कोरोना वैक्सीन की भेंट चढ़ जाएंगे 10 आंखों और नीले खून वाले दुर्लभ हॉर्सशू क्रैब, 45 करोड़ साल पुरानी है ये प्रजाति

दुनिया भर में कोविड-19 से संक्रमित होने के चलते 5 लाख से ज्यादा लोगों कीमौतहो चुकी है।फिलहाल इस वायरस का संक्रमण खत्म करने का कोई पुख्ता इलाज भी नहीं है। जाहिर है वैक्सीन बनने से करोड़ों इंसानी जानें बचेंगी। लेकिन, इसका एक दूसरा पक्ष भी है। वैक्सीन बनने की प्रक्रिया धरती की एक दुर्लभ प्रजाति को खत्म करने की कगार भी पर पहुंचा सकती है।

हॉर्सशू क्रैब। यह नाम इस जीव को घोड़े के पैरों के खुर की तरह दिखने की वजह से मिला है। 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल सेअमेरिका और साउथ एशिया के तटों पर पाए जाने वाले इस जीव के खून का इस्तेमाल दवाओं के प्रशिक्षण में हो रहा है। अब हॉर्सशू क्रैब का खून कोविड-19 की वैक्सीन डेवलप करने के काम भी आ रहा है। इनका नीला खून ये सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कहीं ड्रग में कोई खतरनाक बैक्टीरिया तो नहीं है।

जोआपदाएंडायनासोर नहीं झेल पाए, उनका सामना हॉर्सशू क्रैब ने किया

हॉर्सशू क्रैब को लिविंग फॉसिल यानी जीवित खनिज कहा जाता है। क्योंकि 45 करोड़ सालों के दौरान, धरती पर आई जिन आपदाओं ने डायनासोर तक को खत्म कर दिया, उन्हें झेलकर हॉर्सशू क्रैब आज तक जीवित बचे हुए हैं। इन्हें प्राचीन इम्यून सिस्टम वाला जीव भी कहा जाता है।

खतरनाक दवाओं पर तुरंत रिएक्ट करता है इनका नीला खून

विकसित किए गए ड्रग में कई बार एंडोटॉक्सिन पाया जाता है।एंडोटॉक्सिन वायरस की ऊपरी झिल्ली पर मौजूद रहता है।इससे इंसान को जानलेवा बुखार भी हो सकता है। हॉर्सशू क्रैब के खून में पाया जाने वाला एक अर्क तुरंत एंडोटॉक्सिन मिलने पर रिएक्ट करता है। इससे वैज्ञानिकों को पता चल जाता है कि दवा इंसानों को देने लायक नहीं है।

हॉर्सशू क्रैब के खून से पहले होता था खरगोशों का इस्तेमाल

रेयान फेलन और नायरा सिमंस द्वारा 2018 में की गई रिसर्च के मुताबिक, 1940 से 1970 तक दवाओं से खतरनाक बैक्टीरिया की पहचान करने में खरगोश का इस्तेमाल किया जाता था।इस प्रक्रिया में हर साल हजारों खरगोश मर जाते थे। 1970 में एंडोटॉक्सिन डिटेक्ट करने के लिए हॉर्सशू क्रैब के खून का इस्तेमाल शुरू हुआ।

खून निकालने के बाद 30% तक हॉर्सशू क्रैब मर जाते हैं

अमेरिका की प्रयोगशालाओं में हर साल लगभग 5 लाख हॉर्सशू क्रैब लाए जाते हैं।ह्रदय के पास की नस से इनका खून निकाला जाता है। फिर दो दिन बाद इन्हें समुद्र में छोड़ दिया जाता है। कई शोधों में सामने आया है कि खून निकाले जाने के बाद 30% तक हॉर्सशू क्रैब मर जाते हैं। लेकिन, एक और बात है, जो इनकी प्रजाति के विलुप्त होने को लेकर वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट्स को ज्यादा चिंतित कर रही है। वह ये कि खून निकाले जाने की प्रक्रिया के बाद हॉर्सशू क्रैब की प्रजनन क्षमता भी कम हो जाती है।

तेजी से घट रही है संख्या

उत्तरी अमेरिका की डेलावेयर की खाड़ी में 1990 के दौरान 12 लाख से ज्यादा हॉर्सशू क्रैब पाए जाते थे।पिछले साल यह संख्या घटकर 3.30 लाख हो गई।चीन के चीन के गुआंग्सी तट पर, जहां हॉर्सशू क्रैब खाए भी जाते हैं, इनकी संख्या लगभग 700,000 प्रजनन जोड़ों से 40,000 तक कम हो गई है।

हॉर्सशू क्रैब के खून के अलावा कोई और विकल्प नहीं?

लंबे समय से दवाइयों की टेस्टिंग के लिए हॉर्सशू क्रैब के नीले खून के अलावा किसी अन्य विकल्प पर वैज्ञानित शोध कर रहे हैं।2016 में यूरोप के वैज्ञानिकों ने इसका विकल्प खोजने का दावा भी किया था। अमेरिकी कंपनी भी इस पर राजी हो गई थीं। लेकिन, पिछले महीने ही उस अमेरिकी कंपनी ने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाया गया सबटीट्यूट उतना कारगर नहीं है, जितना हॉर्सशू क्रैब का खून होता है।

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Corona vaccine testing can eliminate this rare creature with 10 eyes and blue blood.