अहंकार का अंत और भक्ति की विजय का पर्व:होलिका और प्रहलाद की कहानी की सीख- स्वार्थ, छल और अहंकार से सब कुछ बर्बाद हो जाता है

होली के संबंध में सबसे ज्यादा भक्त प्रहलाद और होलिका की कहानी प्रचलित है। ये कहानी हमें जीवन प्रबंधन के महत्वपूर्ण संदेश देती है, इस कहानी से सीख सकते हैं कि हमें किन कामों से बचना चाहिए और कौन से काम करने चाहिए। सतयुग में असुरराज हिरण्यकश्यपु ने कठोर तपस्या के बाद ब्रह्मा से वरदान पाने के बाद देवताओं और मनुष्यों को सताना शुरू कर दिया था। वरदान की वजह से वह अहंकारी हो गया था। उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। उसने प्रजा को अपनी पूजा करने के लिए कहना शुरू कर दिया। लेकिन हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति करता था। ये देखकर हिरण्यकश्यपु बहुत क्रोधित हुआ, उसने प्रहलाद को मारने के लिए कई षड्यंत्र रचे। हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को हाथी से कुचलवाने का प्रयास किया। ऊंचे पहाड़ से फेंका, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रहलाद की रक्षा की। जब असुरराज के सारे प्रयास असफल हो गए, तब हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद का अंत करे। होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकेगी। होलिका ने सोचा कि वह प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाएगी तो प्रहलाद जलकर मर जाएगा। होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन प्रहलाद भगवान विष्णु की कृपा से बच गया और होलिका जल गई। ये घटना अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक बन गई। प्रहलाद के बचने की खुशी में लोगों ने रंग-गुलाल उड़ाकर खुशियां मनाई थीं। तभी से होली पर रंग-गुलाल उड़ाने की परंपरा चली आ रही है। बाद में भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यपु का अंत किया। इस कहानी से सीखें 4 बातें अहंकार का अंत सुनिश्चित है – ये कहानी बताती है कि अहंकार का अंत तय है। इससे बचना चाहिए। सत्य की हमेशा जीत होती है – परिस्थितियां भले ही कितनी भी प्रतिकूल हों, लेकिन अंत में जीत सत्य की ही होती है। इसलिए हमें सत्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए। धैर्य और विश्वास न छोड़ें – भक्त प्रहलाद ने मुश्किल परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखा और भगवान विष्णु में अटूट विश्वास रखा। इन दो गुणों की वजह से प्रहलाद ने हर मुश्किल का सामना आसानी किया। हमें भी ये दो गुण अपने जीवन में उतार लेने चाहिए। स्वार्थ और छल का फल नकारात्मक ही होता है – होलिका ने छल का सहारा लिया, लेकिन अंत में वही आग में जल गई। जब हम किसी के साथ छल-कपट करते हैं, हमें ही इसका बुरा फल भोगना पड़ता है।