आम लोगों को अभी नहीं मिल पाएगी बिजली वितरण कंपनी का चुनाव करने की ताकत, सरकार ने योजना ठंडे बस्ते में डाली

बिजली वितरण के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा सुधार करने की योजना सरकार ने फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दी। यदि यह सुधार हो जाता तो आम आदमी को ऐसी ताकत मिल जाती, जिससे वह कम रेट पर बिजली देने वाली कंपनी का चुनाव कर सकता। इससे बिजली का रेट घटता और बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता सुधरती।

सरकार हालांकि अब बिजली सेक्टर में अगले चरण के सुधार के लिए डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना को लागू करने पर ध्यान लगा रही है। बिजली राज्य मंत्री आरके सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा कि वितरण सेगमेंट में कैरेज और कंटेंट ऑपरेशन को अलग करने से एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स एक साथ काम कर सकते, लेकिन अभी इसे ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है। अब अगले चरण के सुधार में ही इस पर ध्यान दिया जा सकेगा।

इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण अभी राज्य इस सुधार के लिए तैयार नहीं

सिंह ने बताया कि विभिन्न राज्य इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी के कारण इस सुधार के लिए फिलहाल तैयार नहीं है। इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में आम बिजली उपभोक्ताओं को कंपनी का चुनाव करने ताकत देने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए बिजली संशोधन विधेयक में डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर में कैरेज और कंटेंट ऑपरेशंस को अलग करने और एक ही एरिया में कई कंपनियों को काम करने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा गया था।

नए विधेयक में से छोटे उपभोक्ताओं को आपूर्ति कंपनी चुनने की ताकत देने वाला प्रावधान हटा दिया गया है

हालांकि कानून मंत्रालय अभी जिस नए बिजली संशोधन विधेयक पर विचार कर रहा है, उसमें एक मेगावाट से कम बिजली उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को आपूर्ति कंपनी चुनने की ताकत देने वाला प्रावधान हटा दिया गया है। एनर्जी सेक्टर के एक विश्लेषक ने कहा कि विधेयक में इस प्रावधान के शामिल करने से और इसके कानून बन जाने से वितरण कंपनियां काफी कम रेट पर बिजली की आपूर्ति करतीं।

अभी 1 मेगावाट से ज्यादा खपत करने वाले उपभोक्ता ही वितरण कंपनी का चुनाव कर सकते हैं

अभी ओपेन एक्सेस रेगुलेशन के तहत 1 मेगावाट से ज्यादा बिजली उपयोग करने वाले बड़े बिजली उपभोक्ता ही आपूर्तिकर्ता कंपनी का चुनाव कर सकता है। कानून में उचित संशोधन हो जाने से छोटे बिजली उपभोक्ताओं को भी यह ताकत मिल जाती।

चुनाव की ताकत मिलने से प्राइवेट डिस्कॉम के बढेंगे उपभोक्ता, सरकारी डिस्कॉम की हालत और खराब होगी

राज्य सरकारें एक तो डिस्कॉम की मोनोपॉली खत्म करने से भाग रही हैं, दूसरा, उनके पास इस सुधार के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है और तीसरे इसके लिए उनको कानून में व्यापक बदलाव भी करना होगा। राज्यों को डर है कि आम लोगों को वितरण कंपनी चुनने की ताकत मिल जाएगी, तो वे सरकारी डिस्कॉम की खराब सेवा लेना बंद कर देंगे और बेहतर सेवा देने वाली प्राइवेट कंपनियों के ग्राहक बन जाएंगे। इससे घाटे में चल रही डिस्कॉम्स की हाल और खराब हो जाएगी।

डीबीटी के लिए भी राज्यों को तैयार करने पर काफी मेहनत करनी पड़ी

सूत्रों ने कहा कि विधेयक में डीबीटी को शामिल करने के लिए भी राज्यों को मनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी। एक सूत्र ने कहा कि हो सकता है कि राज्यों को क्रॉस सब्सिडी सरचार्ज कम करने और बेहतर डीबीटी संरचना बनाने के लिए 5 साल का समय दिया जाए। उसके बाद शायद वितरण सेक्टर में प्रतियोगिता लागू किया जा सके।

अगस्त में शेयर और डेट बाजार में गत 41 महीने का सबसे बड़ा एफपीआई निवेश हुआ

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today

कानून मंत्रालय अभी जिस नए बिजली संशोधन विधेयक की समीक्षा कर रहा है, उसमें से वितरण सेगमेंट में कैरेज और कंटेंट ऑपरेशन को अलग करने का प्रस्ताव हटा दिया गया है