को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद असम के पुलिस महानिरीक्षक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार भुइयां और कछार के पुलिस अधीक्षक (एसपी) नुमाल महत्ता ने प्रदर्शनकारियों से बात की और उन्हें सहयोग करने के लिए 15 मिनट का समय दिया। इसके बाद असम पुलिस और मणिपुर पुलिस शव को असम राइफल ले गई, जहां से शवों को हेलीकॉप्टर से चुराचांदपुर ले जाया गया। कछार पुलिस अधीक्षक बोले- असम में ऐसी हिंसा की अनुमति नहीं देंगे
कछार के पुलिस अधीक्षक (एसपी) नुमाल महत्ता ने कहा, ‘यह मणिपुर नहीं है, यह असम है और हम इस तरह की हिंसा की अनुमति नहीं देंगे। शव मणिपुर से आए हैं और उन्हें मणिपुर के चुराचांदपुर भेजना हमारा कर्तव्य है। अगर आप अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते हैं, तो आप वहां जा सकते हैं। 11 नवंबर को मारे गए थे 10 कुकी उग्रवादी
मणिपुर के जिरिबाम जिले में 11 नवंबर को CRPF जवानों ने एनकाउंटर में 10 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया था। घटना दोपहर 2.30 बजे बोरोबेकेरा के जकुराडोर करोंग इलाके में हुई थी। यहां के पुलिस स्टेशन और CRPF चौकी पर इन उग्रवादियों ने हमला किया था। जवाबी कार्रवाई के दौरान CRPF का एक जवान घायल हो गया, उसे इलाज के लिए असम के सिलचर में ले जाया गया। ये इलाका असम सीमा से लगा हुआ है। पुलिस स्टेशन के नजदीक ही मणिपुर हिंसा में विस्थापित लोगों के लिए एक राहत शिविर है। यहां रह रहे लोग कुकी उग्रवादियों के निशाने पर हैं। शिविर पर पहले भी हमले हो चुके हैं। अधिकारियों के मुताबिक उग्रवादी सैनिकों जैसी वर्दी पहने थे। इनके पास से 3 AK राइफल, 4 SLR , 2 इंसास राइफल, एक RPG, 1 पंप एक्शन गन, बीपी हेलमेट और मैगजीन बरामद हुई हैं। न्याय की मांग को लेकर कुकी समुदाय का प्रदर्शन
कुकी समुदाय से जुड़े लोग मुठभेड़ में मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं। शुक्रवार को चुराचांदपुर में सैकड़ों लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया। उनकी मांग है कि मुठभेड़ की न्यायिक जांच हो। वहीं, तीन शव बरामद होने के बाद शनिवार को इंफाल घाटी के कई इलाकों में मैतेई समुदाय के सैकड़ों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। मुख्य रूप से महिलाओं ने इंफाल वेस्ट जिले के क्वाकिथेल और सगोलबंद टेरा इलाकों में टायर जलाकर सड़कें जाम कीं। ख्वैरामबंद बाजार में महिला व्यापारियों ने विरोध रैली निकाली, जबकि भारी सुरक्षा बल तैनात रहा। मणिपुर के सात जिलों में इंटरनेट बैन, पांच में कर्फ्यू
इंफाल में लोगों ने स्थानीय विधायकों के घरों पर धावा बोल दिया और उनसे इस्तीफे की मांग की। लोगों का कहना है कि ये नेता लोगों की जिंदगी और संपत्तियों की सुरक्षा करने में विफल रहे हैं। कीसामथामथोंग और खुरई विधानसभा क्षेत्रों सहित अन्य क्षेत्रों के विधायकों के घरों पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया। विरोध प्रदर्शन के चलते मणिपुर के सात जिलों में शनिवार शाम 5:15 बजे से दो दिन के लिए इंटरनेट बैन कर दिया गया है। ये जिले हैं- इंफाल ईस्ट, इंफाल वेस्ट, बिष्णुपुर, थौबल, काकचिंग, कांगपोकपी और चुराचांदपुर। वहीं, पांच घाटी जिलों में कर्फ्यू लगाया गया है। पूरी खबर यहां पढ़ें… मणिपुर में हिंसा को लगभग 500 दिन हुए
कुकी-मैतेई के बीच चल रही हिंसा को लगभग 500 दिन हो गए। इस दौरान 237 मौतें हुईं, 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए, 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। करीब 11 हजार FIR दर्ज की गईं और 500 लोगों को अरेस्ट किया गया। इस दौरान महिलाओं की न्यूड परेड, गैंगरेप, जिंदा जलाने और गला काटने जैसी घटनाएं हुईं। अब भी मणिपुर दो हिस्सों में बंटा है। पहाड़ी जिलों में कुकी हैं और मैदानी जिलों में मैतेई। दोनों के बीच सरहदें खिचीं हैं, जिन्हें पार करने का मतलब है मौत। स्कूल- मोबाइल इंटरनेट बंद किए गए। मणिपुर में अचानक बढ़ी हिंसक घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने 10 सितंबर को 5 दिन के लिए इंटरनेट पर बैन लगाया था। हालांकि 12 सितंबर को ब्रॉडबैंड इंटरनेट से बैन हटा लिया गया था। 4 पॉइंट्स में समझिए मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं। कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए। मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया। नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा। सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।