गुप्त नवरात्रि 30 जनवरी से:देवी सती की दस महाविद्याओं की साधना का उत्सव है माघ मास की नवरात्रि, जानिए महाविद्याओं की कथा

आज माघ मास की अमावस्या है, इसका नाम मौनी अमावस्या है। कल यानी 30 जनवरी को माघ शुक्ल प्रतिपदा है और इस तिथि से गुप्त नवरात्रि शुरू हो रही है। माघ मास की गुप्त नवरात्रि 6 फरवरी तक रहेगी। गुप्त नवरात्रि में देवी सती से उत्पन्न हुईं दस महाविद्याओं की कृपा पाने के लिए साधना की जाती है। जानिए गुप्त नवरात्रि से जुड़ी कथा और दस महाविद्याओं के नाम… उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, गुप्त नवरात्रि से पहले मौनी अमावस्या की रात महाकाली की विशेष पूजा करनी चाहिए। माताजी की मूर्ति या चित्र पर हार-फूल और नींबुओं की माला चढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही देवी को इत्र भी चढ़ाएं। विधिवत पूजन करें। माघ मास की नवरात्रि में साधनाएं गुप्त रूप से की जाती हैं। दस महाविद्याएं देवी दुर्गा के दस रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये हैं दस महाविद्याएं काली : समय और मृत्यु की देवी हैं। तारा : करुणा और ज्ञान की देवी हैं। त्रिपुर सुंदरी : सौंदर्य, प्रेम और अध्यात्म की देवी हैं। भुवनेश्वरी : संपूर्ण सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी हैं। छिन्नमस्ता : आत्मत्याग और बलिदान की प्रतीक हैं। भैरवी : तपस्या और साधना की देवी हैं। धूमावती : देवी का ये स्वरूप त्याग, वैराग्य का प्रतीक है। बगलामुखी : देवी का ये स्वरूप शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश करता है। मातंगी : विद्या, कला और संगीत की देवी हैं। कमला : धन, वैभव और समृद्धि की देवी हैं। ये है दस महाविद्याओं की संक्षिप्त कथा पौराणिक कथा के मुताबिक, देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे और समय-समय पर शिव जी को अपमानित करने के अवसर खोजते रहते थे। एक दिन प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ आयोजित किया। यज्ञ में सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों को बुलाया गया, लेकिन दक्ष ने शिव-सती को आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती को अपने पिता के यहां के यज्ञ की जानकारी मिली तो देवी भी यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं। भगवान शिव ने देवी सती को समझाया कि हमें बिना बुलाए ऐसे आयोजन में नहीं जाना चाहिए। देवी सती ने कहा कि दक्ष मेरे पिता हैं, और अपने पिता के यहां जाने के लिए किसी आमंत्रण की जरूरत नहीं है। सती के ऐसा कहने के बाद भी शिव जी देवी को जाने से रोकना चाहा, लेकिन सती क्रोधित हो गईं। देवी सती के क्रोध से दस महाविद्याएं प्रकट हो गईं। इसके बाद शिव जी के मना करने के बाद भी देवी सती दक्ष के यहां यज्ञ में पहुंच गईं। यज्ञ स्थल पर सती को देखकर प्रजापति ने दक्ष ने शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कहीं। देवी सती शिव जी अपमान सहन नहीं सकीं और उन्होंने यज्ञ कूंड में अपनी देह त्याग दी।