भारत में कोरोनावायरस महामारी का मुकाबला करने के मामले में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) काफी सफल रहा। यह बात भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक रिसर्च विभाग की ताजा ईकोरैप रिपोर्ट में कही गई है। एसबीआई के ग्रुप चीफ इकॉनोमिक एडवायर डॉक्टर सौम्या कांति घोष द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के बाद उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों के सामने तीन बड़ी चुनौतियां (पॉलिसी ट्र्राइलेमा) रही हैं। ये हैं मौनेटरी इंडिपेंडेंस, एक्सचेंज रेट स्टैबिलिटी और फाइनेंशियल ओपननेस।
ईकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रेशन के कारण विकासशील देश सीधे फाइनेंशियल मार्केट के झटकों की जद में आ गए हैं। ऐसे में कई बार पूंजी का प्रवाह अचानक रुक जाता है। भारत को टैपर टैंट्रम, 2018 और 2020 में इन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। इसलिए इन तीनों चुनौतियों के अलावा एक बेहद महत्पपूर्ण चौथी चुनौती (पॉलिसी क्वाड्रिलेमा) भी है, वह है फाइनेंशियल स्टैबिलिटी (वित्तीय स्थिरता) की चुनौती।
वित्तीय स्थिरता पर रहा है आरबीआई का ध्यान
हाल में भारतीय रिजर्व बैंक का वित्तीय स्थिरता पर काफी ध्यान रहा है। इसका संकेत इस बात से मिलता है कि उभरते बाजारों में वित्तीय स्थिरता को बनाए रखते हुए वित्तीय खुलेपन की दिशा में आगे बढ़ने से फॉरेक्स रिजर्व में बढ़ोतरी होती है। चालू कारोबारी साल में भारत का अंतरराष्ट्र्रीय रिजर्व जीडीपी के 17.7 फीसदी से बढ़कर कम से कम 19.6 फीसदी पर पहुंच गया है। यह फॉरेक्स रिजर्व में 63.8 अरब डॉलर के उछाल को दर्शाता है।
जून तिमाही में आरबीआई की मौद्रिक स्वायत्तता बढ़ी
एसबीआई ईकोरैप के मुताबिक भारत में कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत होने और लॉकडाउन लगाए जाने के बाद इस साल की जनवरी-मार्च तिमाही में आरबीआई की मौद्रिक स्वायत्तता घटकर 1997 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गई थी। हालांकि अप्रैल-जून तिमाही में मौद्रिक स्वायत्तता में काफी सुधार हुआ। भारत के बाजार में फिर से एक्सचेंज रेट स्टैबिलिटी (ईआरएस) दिखने लगी।
एक्सचेंज रेट स्टैबिलिटी और फाइनेंशियल ओपननेस इंडेक्स में भी सुधार
ऐतिहासिक रुझान बताते हैं कि भारत में लंबे समय तक मौद्रिक स्वायत्तता घटने से खुदरा महंगाई दर में काफी उतार-चढ़ाव आता है। कारोबारी साल 2020 में खुदरा महंगाई की दर 3 फीसदी से 7.6 के दायरे में रही। रिपोर्ट के मुताबिक एक्सचेंज रेट स्टैबिलिटी आौर फाइनेंशियल ओपननेस इंडेक्स में भी मार्च तिमाही में गिरावट आई थी, लेकिन जून तिमाही में यह काफी बेहतर हालत में लौट आया।
मई के बाद से वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में सफल रहा है आरबीआई
रिपोर्ट में महामारी के दौरान आरबीआई के प्रदर्शन की सराहना करते हुए कहा गया है कि बढ़ते फाइनेंशियल ओपननेस के दौरान एक्सचेंज रेट को स्थिर बनाए रखने में आरबीआई का प्रदर्शन अन्य देशों से खराब नहीं रहा, जबकि इस दौरान उसने अपनी मौद्रिक स्वायत्तता और वित्तीय स्थिरता को भी बढ़ाया। आरबीआई मई के बाद से बाजार में वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में सफल रहा है। ये सब यह बताते हैं कि चारों चुनौतियों से निपटने में भारत का प्रदर्शन सराहनीय रहा है। आरबीआई ने डायरेक्ट पर्चेज आौर स्वैप ट्रांजेक्शन के जरिये रिजर्व का स्तर बढ़ाया है।
एक्सचेंज रेट स्टैबिलिटी से निर्यात प्रभावित होने का खतरा नहीं
एक्सचेंज रेट स्टैबिलिटी को लेकर हालांकि यह आशंका जताई जाती रही है कि डॉलर के मुकाबले रुपए में मजबूती आने से निर्यात सेक्टर को नुकसान पहुंच सकता है। लेकिन ऐसा देखा गया है कि आरबीआई जितनी ताकत से रुपए में गिरावट को रोकता है, उससे कहीं ज्यादा ताकत से रुपए में मजबूती को रोकता है।
खुदरा महंगाई में भी ज्यादा बढ़ोतरी का खतरा नहीं
रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदरा महंगाई बढ़ने की भी ज्यादा संभावना नहीं है। क्योंकि महामारी से जुड़ी अनिश्चितता के कारण लोक पैसे की को बैंक में जमा रखने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। इसलिए बाजार में ज्यादा नकदी बनाए रखने की आरबीआई की नीति का ज्यादा फायदेमंद दिख रही है।
भारत को चुनना है कि उसे किस तरह की अर्थव्यवस्था चाहिए – टोयोटा वाली या पकोड़ा वाली