कहानी उनकी जो 30 साल से राम मंदिर के लिए पत्थर तराश रहे हैं और उनकी भी जिनकी पीढ़ियां सालों से रामलला को पान, पेड़ा और माला भेजती हैं

अयोध्या में करीब 500 साल बाद फिर से राम मंदिर बनने जा रहा है। इसके लिए 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन करेंगे। भूमि पूजन से पहले अयोध्या में दिवाली जैसा माहौल है। घर-घर में गीत गाए जा रहे हैं। दीए जलाए जा रहे हैं। पता चला है कि भूमि पूजन के दिन अयोध्या में 55 हजार किलो के देशी घी से बने बेसन के 14 लाख लड्डू बांटने की तैयारी चल रही है।

अब जब अयोध्या में इस तरह का माहौल है, तो क्यों न उन खबरों से भी गुजरा जाए, तो अयोध्या की तैयारियों के बारे में बताती हैं। वहां के माहौल के बारे में बताती हैं। साथ-साथ इस बात को भी जान लिया जाए कि मुसलमानों को मस्जिद के लिए जो जमीन मिली है, वहां के लोग क्या चाहते हैं?

1. कहानी उनकी, जो 30 साल से राम मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम कर रहे हैं

अयोध्या में कारसेवकपुरम से कुछ ही दूरी पर बनी है विश्व हिंदू परिषद की कार्यशाला। ये वही जगह है जहां पिछले 30 सालों से राम मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम चल रहा था। जब फैसला आया भी नहीं था, तभी रोजाना हजारों लोग इस कार्यशाला में सिर्फ पत्थरों को देखने आते थे। आज भी आते हैं, लेकिन कोरोना की वजह से संख्या कम हो गई है।

कार्यशाला में अन्नू सोमपुरा भी काम करते हैं। उनकी उम्र 80 साल हो चली है और जब वो 50 साल के थे, तब अयोध्या आए थे। अन्नू कहते हैं कि वो पहले अहमदाबाद में ठेके पर मंदिर पर बनाया करते थे। सितंबर 1990 में राम मंदिर का काम मिलने के बाद चंद्रकांत सोमपुरा ने इसकी देख-रेख के लिए उन्हें चुन लिया।

इस कार्यशाला में मिर्जापुर के रहने वाले झांगुर भी काम करते हैं। उनकी उम्र 50 साल हो गई है। वो 2001 से यहां पत्थर तराशने का काम कर रहे हैं। उनका बेटा भी यहां पत्थर तराशने का काम करता है। झांगुर कहते हैं कि पूरी कार्यशाला में सिर्फ 3 मजदूर हैं, उनमें से दो तो हम बाप-बेटे ही हैं।

(पूरी खबर पढ़ें और जानें अन्नू सोमपुरा और कार्यशाला में काम करने वाले लोगों की कहानी)

2. वो 5 अनजान चेहरे, जिनकी 5 पीढ़ियां रामलला की सेवा करती आ रही है

राम जन्मभूमि से जुड़े बड़े और राजनीतिक चेहरों को तो सभी पहचानते हैं, लेकिन इन चेहरों के बीच कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जिन्हें कोई जानता नहीं है, लेकिन ये लोग पीढ़ियों से रामलला की सेवा करते आ रहे हैं।

राम जन्मभूमि से सटे दोराही कुंवा मोहल्ले में एक पतली सी गली में छोटे से मकान में मुन्ना माली की दुकान है। यहां उनकी मां और बहन मालाएं तैयार करती हैं। मुन्ना माली की मां सुकृति देवी गर्व से बताती हैं कि हम तीन पीढ़ियों से रामलला को माला पहुंचाते हैं। पहले हमारे ससुर ये काम करते थे, उनकी मौत हो गई, तो मुन्ना ने काम संभाल लिया। वो कहती हैं कि रोज सुबह 10 बजे बीस माला मंदिर भेजी जाती है।

इसी तरह अयोध्या के जैन मंदिर चौराहे के पास पान की दुकान है। इसे दीपक चौरसिया चलाते हैं। दीपक कहते हैं कि मेरे पिताजी भोग के लिए पान का बीड़ा मंदिर तक पहुंचाया करते थे। उनके जाने के बाद हमारे ऊपर यह जिम्मा आ गया। दीपक बताते हैं 8.30 से 9 बजे के बीच मैं भगवान के लिए 20 बीड़ा मीठा पान तैयार कर फ्रिज में अलग रख देता हूं। तकरीबन 10.30 बजे उसे मंदिर पहुंचा देता हूं।

(पूरी खबर यहां पढ़ें और जानें उन तीन और चेहरों की कहानी, जो पीढ़ियों से रामलला की सेवा कर रहे हैं)

3. रामलला के पुजारी कहते हैं, जब बाबरी विध्वंस हुआ तो हम रामलला को लेकर चले गए

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी हैं सत्येंद्र दास। वो कहते हैं कि सब कुछ जीवन में सामान्य चल रहा था। 1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे। उनकी फरवरी 1992 में मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया। उस समय मैं तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार विहिप के नेताओं और कई संत जो विहिप नेताओं के संपर्क में थे, उनसे मेरा घनिष्ठ संबंध था। सबने मेरे नाम का निर्णय किया। जिला प्रशासन को सबने अवगत कराया और इस तरह 1 मार्च 1992 को मेरी नियुक्ति हो गई।

सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था। सुबह 11 बज रहे थे। यहां एक दिन पहले ही कारसेवक आए थे। सारे नवयुवक उत्साहित थे। वो बैरिकेडिंग तोड़ कर विवादित ढांचे पर पहुंच गए और तोड़ना शुरू कर दिया। इस बीच हम रामलला को बचाने में लग गए कि उन्हें कोई नुकसान न हो। हम रामलला को उठाकर अलग चले गए। जहां उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

(पूरी खबर यहां पढ़े और जानें सत्येंद्र दास की पूरी कहानी और कैसे वो एक स्कूल टीचर से पुजारी बने?)

4. मुसलमान कहते हैं, हमें जो जमीन मिली है, वहां स्कूल या अस्पताल बनवा दें

अयोध्या से गोरखपुर हाईवे की तरफ लगभग 28 किमी जाने पर रौनाही थाने के पीछे वही 5 एकड़ जमीन है, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूपी सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए दी है। ये जमीन धन्नीपुर गांव में पड़ती है। इस गांव के रहने वाले मोहम्मद इस्लाम का कहना है कि यहां मस्जिदें तो कई सारी हैं, लेकिन कोई बढ़िया अस्पताल या बच्चों के लिए स्कूल नहीं है।

सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए जो जमीन मिली है, वो कृषि विभाग के फार्म हाउस की है। यहां अभी भी धान की फसल लहलहा रही है। कृषि फॉर्म हाउस में कुछ मजदूर हैं, जो खेतों में खाद डाल रहे हैं। बात करने पर पता चला कि वे यहां मजदूरी करते हैं। बेचूराम कहते है कि कृषि फॉर्म हाउस में पूरब में 5 एकड़ जमीन दी गई है। जब जमीन पर फैसला हुआ था तब अधिकारी आए थे।

(पूरी खबर यहां पढ़ें और जानें कैसा है धन्नीपुर गांव का माहौल?)

5. मोदी जिस राम मूर्ति का शिलान्यास करेंगे, उस गांव में अभी जमीन का अधिग्रहण भी नहीं हुआ

सरयू घाट से लगभग 5 किमी दूर माझा बरहटा ग्राम सभा है। प्रशासन ने तय किया है कि अब राम की सबसे ऊंची 251 मीटर की भव्य मूर्ति यहीं लगाई जाएगी। 5 अगस्त को राम जन्मभूमि का पूजन करने आ रहे पीएम नरेंद्र मोदी 1000 करोड़ की 51 परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे। इन परियोजनाओं में 251 मीटर की राममूर्ति भी शामिल है।

लेकिन, जहां राम की प्रतिमा लगनी है, वहां अभी जमीन का अधिग्रहण तक नहीं हुआ है। लखनऊ हाईवे रोड पर स्थित इस ग्रामसभा में मूर्ति को लेकर काम शुरू नहीं हुआ है। इस ग्रामसभा में 3 गांवों की करीब 1500 से ज्यादा की आबादी है जोकि 500 से 600 घरों में रहती है। यहां की 86 एकड़ जमीन को प्रशासन अधिग्रहण करना चाहता है, लेकिन गांव वालों का गुस्सा देख ऐसा लगता नहीं कि मामला जल्दी सुलझ जाएगा।

(पूरी खबर यहां पढ़ें और जानें जमीन अधिग्रहण को लेकर गांव वालों का क्या कहना है?)

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