गरियाबंद में सबसे बड़े नक्सली ऑपरेशन की इनसाइड स्टोरी:राशन लेने आए थे, ट्रायंगल शेप के एंबुश में फंसे; दो दिन भूखे-प्यासे लड़ते रहे जवान

कुल्हाड़ी घाट पंचायत के भालू डिग्गी टोला के जंगल में फोर्स ने 27 नक्सलियों को मार गिराया। नक्सली खाने के जुगाड़ में गांव के करीब आए थे। इसी बीच फोर्स ने इन्हें ट्रायंगल शेप के एंबुश में घेर लिया। पहाड़ी पर बसे कुल्हाड़ी घाट के गांव नक्सलियों के सबसे सेफ जोन में शामिल थे। अब तक इन पहाड़ी रास्तों के जरिए ही नक्सली 3 राज्यों में आना-जाना करते आए हैं। भालू डिग्गी में पिछले 48 घंटे तक जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चली। बुधवार तक 16 नक्सलियों की डेडबॉडी रिकवर कर ली गई। मारे गए नक्सली में 1 करोड़ का इनामी जयराम रेड्डी उर्फ अप्पाराव भी है। यह सेंट्रल कमेटी मेंबर (CCM) कैडर का था। इन सबके बीच दैनिक भास्कर की टीम भी ग्राउंड जीरो पर पहुंची तो पता चला दो दिन तक जवान भूखे-प्यासे लड़ते रहे। जो खाना अपने साथ लेकर गए थे, वो खत्म हो गया था। पीने के पानी के लिए नाले या झरने का सहारा लेना पड़ा। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट… अब कुल्हाड़ी घाट की जियोग्राफिकल लोकेशन समझिए
कुल्हाड़ी घाट, 75 किलोमीटर में फैली हुई पंचायत है, जिसके अधीन सात गांव आते हैं। ये गांव आदिवासी बाहुल्य हैं और चारों ओर से पहाड़ी और जंगल से घिरे हुए हैं। कुल आबादी 1500 के आस–पास की है। पूरा इलाका नो नेटवर्क जोन है। सात में से चार गांव पहाड़ी पर बसे हैं इसके अलावा तीन गांव पहाड़ी के नीचे बसे हैं। स्थानीय ग्रामीणों और एनकाउंटर कर लौटे जवानों ने बताया, सामान्यतः: इन गांवों के ऊपर पहाड़ी का जो हिस्सा है, वहां नक्सली मूवमेंट मार्क होते हैं। जहां बड़ी–बड़ी खाई और कई वाटर फॉल के सोर्स हैं। मुठभेड़ वाली जगह यानी भालू डिग्गी टोला पहाड़ पर बसा हुआ है। इस टोले की कुल आबादी सिर्फ 102 है। इस गांव के रास्ते में आपका सामना तेंदुए जैसे जंगली जानवर से कभी भी हो सकता है। सूरज ढलने के बाद मैनपुर के लोकल्स भी कुल्हाड़ी घाट या इसके अधीनस्थ किसी भी गांव में एंट्री नहीं करते। 20 साल से नक्सलियों के टॉप लीडर्स का सेफ जोन था
कुल्हाड़ी घाट पहली दफा 39 साल पहले नेशनल मीडिया में टॉकिंग पॉइंट बना था। तब 14 जुलाई 1985 को राजीव गांधी इस गांव में पहुंचे थे। बीते मंगलवार यानी 21 जनवरी को दूसरी बार ये गांव लाइम लाइट में आया। जब एक साथ इस गांव से जवान 14 नक्सलियों का शव लेकर निकले। नक्सली लीडर इस पॉइंट से ओडिशा, आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ इन तीन राज्यों के अपने कुनबे को कंट्रोल करते थे। डेंस फॉरेस्ट और ऊंचाई के चलते पिछले 20 साल से ये इलाका अप्पाराव और उसके साथियों के लिए सेफ जोन बना हुआ था। यही कारण है कि टॉप कैडर के लीडर्स यहां लंबे समय से अपना डेरा जमाते रहे हैं। सप्ताह में एक दिन ही पहाड़ के नीचे उतरते हैं ग्रामीण
जो आबादी पहाड़ी पर बसी हुई है, वो सप्ताह में केवल एक दिन ही राशन पानी लेने नीचे–उतरती है। ये लोग घोड़े और खच्चर के सहारे सप्ताहभर का राशन एक बार में ही पहाड़ों पर लेकर जाते हैं। इसके बाद इनका नीचे वाले लोगों और उनकी जिंदगी से कोई वास्ता नहीं रहता। रविवार रात नक्सलियों के होने के खबर मिली थी
रविवार रात जवानों को जानकारी मिली कि राशन पानी के जुगाड़ में अप्पाराव ने अपनी प्रोटेक्शन टीम के साथ भालू डिग्गी टोले के करीब डेरा जमाया हुआ है। हालांकि, ऐसा बहुत कम ही होता है कि CC लेवल का कोई नक्सली अपना सेफ जोन छोड़कर किसी गांव के करीब डेरा जमा ले। रात का वक्त होने के चलते ये लोग गांव को सेफ जोन मानकर रुक गए होंगे। SOG ने ओडिशा का रूट किया ब्लॉक
इसके बाद बिना देर किए रात को ही ई–30 (जिला गरियाबंद के जवान), कोबरा 207, CRPF 65 और 211 नंबर की बटालियन मौके के लिए रवाना हुई। लेकिन पेंच ये था कि भालू डिग्गी से ओडिशा केवल 5 से 6 किमी की दूरी पर है। एक तरफ से हमला होता तो नक्सली आराम से ओडिशा की ओर निकल जाते। ऐसे में ओडिशा के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप( SOG) के जवानों को काम पर लगाया गया। ओडिशा वाले छोर को SOG ने ब्लॉक कर दिया। तीन तरफ से घिर गए थे नक्सली
अब नक्सलियों के पास अंतिम विकल्प बस्तर की ओर जाने का बचा था, लेकिन इस ओर से जंगल और पहाड़ी के रास्ते उन्हें सेफ जोन तक पहुंचने में कम से कम 150 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती, जिसमें 2 से 3 दिन का समय लगता। वहीं कोई नक्सली हाथ से निकल न जाए इसका ध्यान रखते हुए फोर्स ने एक टोली की तैनाती इस छोर पर भी की थी। इस तरह एक ट्रायंगल शेप के एंबुश में जवानों ने नक्सलियों को घेर लिया। नक्सलियों ने की पहले फायरिंग
जब टीम भालू डिग्गी पहुंची तो अधिकतर नक्सली सिविल कपड़ों में थे। ऐसे में पहचाना मुश्किल था, लेकिन जवानों को करीब आता देख 2 महिला नक्सलियों ने फायरिंग कर दी, जिसमें CRPF का एक जवान घायल हो गया। इसके बाद जवानों ने भी पोजीशन ली। ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। दोनों महिला नक्सलियों की गोली लगने से मौके पर ही मौत हो गई। इस बीच अन्य ग्रामीणों को सेफ जोन में शिफ्ट किया गया। सबसे पहले ओडिशा की तरफ भागे नक्सली
फायरिंग शुरू होते ही बाकी नक्सली भी हमलावर हो गए। इन लोगों ने ओडिशा की तरफ भागने की कोशिश की, लेकिन कैजुअल्टी हुई। इसके बाद नक्सलियों ने रूट बदला और बस्तर की ओर आगे बढ़ने लगे। इस रास्ते पर छत्तीसगढ़ के जवानों के साथ उनकी 30 घंटे तक मुठभेड़ चली। नक्सली लीडर कुल्हाड़ीघाट पहाड़ में ट्रेनिंग बेस बनाना चाहते थे
कुल्हाड़ीघाट पहाड़ पर ही भालू डिग्गी के अलावा तारझर और देवडोंगर टोला भी हैं। इन दोनों टोलों के पश्चिम दिशा की ओर 15 किलोमीटर की चढ़ाई पर ओडिशा बॉर्डर टच हो जाता है। वहीं दक्षिण–पूर्व लगभग इससे दोगुनी चढ़ाई चढ़ने पर आंध्र प्रदेश बॉर्डर का रेंज आ जाता है। नक्सली तारझर–देवडोंगर टोला और ओडिशा बॉर्डर के बीच में ट्रेनिंग कैंप बनाना चाहते थे। इसके लिए लगातार प्रयास भी हो रहे थे। बड़े लीडर ने बीते दिनों बैठक भी ली थी, लेकिन उनकी मौजूदगी की खबर मुखबिरों की मदद से पुलिस अधिकारियों तक पहुंच गई। जिसके बाद ही से फोर्स ने एक्शन प्लान पर काम करना शुरू कर दिया। ……………………………. भालू डिग्गी मुठभेड़ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… 4 दिन का नक्सल ऑपरेशन…16 नक्सली ढेर:जवान ने कहा-हम मारते गए, डेडबॉडी का हिसाब नहीं, 1 करोड़ का इनामी 25 साथियों के साथ छिपा छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में नक्सलियों के खिलाफ सबसे लंबा ऑपरेशन चल रहा है। 4 दिन से कुल्हाड़ी घाट स्थित भालू डिग्गी के जंगल में रुक-रुककर फायरिंग हो रही है। फोर्स के मुताबिक 1 करोड़ का इनामी CCM मेंबर बालकृष्ण 25 साथियों के साथ छिपा है। पढ़ें पूरी खबर