कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका-कनाडा के पुराने रिश्ते अब खत्म हो चुके हैं। ट्रम्प के विदेशी कारों पर 25% टैरिफ लगाने को लेकर हुए विवाद के बाद कनाडाई पीएम ने यह बात कही। राजधानी ओटावा में कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कार्नी ने कहा कि कनाडा का अमेरिका के साथ वो पुराना रिश्ता जो बुनियादी तौर पर अर्थव्यवस्था को एकजुट रखने, सुरक्षा और सैन्य सहयोग को आगे बढ़ाने पर बना हुआ था, अब नहीं रहा। ट्रम्प से कार्नी की जल्द होगी बातचीत कार्नी ने ये भी कहा कि वे ट्रम्प से अगले 1-2 दिनों में बात कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे उनसे बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन वह अमेरिका के साीथ तब किसी व्यापार वार्ता में हिस्सा नहीं लेंगे जब तक ट्रम्प, कनाडा के लिए सम्मान नहीं दिखाते। वे बार-बार कनाडा पर कब्जा करने की धमकी दे रहे हैं। यह कनाडा की संप्रभुता का अपमान है। अगर दोनों नेताओं के बीच बातचीत होती है तो यह कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला मौका होगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति से उनकी बातचीत होगी। कनाडा में 28 अप्रैल को आम चुनाव की घोषणा हो चुकी है। टैरिफ लगने से कनाडा की ऑटो इंडस्ट्री को नुकसान
इससे पहले ट्रम्प ने 26 मार्च को विदेशी कारों पर टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। यह अगले सप्ताह से लागू हो जाएगा। कार्नी ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ लगाने के फैसले के बाद अब कनाडाई लोगों को अपनी इकोनॉमी के बारे में फिर से सोचना चाहिए। ट्रम्प का यह फैसला कनाडा की ऑटो इंडस्ट्री के लिए घातक हो सकता है। इस इंडस्ट्री से देश में 5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कार्नी ने कहा कि यह हम पर एक सीधा हमला है, हम अपने वर्कर्स और कंपनियों की रक्षा करेंगे। कार्नी बोले- अमेरिका के साथ ऑटो पैक्ट खत्म हुआ ट्रम्प के टैरिफ को लेकर कार्नी ने कहा कि कनाडा भी अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाएगा जो कि उस पर बहुत ज्यादा असर डालेगा। उन्होंने 1965 में कनाडा और अमेरिका के बीच हुए ऑटोमोटिव प्रोडक्ट्स एग्रीमेंट (ऑटो पैक्ट) को सबसे महत्वपूर्ण समझौता बताया और कहा कि इस टैरिफ के साथ ये खत्म हो गया है। ऑटो पैक्ट से मालामाल हुईं अमेरिकी कार कंपनियां अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन और कनाडाई पीएम लेस्टर पीयरसन ने इसे लेकर करार किया था।इसका मकसद अमेरिका-कनाडा के ऑटो इंडस्ट्री को एकजुट करना और व्यापार को बढ़ावा देना था। इसके लिए दोनों देशों ने ऑटो पार्ट्स और गाड़ियों के बिजनेस पर टैरिफ को हटा दिया। ऑटो पैक्ट में एक शर्त ये रखी गई थी कि अमेरिकी कंपनी जितनी कारें कनाडा में बेचती थीं, उतनी ही कारें (या उनके बराबर मूल्य के पार्ट्स) उन्हें कनाडा में बनानी थीं। आसान भाषा में कहें तो, अगर कोई कंपनी कनाडा में 100 कारें बेचती थी, तो उसे कनाडा में ही कम से कम 100 कारों का उत्पादन करना पड़ता था। इससे यह सुनिश्चित होता था कि कनाडा में नौकरियां बनी रहें और सारा उत्पादन सिर्फ अमेरिका में न हो। ऑटो पैक्ट से अमेरिका की 3 बड़ी कार कंपनियों को फायदा
इसका असर ये हुआ कि 1964 में कनाडा का ऑटो निर्यात 75 मिलियन डॉलर था। यह चार बाद ही बढ़कर 1.2 बिलियन डॉलर हो गया। कनाडा की इकोनॉमी के अलावा अमेरिका की ‘बिग थ्री’ ऑटो कंपनियां फोर्ड, जनरल मोटर्स और क्रिसलर कंपनी को इसका खूब फायदा हुआ। जापान की शिकायत के बाद ऑटो पैक्ट खत्म हालांकि, ऑटो पैक्ट 19 फरवरी 2001 को आधिकारिक रूप से खत्म हो गया। विश्व व्यापार संघ (WTO) ने इसे बंद करने का आदेश दिया था। दरअसल, जापान और यूरोपीय संघ ने WTO से शिकायत की थी कि यह पैक्ट विश्व व्यापार संघ के नियमों का उल्लंघन करता है, क्योंकि अमेरिकी कंपनियों को कनाडा में छूट मिलती है जिसका फायदा बिग थ्री कंपनियां उठाती हैं। हालांकि, उस समय तक उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (NAFTA), जो 1 जनवरी 1994 से लागू था, ने ऑटो पैक्ट की जगह ले ली थी, और ऑटोमोटिव व्यापार को नियंत्रित करने में इसकी भूमिका कम हो चुकी थी। इसलिए, इसकी समाप्ति का ज्यादा असर नहीं पड़ा।
इससे पहले ट्रम्प ने 26 मार्च को विदेशी कारों पर टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। यह अगले सप्ताह से लागू हो जाएगा। कार्नी ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ लगाने के फैसले के बाद अब कनाडाई लोगों को अपनी इकोनॉमी के बारे में फिर से सोचना चाहिए। ट्रम्प का यह फैसला कनाडा की ऑटो इंडस्ट्री के लिए घातक हो सकता है। इस इंडस्ट्री से देश में 5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कार्नी ने कहा कि यह हम पर एक सीधा हमला है, हम अपने वर्कर्स और कंपनियों की रक्षा करेंगे। कार्नी बोले- अमेरिका के साथ ऑटो पैक्ट खत्म हुआ ट्रम्प के टैरिफ को लेकर कार्नी ने कहा कि कनाडा भी अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाएगा जो कि उस पर बहुत ज्यादा असर डालेगा। उन्होंने 1965 में कनाडा और अमेरिका के बीच हुए ऑटोमोटिव प्रोडक्ट्स एग्रीमेंट (ऑटो पैक्ट) को सबसे महत्वपूर्ण समझौता बताया और कहा कि इस टैरिफ के साथ ये खत्म हो गया है। ऑटो पैक्ट से मालामाल हुईं अमेरिकी कार कंपनियां अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन और कनाडाई पीएम लेस्टर पीयरसन ने इसे लेकर करार किया था।इसका मकसद अमेरिका-कनाडा के ऑटो इंडस्ट्री को एकजुट करना और व्यापार को बढ़ावा देना था। इसके लिए दोनों देशों ने ऑटो पार्ट्स और गाड़ियों के बिजनेस पर टैरिफ को हटा दिया। ऑटो पैक्ट में एक शर्त ये रखी गई थी कि अमेरिकी कंपनी जितनी कारें कनाडा में बेचती थीं, उतनी ही कारें (या उनके बराबर मूल्य के पार्ट्स) उन्हें कनाडा में बनानी थीं। आसान भाषा में कहें तो, अगर कोई कंपनी कनाडा में 100 कारें बेचती थी, तो उसे कनाडा में ही कम से कम 100 कारों का उत्पादन करना पड़ता था। इससे यह सुनिश्चित होता था कि कनाडा में नौकरियां बनी रहें और सारा उत्पादन सिर्फ अमेरिका में न हो। ऑटो पैक्ट से अमेरिका की 3 बड़ी कार कंपनियों को फायदा
इसका असर ये हुआ कि 1964 में कनाडा का ऑटो निर्यात 75 मिलियन डॉलर था। यह चार बाद ही बढ़कर 1.2 बिलियन डॉलर हो गया। कनाडा की इकोनॉमी के अलावा अमेरिका की ‘बिग थ्री’ ऑटो कंपनियां फोर्ड, जनरल मोटर्स और क्रिसलर कंपनी को इसका खूब फायदा हुआ। जापान की शिकायत के बाद ऑटो पैक्ट खत्म हालांकि, ऑटो पैक्ट 19 फरवरी 2001 को आधिकारिक रूप से खत्म हो गया। विश्व व्यापार संघ (WTO) ने इसे बंद करने का आदेश दिया था। दरअसल, जापान और यूरोपीय संघ ने WTO से शिकायत की थी कि यह पैक्ट विश्व व्यापार संघ के नियमों का उल्लंघन करता है, क्योंकि अमेरिकी कंपनियों को कनाडा में छूट मिलती है जिसका फायदा बिग थ्री कंपनियां उठाती हैं। हालांकि, उस समय तक उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (NAFTA), जो 1 जनवरी 1994 से लागू था, ने ऑटो पैक्ट की जगह ले ली थी, और ऑटोमोटिव व्यापार को नियंत्रित करने में इसकी भूमिका कम हो चुकी थी। इसलिए, इसकी समाप्ति का ज्यादा असर नहीं पड़ा।