सनातन परंपरा में अन्न को देवता माना गया है। इसके सम्मान को बनाए रखने के लिए खाने की थाली लकड़ी के पटिए पर रखने की परंपरा है। एक और परंपरा भी है कि खाने के बाद थाली में हाथ नहीं धोना चाहिए। प्राचीन मान्यता है कि खाने की थाली में हाथ धोना अनुचित और अपशकुन है, इससे थाली में बचे अन्न का अपमान होता है।
जैन धर्म में तो भोजन के हर एक दाने को इतना सम्मान दिया जाता है कि कई लोग थाली को धोकरपी लेते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भोजन की थाली में हाथ धोने से मां लक्ष्मी और अन्नपूर्णा नाराज होती हैं और दरिद्रता आती है। इस मान्यता के पीछे का मुख्य भाव यही है कि हम खाने के हर एक दाने का सम्मान करें और उसकी अहमियत को समझें। भोजन का एक दाना भी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए और थाली में खाना नहीं छोड़ना चाहिए।
भागवत सहित कई पुराणों में अन्न के अपमान को महापाप माना गया है। अतिथि को भोजन कराना और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराना सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। शास्त्रों में अग्नि को देवताओं का मुख्य माना गया है, यज्ञ में भी जो सामग्रियां हम अर्पित करते हैं, वो देवताओं को भोजन के रूप में प्राप्त होती हैं। इन्हें हविष्य भी कहा जाता है। इसलिए, भोजन का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है।