सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (16 मई) को इस्कॉन बेंगलुरु और इस्कॉन मुंबई के बीच लंबे समय से चले आ रहे कानूनी विवाद में अपना फैसला सुना दिया है। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका के नेतृत्व वाली पीठ ने इस्कॉन बेंगलुरु के पक्ष में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि बेंगलुरु स्थित इस्कॉन मंदिर एक स्वतंत्र इकाई है और ये कर्नाटक में पंजीकृत इस्कॉन सोसाइटी, बेंगलुरु की संपत्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बेंगलुरु का यह मंदिर इस्कॉन सोसाइटी, मुंबई के अधीन है। इस निर्णय के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया है कि बेंगलुरु की संस्था, जो वर्षों से मंदिर का संचालन कर रही है, कानूनी रूप से स्वतंत्र है। इसका संचालन मुंबई इस्कॉन से जुड़ा नहीं है। क्या था मामला? मालिकाना हक को लेकर विवाद: इस्कॉन बेंगलुरु और इस्कॉन मुंबई के बीच बेंगलुरु स्थित हरे कृष्ण मंदिर और उससे जुड़े शैक्षणिक संस्थान के मालिकाना हक को लेकर विवाद था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस्कॉन मुंबई के पक्ष में फैसला दिया, जिससे बेंगलुरु इस्कॉन को आपत्ति हुई। सुप्रीम कोर्ट में अपील: हाईकोर्ट के 23 मई 2011 के फैसले के खिलाफ इस्कॉन बेंगलुरु ने 2 जून 2011 को सुप्रीम कोर्ट में अपील की। करीब 14 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब इस विवाद पर फैसला सुनाया है। इस्कॉन बेंगलुरु की ओर से वकील के. दास ने पैरवी की। स्थानीय अदालत बनाम हाईकोर्ट: शुरुआत में बेंगलुरु की स्थानीय अदालत ने इस्कॉन बेंगलुरु के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन हाईकोर्ट में मामला पलट गया और इस्कॉन मुंबई को नियंत्रण दे दिया गया। एक ही संगठन के दो मंदिर आपस में आमने-सामने थे, जबकि उनका आध्यात्मिक उद्देश्य एक जैसा है। इस्कॉन मुंबई का दावा – इस्कॉन बेंगलुरु का दावा था कि वह एक स्वतंत्र रूप से रजिस्टर्ड संस्था है और दशकों से मंदिर का संचालन कर रही है। वहीं इस्कॉन मुंबई का कहना था कि बेंगलुरु इकाई उनके अधीन संस्था है, इसलिए मंदिर पर उनका हक बनता है।