हृदय रोगों से होने वाली मौतों का एक कारण अधिक चावल खाना भी है। इसकी वजह चावल में प्राकृतिक तौर पर आर्सेनिक तत्व का मौजूद होना है। यह दावा ब्रिटेन की मैनचेस्टर और सॉल्फोर्ड यूनिवर्सिटी की संयुक्त रिसर्च में किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है, दुनियाभर में चावल खाने के मामले में ब्रिटेन के लोग 25वें पायदान पर हैं और यहां 6 फीसदी लोगों की मौत हृदय रोगों से हो रही है। चावल में आर्सेनिक की मौजूदगी मौत का खतरा बढ़ाती है।
नेशनल सैम्पल सर्वे के मुताबिक, भारत में चावल सबसे ज्यादा बिहार और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में खाया जाता है। नई रिसर्च के मुताबिक, ऐसे राज्यों को अपनी डाइट में चावल अधिक खाने की जगह दूसरी तरह के अनाज को भी शामिल करने की जरूरत है।
चावल में आर्सेनिक कैसे पहुंचता है और इसे अलग कैसे करें , 5 पॉइंटस से समझें
#1) चावल में आर्सेनिक से हर साल 50 हजार मौतें
शोधकर्ताओं के मुताबिक, फैसल की पैदावार के दौरान ही इसमें मिट्टी के जरिए ऐसे कई रसायन पहुंचते हैं। अनाज खाने पर ये लिवर से जुड़ी बीमारियां और कैंसर की वजह बनते हैं। कुछ मामलों में मौत तक हो जाती है।
चावल ऐसा अनाज है जिस पर ज्यादातर आबादी निर्भर है। यह काफी मात्रा में कैलोरी और पोषक तत्व उपलब्ध कराता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, चावल में आर्सेनिक होने के कारण दुनियाभर में 50 हजार मौतें हर साल होती हैं।
#2) चावल ही क्यों खतरनाक, दूसरी फसल क्यों नहीं
शोधकर्ताओं के मुताबिक, किसान सिंचाई के समय आर्सेनिक वाले रसायन का छिड़काव करते हैं। दूसरी फसलों पर आर्सेनिक का इतना असर नहीं पड़ता कि सेहत को नुकसान पहुंचे। ऐसा इसलिए क्योंकि चावल की फसल लम्बे समय तक पानी में डूबी रहती है इसलिए इसमें 10-20 फीसदी आर्सेनिक ज्यादा पाया जाता है। आर्सेनिक के जहरीले रसायन से आपको कितना खतरा होगा ये बात इस पर निर्भर करता है कि आप एक दिन में कितना चावल खाते हैं।
#3) चावल खाना छोड़ने की जरूरत नहीं, विकल्प बदलें
शोधकर्ताओं का कहना है कि लोगों को डरने या चावल को पूरी तरह छोड़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसमें फायबर के साथ कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। लोगों को चावल की दूसरी किस्म को अपनी डाइट में शामिल करने की जरूरत है जैसे बासमती। इसमें दूसरे चावल के मुकाबले आर्सेनिक का स्तर कम होता है।
#4) इसमें से आर्सेनिक को कैसे कम करें
ब्रिटेन की क्वींस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एंड्रयू मेहार्ग का कहना है कि अगर चावल को बनाने का तरीका बदलें तो आर्सेनिक के असर को कम किया जा सकता है। सामान्यतौर पर लोग चावल को तब तक पकाते हैं जब तक यह पूरा पानी सोख न ले। ऐसा करने पर आर्सेनिक चावल में बना रहता है।
शोधकर्ता के मुताबिक, चावल में पानी की मात्रा बढ़ाने पर आर्सेनिक ज्यादा अच्छी तरह से निकलता है। 12 गुना पानी डालने पर 57 प्रतिशत से ज्यादा आर्सेनिक कम हो जाता है। इससे साबित होता है कि तरल पानी में आर्सेनिक गतिशील रहता है। उसे हटाया जा सकता है।
#5) भारत को क्यों अलर्ट होने की जरूरत
दुनियाभर में चावल के उत्पादन में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। नेशनल सैम्पल सर्वे के मुताबिक, शहरों के मुताबिक, देश के गांवों में चावल अधिक खाया जाता है। गांव में एक भारतीय हर महीने 6 किलो चावल खाता है वहीं, शहरी इंसान में यह आंकड़ा 4.5 किलो है।
उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में चावल अधिक खाया जाता है। सैम्पल सर्वे के मुताबिक, देश में दक्षिण, पूर्व और उत्तर-पूर्व के लोगों को चावल काफी पसंद है। ज्यादातर राज्यों में लोग चावल खाना पसंद करते हैं, ऐसे में अलर्ट रहने की जरूरत है।