इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को:सुबह देवी-देवताओं की करें पूजा, दोपहर में पितरों से श्राद्ध और शाम को तुलसी के पास जलाएं दीपक

शनिवार, 28 सितंबर पूजा-पाठ के नजरिए से बहुत खास रहेगा, क्योंकि इस दिन पितृ पक्ष, एकादशी और शनिवार का शुभ योग बन रहा है। इस योग में देवी-देवताओं की पूजा के बाद पितरों के लिए धूप-ध्यान जरूर करें। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम इंदिरा है, ये व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि एकादशी व्रत से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और अटके कामों में सफलता मिलती है। इस दिन सुबह, दोपहर और शाम को खास धर्म-कर्म करेंगे तो अक्षय पुण्य मिल सकता है। जानिए 28 सितंबर को कौन-कौन से शुभ काम कर सकते हैं… दिन की शुरुआत सूर्य को जल चढ़ाकर करें। इसके बाद तुलसी को जल चढ़ाएं। घर के मंदिर में भगवान गणेश, विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती और बाल गोपाल का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए पंचामृत का भी इस्तेमाल करें। पंचामृत दूध, दही, घी, मिश्री और शहद मिलाकर बनाना चाहिए। पंचामृत के बाद शुद्ध से अभिषेक करें। इसके बाद भगवान का हार-फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें। मिठाई का भोग लगाएं। विष्णु-लक्ष्मी और बाल गोपाल को तुलसी के साथ भोग लगाएं। शिव-पार्वती और गणेश जी को दूर्वा-बिल्व पत्र के साथ भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं और आरती करें। पूजा में श्री गणेशाय नम:, ऊँ नम: शिवाय, ऊँ गौर्ये नम:, ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय, ऊँ श्री महालक्ष्मयै नम:, कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें। दोपहर में करें पितरों के लिए श्राद्ध सुबह देवी-देवताओं की पूजा के बाद दोपहर में करीब 12 बजे पितरों के लिए धूप-ध्यान करें। पितरों के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण दोपहर में ही करना चाहिए। इसके लिए गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं, कंडे के अंगारों पर गुड़-घी डालें। आप चाहें तो खीर-पुड़ी भी अर्पित कर सकते हैं। हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को चढ़ाएं। शाम को तुलसी के पास जलाएं दीपक तुलसी को विष्णु प्रिया कहा जाता है यानी भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है। इसी वजह से विष्णु जी और उनके अवतारों को तुलसी के बिना भोग नहीं लगाया जाता है। एकादशी पर विष्णु जी के साथ ही तुलसी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। शाम को सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें। ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श न करें। दूर से ही पूजा और परिक्रमा करें।