पेरिस में हुए ओलिंपिक खेलों के मेडल का रंग पांच महीने में ही उतरने लगा है। भारत की शूटर मनु भाकर सहित दुनिया के 100 से ज्यादा खिलाड़ियों ने मेडल का रंग उतरने की शिकायत की है। इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी खिलाड़ियों को मेडल बदलकर देने को भी तैयार है, लेकिन मध्यप्रदेश के एक खिलाड़ी ने अपने मेडल को महज 25 रुपए में चमका लिया है। ऐसा किया है सीहोर के रहने वाले कपिल परमार ने। कपिल ने जूडो पैरालिंपिक में हिस्सा लेते हुए ब्रॉन्ज मेडल जीता था। कपिल का कहना है, ‘वक्त के साथ इंसान का रंग भी उतर जाता है, ये तो मेडल ही है। मेरे भी मेडल का रंग उतरा है। उसे चमका लिया है। दूसरे खिलाड़ियों की तरह फ्रांस नहीं भेजूंगा। मैंने जीवन में काफी संघर्ष किया है, अब मेडल को एक दिन के लिए भी दूर नहीं करूंगा।’ हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कपिल को उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया है। वे 14 इंटरनेशनल मेडल जीत चुके हैं। हालांकि, उनके लिए ये उपलब्धियां बेहद मुश्किल थीं। एक हादसे के बाद हर नए दिन के साथ कपिल की आंखों की रोशनी मद्धम होती जा रही है। भारी आर्थिक तंगी के बीच गुजरे बचपन की यादें उन्हें कल की ही बात लगती हैं। क्या है, कपिल की कहानी और मेडल का रंग फीका पड़ने पर भी उसे अपने से दूर भेजकर बदलवाना क्यों नहीं चाहते हैं, पढ़िए रिपोर्ट… कपिल की कहानी, उनकी ही जुबानी…
मैं मध्यप्रदेश के सीहोर का रहने वाला हूं। 24 साल का हूं। 9 साल तक मेरी जिंदगी भी सामान्य बच्चों की तरह थी। 2009 में खेत में पानी का पंप चालू करने गया था। वहां की जमीन पर पानी फैला हुआ था। मैं अपनी मस्ती में दौड़ता-दौड़ता गया। जैसे ही पंप चालू करने के लिए स्विच दबाया तो जाेर से ब्लास्ट हुआ। मेरी अंगुलियां स्विच से चिपक गईं। पैर की अंगुलियां जल गईं। सिर में गहरे घाव हो गए। मैं तड़पकर बेहोश हो गया। 6 महीने कोमा में, 2 साल अस्पताल में रहना पड़ा
अस्पताल में आंख खुली तो मां ने बताया- डॉक्टर्स कह रहे हैं कि तुम्हारा पूरा खून काला पड़ गया है। बचने की गुंजाइश न के बराबर है। हर महीने पूरे शरीर का खून बदलेगा। मैं 6 महीने तक कोमा में रहा। मेरी मां बस से रोज सीहोर से भोपाल आती थी। पापा सुबह खाना लेकर आते थे, शाम को मां साथ रुकती थी। 2 साल तक अस्पताल में भर्ती रहा। आर्मी भर्ती रैली में पता चला कि आंखों में समस्या है
मैं क्लास में आगे की बैंच पर बैठता था क्योंकि पीछे से बोर्ड पर लिखा साफ दिखता नहीं था। एक बार सीहोर में आर्मी भर्ती रैली हुई थी। इसकी दौड़ में टॉप किया था। फिजिकल में पास हो गया था लेकिन मेडिकल चेकअप में आंखों की समस्या बताकर निकाल दिया। तब मैंने आंखों की जांच कराई तो डॉक्टर ने बताया कि आपकी आंख की नस में समस्या है। धीरे-धीरे आंखों की रोशनी घटती जाएगी। मैं पिछले 3 साल में जापान, लंदन, जमर्नी के डॉक्टर्स को दिखा चुका हूं, पर कोई सोल्यूशन नहीं निकला है। 7 साल पहले 80 परसेंट विजिबलिटी थी, आज 80 प्रतिशत आंखें खराब हो चुकी हैं। अब कहीं भी चलता हुआ टकरा जाता हूं। पापा पहलवानी करते थे, मैंने जूडो खेलने का मन बनाया
जब मैं ठीक होकर घर आया तो डॉक्टर्स ने कहा- इसमें प्रोटीन, कैल्शियम की बहुत कमी है। मेरे शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि मैं अपने स्कूल के बस्ते का वजन भी उठा पाऊं। चलते-चलते चक्कर आ जाते थे। कभी तो ऐसी स्थिति हो जाती थी कि भाई उठाकर घर लेकर आता था। तब डॉक्टर ने डाइट प्लान बनाया। फिजिकल स्ट्रेंथ के लिए रनिंग और एक्सरसाइज करने के लिए कहा। मुझे इसमें मजा आने लगा। पापा कभी पहलवानी करते थे। हादसे से पहले मैं भी कुश्ती करता था तो जूडो खेल खेलने का मन बनाया। केले खाने के पैसे नहीं थे, लोग कहते थे-काजू, बादाम खाओ
मैं प्रैक्टिस करने के लिए जब सीहोर से भोपाल जाता था तो बस का किराया बचाने के लिए लिफ्ट लेकर जाता था। 7-8 साल रोज 50 किमी भोपाल जाना और 50 किमी वापस आने का सफर मैंने लिफ्ट लेकर किया। क्योंकि दोनों ओर का किराया 100 रुपए लगता था जबकि घर की इनकम ही 300-400 रुपए थी। मैं खुद 100 रुपए मांगने में घबराता था। लोग ताने मारते थे कि क्या कर रहे हो? मेहनत करते हो लेकिन खाया भी करो। हमारे पास गांव में हाइवे से सटा एक एकड़ का खेत था। यह खेत पूरे घर की आजीविका का बहुत बड़ा जरिया था। 2012 में मेरी दीदी की शादी तय हो गई थी। उससे पहले उनको स्वाइन फ्लू हो गया था। उनका बहुत लंबा इलाज चला। इसमें शादी के लिए बचाया सारा पैसा खत्म हो गया। शादी करने के लिए खेत को सिर्फ 5 लाख रुपए में गिरवी रखना पड़ा। हम तय समय में पैसा नहीं लौटा पाए तो वो जमीन हमारे हाथ से चली गई। कभी मिन्नतें कीं तो कभी हताशा में वीडियो बनाए, तब मदद मिली
2018 में सीनियर नेशनल जूडो में गोल्ड मेडल जीता। 2019 कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए लंदन जाने 1.20 लाख रुपए नहीं थे। तब सरकारों के सामने मिन्नतें करने के बाद मैं लंदन जा पाया था। गोल्ड भी जीता। मैंने चंदा मांगकर टूर्नामेंट खेले हैं और देश के लिए मेडल जीते हैं। कोविड के बाद 2021 में मुझे एक इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए लंदन जाना था। उसके लिए 2.5 लाख रुपए नहीं थे। तब मैं इतना हताश हो गया था कि एक वीडियाे बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करना पड़ा। इसमें मैंने कहा था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडलिस्ट हूं, लेकिन लंदन जाने के लिए 2.5 लाख रुपए नहीं हैं। उसके बाद लोगों ने कमेंट कर मुझसे क्यूआर कोड मांगा। सीहोर के कलेक्टर, एसपी, समाज के लोग आगे आए। आधे घंटे में 5 लाख का चंदा मुझे मिला था। उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बर्मिंघम गेम्स में गोल्ड जीता। एशियन गेम्स में गोल्ड के बाद 50 लाख, पैरालिंपिक में मेडल के बाद मप्र सरकार ने 1 करोड़ रुपए देने की घोषणा की। पैरालिंपिक मेडल और अर्जुन अवाॅर्ड भगवान से मिलने जैसा
मैं मिडिल क्लास परिवार से आता हूं। पापा टैक्सी ड्राइवर थे, उससे पहले वे हम्माली का काम करते थे। तब एक बोरा ट्रक में उठाकर रखने के 2 रुपए मिलते थे। इस तरह पूरे दिन में कुछ ही रुपए कमा पाते थे। मेरी मां दूसरों के घरों में मजदूरी करती थी। इन सबके बाद हमारा घर चलता था। अब जब अपने आपको वर्ल्ड नंबर वन जूडो प्लेयर, पहले ही ओलंपिक में मेडल जीतते, अर्जुन अवार्ड मिलते हुए देखता हूं तो ऐसा लगता है कि जैसे भगवान से मिल लिया। अब लोग पहचानने लगे हैं, बड़े ब्रांड्स मेरे स्पॉन्सर हैं
ओलिंपिक मेडल के बाद दूसरा जीवन मिला है। लोग पहचानने लगे हैं। किसी खिलाड़ी को कोई हेल्प चाहिए होती है तो मेरे एक फोन पर काम हो जाता है। अर्जुन अवाॅर्ड मिलने के बाद दिल्ली से भोपाल की फ्लाइट लेट हाे गई थी। तब वहां मप्र के कई नेता मिले। सब मुझे पहचान गए। गले लगे, बधाई दी। मेडल जीतने के बाद मोदी जी ने बुलाया। रिलायंस फाउंडेशन का सदस्य हूं। बड़े ब्रांड्स मेरे स्पॉन्सर हैं। कई ऐड कर चुका हूं। ये पहचान मुझे मेरे खेल, मेरी मेहनत और माता- पिता ने दिए हैं। माता-पिता के लिए जीतूंगा 2028 का पैरालिंपिक गोल्ड
अभी मेरा लक्ष्य 2028 पैरालिंपिक गोल्ड मेडल जीतना है। माता-पिता ने मेरे लिए बहुत संघर्ष किया है, उनको सम्मान देने के लिए पैरालिंपिक गोल्ड जितना ही होगा। जितना हो सके, पैरा प्लेयर्स को सपोर्ट करता हूं। खेल में उनकी जिस तरह मदद कर सकता हूं, मदद करने की कोशिश करता हूं। मेरी हिम्मत और हौसले का राज मेरे माता-पिता हैं। पिता रोज 200 बोरियां ट्रक में भरकर जब शाम को थके हाल घर आते थे तो उनकी हालत बहुत खराब होती थी, उनके घुटने में बहुत दर्द होता था। मैं उनके हाथ-पैरोंं की मालिश करता था। उनके घुटने पूरे खराब हो चुके हैं। मेरे इलाज के वक्त मां ने मेरे लिए अपनी जान झोंक दी। वे मुझे यमराज के घर से खींच लाईं। उन्होंने कभी हार नहीं मानी तो मैं कैसे हार सकता हूं? ये दोनों ही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। साथ ही सीहोर के पनीर फैक्ट्री वाले किशन मोदी ने मेरी बहुत मदद की। जब भी पैसों की कमी आई, उन्होंने सहारा दिया। उन्होंने मेरे जैसे कई युवाओं के टैलेंट को मरने से बचाया है। कई टैलेंटेड प्लेयर गार्ड की नौकरी कर रहे, चाय बेच रहे
मैंने हर कदम पर अपने आपको प्रूफ किया है लेकिन मेरे जैसे कई खिलाड़ी हैं, जो अभी गंभीर स्थिति में हैं। उनका टैलेंट धीरे-धीरे मर रहा है। कई विक्रम अवार्डी और इंटरनेशनल प्लेयर चाय बेच रहे हैं। वाशरूम के बाहर गार्ड की ड्यूटी कर रहे हैं। मैंने खुद 6-6 सेकंड में फाइट्स जीती हैं। ये वर्ल्ड रिकाॅर्ड रहा है। एक साल तक वर्ल्ड नंबर वन रहा। देश को 8 गोल्ड, 2 सिल्वर मिलाकर 14 मेडल दिए हैं। इनमें से 10 टूर्नामेंट में जाने के लिए लोगों से पैसे उधार लिए थे यानी 10 मेडल जीतने के बाद देश को मेरी काबिलियत का अहसास हुआ। ये सब देखकर दु:ख होता है। मेडल का रंग उतरता देखा तो बुरा लगा
मैं जानता हूं कि वक्त के साथ इंसान का रंग फीका पड़ जाता है, ये तो फिर भी पैरालिंपिक का ब्रॉन्ज मेडल है। दुनिया के 100 से ज्यादा खिलाड़ी मेडल का रंग उतरने की शिकायत इंटरनेशल ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) से कर चुके हैं। आईओसी ने भी कह दिया है कि मेडल बदल देंगे, लेकिन मैंने शिकायत नहीं की। उसे 25 रुपए में ठीक करवा लिया। कौन मेडल को फ्रांस भेजे और ठीक होकर आने का इंतजार करे। इतने संघर्ष से मिले मेडल को मैं एक दिन के लिए भी खुद से दूर नहीं कर सकता। भोपाल की मोती मस्जिद के बाहर एक बाबा छप्पर में बाहर बैठे रहते हैं। उनको मेडल दिखाया ताे बोले- भाई हमारा दिन-रात का यही काम है। कुछ भी ले आओ कलर डाल देंगे। इसे चमकाने में 25 रुपए लगेंगे। उनको पता ही नहीं था कि ये क्या चीज है? कितनी मेहनत से इसे जीता है। उनकी सफाई की कीमत 25 रुपए ही थी लेकिन मैंने काम होने के बाद उन्हें 50 रुपए दिए। मामले से जुड़ी ये खबर भी पढे़ं… पेरिस ओलिंपिक के मेडल्स का 5 महीने में रंग उतरा पेरिस ओलिंपिक 2024 के मेडल 5 महीने में ही रंग छोड़ने लगे हैं। इनमें भारत के मेडलिस्ट के मेडल भी शामिल हैं। पेरिस ओलिंपिक में शूटर मनु भाकर के साथ ब्रॉन्ज जीतने वाले सरबजोत सिंह ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनका मेडल भी रंग छोड़ रहा है और खराब हो गया है। हर मेडलिस्ट के साथ ऐसा हुआ है। पढ़ें पूरी खबर…
मैं मध्यप्रदेश के सीहोर का रहने वाला हूं। 24 साल का हूं। 9 साल तक मेरी जिंदगी भी सामान्य बच्चों की तरह थी। 2009 में खेत में पानी का पंप चालू करने गया था। वहां की जमीन पर पानी फैला हुआ था। मैं अपनी मस्ती में दौड़ता-दौड़ता गया। जैसे ही पंप चालू करने के लिए स्विच दबाया तो जाेर से ब्लास्ट हुआ। मेरी अंगुलियां स्विच से चिपक गईं। पैर की अंगुलियां जल गईं। सिर में गहरे घाव हो गए। मैं तड़पकर बेहोश हो गया। 6 महीने कोमा में, 2 साल अस्पताल में रहना पड़ा
अस्पताल में आंख खुली तो मां ने बताया- डॉक्टर्स कह रहे हैं कि तुम्हारा पूरा खून काला पड़ गया है। बचने की गुंजाइश न के बराबर है। हर महीने पूरे शरीर का खून बदलेगा। मैं 6 महीने तक कोमा में रहा। मेरी मां बस से रोज सीहोर से भोपाल आती थी। पापा सुबह खाना लेकर आते थे, शाम को मां साथ रुकती थी। 2 साल तक अस्पताल में भर्ती रहा। आर्मी भर्ती रैली में पता चला कि आंखों में समस्या है
मैं क्लास में आगे की बैंच पर बैठता था क्योंकि पीछे से बोर्ड पर लिखा साफ दिखता नहीं था। एक बार सीहोर में आर्मी भर्ती रैली हुई थी। इसकी दौड़ में टॉप किया था। फिजिकल में पास हो गया था लेकिन मेडिकल चेकअप में आंखों की समस्या बताकर निकाल दिया। तब मैंने आंखों की जांच कराई तो डॉक्टर ने बताया कि आपकी आंख की नस में समस्या है। धीरे-धीरे आंखों की रोशनी घटती जाएगी। मैं पिछले 3 साल में जापान, लंदन, जमर्नी के डॉक्टर्स को दिखा चुका हूं, पर कोई सोल्यूशन नहीं निकला है। 7 साल पहले 80 परसेंट विजिबलिटी थी, आज 80 प्रतिशत आंखें खराब हो चुकी हैं। अब कहीं भी चलता हुआ टकरा जाता हूं। पापा पहलवानी करते थे, मैंने जूडो खेलने का मन बनाया
जब मैं ठीक होकर घर आया तो डॉक्टर्स ने कहा- इसमें प्रोटीन, कैल्शियम की बहुत कमी है। मेरे शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि मैं अपने स्कूल के बस्ते का वजन भी उठा पाऊं। चलते-चलते चक्कर आ जाते थे। कभी तो ऐसी स्थिति हो जाती थी कि भाई उठाकर घर लेकर आता था। तब डॉक्टर ने डाइट प्लान बनाया। फिजिकल स्ट्रेंथ के लिए रनिंग और एक्सरसाइज करने के लिए कहा। मुझे इसमें मजा आने लगा। पापा कभी पहलवानी करते थे। हादसे से पहले मैं भी कुश्ती करता था तो जूडो खेल खेलने का मन बनाया। केले खाने के पैसे नहीं थे, लोग कहते थे-काजू, बादाम खाओ
मैं प्रैक्टिस करने के लिए जब सीहोर से भोपाल जाता था तो बस का किराया बचाने के लिए लिफ्ट लेकर जाता था। 7-8 साल रोज 50 किमी भोपाल जाना और 50 किमी वापस आने का सफर मैंने लिफ्ट लेकर किया। क्योंकि दोनों ओर का किराया 100 रुपए लगता था जबकि घर की इनकम ही 300-400 रुपए थी। मैं खुद 100 रुपए मांगने में घबराता था। लोग ताने मारते थे कि क्या कर रहे हो? मेहनत करते हो लेकिन खाया भी करो। हमारे पास गांव में हाइवे से सटा एक एकड़ का खेत था। यह खेत पूरे घर की आजीविका का बहुत बड़ा जरिया था। 2012 में मेरी दीदी की शादी तय हो गई थी। उससे पहले उनको स्वाइन फ्लू हो गया था। उनका बहुत लंबा इलाज चला। इसमें शादी के लिए बचाया सारा पैसा खत्म हो गया। शादी करने के लिए खेत को सिर्फ 5 लाख रुपए में गिरवी रखना पड़ा। हम तय समय में पैसा नहीं लौटा पाए तो वो जमीन हमारे हाथ से चली गई। कभी मिन्नतें कीं तो कभी हताशा में वीडियो बनाए, तब मदद मिली
2018 में सीनियर नेशनल जूडो में गोल्ड मेडल जीता। 2019 कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए लंदन जाने 1.20 लाख रुपए नहीं थे। तब सरकारों के सामने मिन्नतें करने के बाद मैं लंदन जा पाया था। गोल्ड भी जीता। मैंने चंदा मांगकर टूर्नामेंट खेले हैं और देश के लिए मेडल जीते हैं। कोविड के बाद 2021 में मुझे एक इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए लंदन जाना था। उसके लिए 2.5 लाख रुपए नहीं थे। तब मैं इतना हताश हो गया था कि एक वीडियाे बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करना पड़ा। इसमें मैंने कहा था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडलिस्ट हूं, लेकिन लंदन जाने के लिए 2.5 लाख रुपए नहीं हैं। उसके बाद लोगों ने कमेंट कर मुझसे क्यूआर कोड मांगा। सीहोर के कलेक्टर, एसपी, समाज के लोग आगे आए। आधे घंटे में 5 लाख का चंदा मुझे मिला था। उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बर्मिंघम गेम्स में गोल्ड जीता। एशियन गेम्स में गोल्ड के बाद 50 लाख, पैरालिंपिक में मेडल के बाद मप्र सरकार ने 1 करोड़ रुपए देने की घोषणा की। पैरालिंपिक मेडल और अर्जुन अवाॅर्ड भगवान से मिलने जैसा
मैं मिडिल क्लास परिवार से आता हूं। पापा टैक्सी ड्राइवर थे, उससे पहले वे हम्माली का काम करते थे। तब एक बोरा ट्रक में उठाकर रखने के 2 रुपए मिलते थे। इस तरह पूरे दिन में कुछ ही रुपए कमा पाते थे। मेरी मां दूसरों के घरों में मजदूरी करती थी। इन सबके बाद हमारा घर चलता था। अब जब अपने आपको वर्ल्ड नंबर वन जूडो प्लेयर, पहले ही ओलंपिक में मेडल जीतते, अर्जुन अवार्ड मिलते हुए देखता हूं तो ऐसा लगता है कि जैसे भगवान से मिल लिया। अब लोग पहचानने लगे हैं, बड़े ब्रांड्स मेरे स्पॉन्सर हैं
ओलिंपिक मेडल के बाद दूसरा जीवन मिला है। लोग पहचानने लगे हैं। किसी खिलाड़ी को कोई हेल्प चाहिए होती है तो मेरे एक फोन पर काम हो जाता है। अर्जुन अवाॅर्ड मिलने के बाद दिल्ली से भोपाल की फ्लाइट लेट हाे गई थी। तब वहां मप्र के कई नेता मिले। सब मुझे पहचान गए। गले लगे, बधाई दी। मेडल जीतने के बाद मोदी जी ने बुलाया। रिलायंस फाउंडेशन का सदस्य हूं। बड़े ब्रांड्स मेरे स्पॉन्सर हैं। कई ऐड कर चुका हूं। ये पहचान मुझे मेरे खेल, मेरी मेहनत और माता- पिता ने दिए हैं। माता-पिता के लिए जीतूंगा 2028 का पैरालिंपिक गोल्ड
अभी मेरा लक्ष्य 2028 पैरालिंपिक गोल्ड मेडल जीतना है। माता-पिता ने मेरे लिए बहुत संघर्ष किया है, उनको सम्मान देने के लिए पैरालिंपिक गोल्ड जितना ही होगा। जितना हो सके, पैरा प्लेयर्स को सपोर्ट करता हूं। खेल में उनकी जिस तरह मदद कर सकता हूं, मदद करने की कोशिश करता हूं। मेरी हिम्मत और हौसले का राज मेरे माता-पिता हैं। पिता रोज 200 बोरियां ट्रक में भरकर जब शाम को थके हाल घर आते थे तो उनकी हालत बहुत खराब होती थी, उनके घुटने में बहुत दर्द होता था। मैं उनके हाथ-पैरोंं की मालिश करता था। उनके घुटने पूरे खराब हो चुके हैं। मेरे इलाज के वक्त मां ने मेरे लिए अपनी जान झोंक दी। वे मुझे यमराज के घर से खींच लाईं। उन्होंने कभी हार नहीं मानी तो मैं कैसे हार सकता हूं? ये दोनों ही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। साथ ही सीहोर के पनीर फैक्ट्री वाले किशन मोदी ने मेरी बहुत मदद की। जब भी पैसों की कमी आई, उन्होंने सहारा दिया। उन्होंने मेरे जैसे कई युवाओं के टैलेंट को मरने से बचाया है। कई टैलेंटेड प्लेयर गार्ड की नौकरी कर रहे, चाय बेच रहे
मैंने हर कदम पर अपने आपको प्रूफ किया है लेकिन मेरे जैसे कई खिलाड़ी हैं, जो अभी गंभीर स्थिति में हैं। उनका टैलेंट धीरे-धीरे मर रहा है। कई विक्रम अवार्डी और इंटरनेशनल प्लेयर चाय बेच रहे हैं। वाशरूम के बाहर गार्ड की ड्यूटी कर रहे हैं। मैंने खुद 6-6 सेकंड में फाइट्स जीती हैं। ये वर्ल्ड रिकाॅर्ड रहा है। एक साल तक वर्ल्ड नंबर वन रहा। देश को 8 गोल्ड, 2 सिल्वर मिलाकर 14 मेडल दिए हैं। इनमें से 10 टूर्नामेंट में जाने के लिए लोगों से पैसे उधार लिए थे यानी 10 मेडल जीतने के बाद देश को मेरी काबिलियत का अहसास हुआ। ये सब देखकर दु:ख होता है। मेडल का रंग उतरता देखा तो बुरा लगा
मैं जानता हूं कि वक्त के साथ इंसान का रंग फीका पड़ जाता है, ये तो फिर भी पैरालिंपिक का ब्रॉन्ज मेडल है। दुनिया के 100 से ज्यादा खिलाड़ी मेडल का रंग उतरने की शिकायत इंटरनेशल ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) से कर चुके हैं। आईओसी ने भी कह दिया है कि मेडल बदल देंगे, लेकिन मैंने शिकायत नहीं की। उसे 25 रुपए में ठीक करवा लिया। कौन मेडल को फ्रांस भेजे और ठीक होकर आने का इंतजार करे। इतने संघर्ष से मिले मेडल को मैं एक दिन के लिए भी खुद से दूर नहीं कर सकता। भोपाल की मोती मस्जिद के बाहर एक बाबा छप्पर में बाहर बैठे रहते हैं। उनको मेडल दिखाया ताे बोले- भाई हमारा दिन-रात का यही काम है। कुछ भी ले आओ कलर डाल देंगे। इसे चमकाने में 25 रुपए लगेंगे। उनको पता ही नहीं था कि ये क्या चीज है? कितनी मेहनत से इसे जीता है। उनकी सफाई की कीमत 25 रुपए ही थी लेकिन मैंने काम होने के बाद उन्हें 50 रुपए दिए। मामले से जुड़ी ये खबर भी पढे़ं… पेरिस ओलिंपिक के मेडल्स का 5 महीने में रंग उतरा पेरिस ओलिंपिक 2024 के मेडल 5 महीने में ही रंग छोड़ने लगे हैं। इनमें भारत के मेडलिस्ट के मेडल भी शामिल हैं। पेरिस ओलिंपिक में शूटर मनु भाकर के साथ ब्रॉन्ज जीतने वाले सरबजोत सिंह ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनका मेडल भी रंग छोड़ रहा है और खराब हो गया है। हर मेडलिस्ट के साथ ऐसा हुआ है। पढ़ें पूरी खबर…