घर-परिवार की सुख-शांति के लिए समर्पण की भावना है जरूरी:मुश्किल समय में धैर्य और सहनशीलता बनाए रखें, जीवन साथी की मदद के लिए तैयार रहें

घर-परिवार में सुख-शांति तभी रह सकती है, जब परिवार के सभी सदस्यों के बीच आपसी तालमेल, समर्पण की भावना और प्रेम हो। जब हम एक-दूसरे के सुख के लिए अपने सुख का त्याग करते हैं तो आपसी प्रेम बढ़ता है। शास्त्रों से सीखें परिवार में सुख, प्रेम और शांति बनाए रखने के लिए कौन-कौन सी बातें जरूरी हैं… परिवार के हर सदस्य की इच्छा का मान रखें रामायण में भगवान श्रीराम ने माता कैकेयी की इच्छा का मान रखते हुए वनवास जाना स्वीकार किया। श्रीराम परिवार के हर सदस्य की इच्छा पूरी करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। श्रीराम ने संदेश दिया है कि घर के लोगों की इच्छा पूरी करने के लिए हमें अपने सुख का त्याग करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। हालात कैसे भी हों, धर्म का साथ न छोड़ें महाभारत में पांडवों के जीवन में लगातार मुश्किलें आती रहीं, लेकिन उन्होंने कभी भी धर्म का साथ नहीं छोड़ा। हर स्थिति में श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन का पालन करते रहे। श्रीकृष्ण ने भी पांडवों का साथ इसीलिए दिया था, क्योंकि वे धर्म के मार्ग पर चल रहे थे। जब हम पूरे परिवार के साथ धर्म के मार्ग पर चलते हैं, हमेशा सही काम करते हैं, तब हमें भगवान की भी कृपा मिलती है और जीवन के सभी दुख दूर होते हैं। धैर्य, समर्पण की भावना और सहनशीलता बनाए रखें परिवार में प्रेम, सुख-शांति चाहते हैं तो धैर्य और सहनशीलता का गुण कभी न छोड़ें। राजा हरिश्चंद्र के जीवन में कई बड़ी-बड़ी परेशानियां आईं। उनका राज-पाठ, धन-संपत्ति सबकुछ छीन गया था। यहां तक कि राजा हरिश्चंद्र को अपनी पत्नी और बेटे राहुल से भी दूर होना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी धैर्य और सहनशीलता का गुण नहीं छोड़ा। राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामति पति का साथ देती रहीं, तारामति ने पति के लिए समर्पण की भावना बनाए रखी। तारामति ने भी पति का मान रखने और पति के वचन को पूरा करने के लिए राज-पाठ, सुख-सुविधाएं छोड़ दी थीं। बाद में राजा हरिश्चंद्र और तारामति के इन्हीं गुणों की वजह से राजपाठ, सुख-सुविधाएं, पुत्र सबकुछ वापस मिल गया था। जिन परिवारों में ये भावनाएं होती हैं, वहां आपसी प्रेम बना रहता है। परिवार के सभी सदस्य एकता बनाए रखें सभी देवी-देवताओं में सिर्फ शिव जी ही ऐसे हैं, जिनका भरा-पूरा परिवार है। शिव-पार्वती के पुत्र गणेश जी उनकी पत्नियां हैं ऋद्धि-सिद्धि और इनके पुत्र हैं लाभ-क्षेम। शिव जी का वाहन नंदी है, वे गले में नाग धारण करते हैं, देवी का वाहन सिंह है, गणेश जी का वाहन चूहा है और कार्तिकेय स्वामी का वाहन है मोर। नाग के चूहे का शत्रु है, मोर नाग का शत्रु है, शेर नंदी का शत्रु है, लेकिन ये सभी एक साथ एक परिवार में रहते हैं और कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। शिव परिवार के ये वाहन हमें संदेश देते हैं कि परिवार में सभी लोगों के विचार अलग-अलग होते हैं, हमें सभी के विचारों का मान रखना चाहिए और एकता बनाए रखनी चाहिए। अगर परिवार के सदस्य एक-दूसरे के शत्रुता रखेंगे तो परिवार टिक नहीं पाएगा। माता-पिता के लिए अपने सुख का त्याग करने में पीछे न हटें श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता की सेवा और भक्ति करने की वजह से प्रसिद्ध हैं। एक दिन उनके माता-पिता ने तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा जताई तो श्रवण कुमार ने एक बड़ा कावड़ बनाया और उसमें एक ओर माता, दूसरी ओर पिता को बिठाकर तीर्थ यात्रा पर निकल गए। श्रवण कुमार की माता-पिता के प्रति भक्ति हमें संदेश देती है कि माता-पिता की इच्छा का पूरी करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। माता-पिता के लिए अपने सुख का त्याग करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।