देशव्यापी जनगणना अब 2025 में ही शुरू हो पाएगी। जनगणना रजिस्ट्रार ने एक आदेश जारी कर राज्यों को अपने मंडलों, जिलों, सब-डिवीजनों, तहसीलों और गांवों की सीमाएं 31 दिसंबर 2024 तक बदलने की छूट दे दी है। पहले यह सीमा 30 जून तक ही थी। दरअसल, जनगणना शुरू कराने के लिए सरकारी सीमाएं सील करना पहली शर्त है। सूत्रों के अनुसार, अब 1 जनवरी 2025 के बाद कभी भी जनगणना शुरू हो सकेगी। सरकारी सीमाएं सील करने के आदेश पिछले दो साल से बढ़ रहा है। इसे देखते हुए उम्मीद जाहिर की जा रही थी कि जनगणना सितंबर में शुरू हो पाएगी। OBC से जुड़ा कॉलम जोड़े जाने पर संशय
जातीय गिनती करने की राजनीतिक मांग को भी जनगणना शुरू होने के मार्ग की बाधा बताया जा रहा है। केंद्र को इस बारे में निर्णय लेना है कि जनगणना में ओबीसी संबंधी सवाल जोड़ा जाए या नहीं। सूत्रों का कहना है कि अगर यह सवाल जोड़ना है तो जनगणना एक्ट में संशोधन करना पड़ सकता है। जनगणना जल्दी पूरी करने के 2 बड़े कारण पहला: साल 2026 में गठित होने वाले डिलिमिटेशन कमिशन के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का नए सिरे से सीमांकन होना है। 2026 तक लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या पर फ्रीज लगा था। आबादी के नए आंकड़ों के हिसाब से इन निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से सीमांकन होगा। संसद की सीटों की संख्या भी बढ़ेगी। दूसरा: इन बढ़ी सीटों के हिसाब से महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी। इसके लिए ऐतिहािसक िवधेयक सितंबर 23 में पारित किया जा चुका है। अगली जनगणना 2035 में होगी 2025 की जनगणना से नया सेंसस चक्र शुरू होगा। 2025 के बाद 2035 और 2045 में जनगणना होगी। 1881 से हर दस साल बाद होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, जो 3 साल की देरी से शुरू होगी। पूरी कवायद 2 से ढाई साल में पूरी होगी। ऐसे में इस डेटा को 2031 तक सीमित रखना तार्किक नहीं होगा। इस बार की जनगणना डिजिटल होगी और सेल्फ इन्यूमिरेशन ऐप का सहारा भी लिया जाएगा। जनगणना की जो कवायद 3 साल में फैली होती है, उसे 18-24 महीनों में पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। जनगणना निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और योजनाएं-नीतियां बनाने के लिए जरूरी
शासन-प्रशासन के लिए जनगणना का बेसिक डेटा बहुत जरूरी है। जनगणना में जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर यह तय होता है की विधानसभाओं और लोकसभा में कितनी सीटें आरक्षित होंगी। जनगणना के आधार पर ही सरकार समाज कल्याण संबंधी नीतियां बनाती है। जनगणना के बाद ही संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होगा। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 2026 तक बढ़-घट नहीं सकती। वर्ष 2021 की आबादी के हिसाब से निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से सीमांकन होना है। इसके हिसाब से सीटें बढ़ सकती हैं। बढ़ी सीटों पर महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें आरक्षित होनी हैं। जातियों की गिनती के लिए एक्ट में संशोधन करना होगा
जनगणना एक्ट 1948 में एससी- एसटी की गणना का प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, मार्च 2023 तक 1,270 एससी, 748 एसटी जातियां हैं। 2011 में एससी आबादी 16.6% और एसटी 8.6% थी। सामाजिक-आर्थिक गणना के आंकड़े जारी ही नहीं हुए
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर इसके एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आंकड़े ही जारी किए गए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि जनगणना का चक्र बदल सकता है। इससे जनगणना की नई साइकल 2025 के बाद 2035 और 2045 की होगी। सूत्रों ने बताया, जनगणना डिजिटल होगी और सेल्फ एन्यूमरेशन एप का सहारा लिया जाएगा। ऐसे संकेत हैं कि सितंबर 2024 में जनपदों की प्रशासनिक इकाइयों की सीमाएं सील करने के तीन महीने के भीतर जनगणना के पहले चरण में हाउस लिस्टिंग का काम शुरू हो जाएगा। यह खबर भी पढ़ें…
बिहार में जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य: यहां 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग, ओबीसी 27% बिहार सरकार ने अक्टूबर 2023 में जातीय गणना के आंकड़े जारी किए थे। इसके साथ ही बिहार जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य बना था। इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36%, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27% हैं। सबसे ज्यादा 14.26% यादव हैं। ब्राह्मण 3.65%, राजपूत (ठाकुर) 3.45% हैं। सबसे कम संख्या 0.60% कायस्थों की है। पूरी खबर पढ़ें…
जातीय गिनती करने की राजनीतिक मांग को भी जनगणना शुरू होने के मार्ग की बाधा बताया जा रहा है। केंद्र को इस बारे में निर्णय लेना है कि जनगणना में ओबीसी संबंधी सवाल जोड़ा जाए या नहीं। सूत्रों का कहना है कि अगर यह सवाल जोड़ना है तो जनगणना एक्ट में संशोधन करना पड़ सकता है। जनगणना जल्दी पूरी करने के 2 बड़े कारण पहला: साल 2026 में गठित होने वाले डिलिमिटेशन कमिशन के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का नए सिरे से सीमांकन होना है। 2026 तक लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या पर फ्रीज लगा था। आबादी के नए आंकड़ों के हिसाब से इन निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से सीमांकन होगा। संसद की सीटों की संख्या भी बढ़ेगी। दूसरा: इन बढ़ी सीटों के हिसाब से महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी। इसके लिए ऐतिहािसक िवधेयक सितंबर 23 में पारित किया जा चुका है। अगली जनगणना 2035 में होगी 2025 की जनगणना से नया सेंसस चक्र शुरू होगा। 2025 के बाद 2035 और 2045 में जनगणना होगी। 1881 से हर दस साल बाद होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, जो 3 साल की देरी से शुरू होगी। पूरी कवायद 2 से ढाई साल में पूरी होगी। ऐसे में इस डेटा को 2031 तक सीमित रखना तार्किक नहीं होगा। इस बार की जनगणना डिजिटल होगी और सेल्फ इन्यूमिरेशन ऐप का सहारा भी लिया जाएगा। जनगणना की जो कवायद 3 साल में फैली होती है, उसे 18-24 महीनों में पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। जनगणना निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और योजनाएं-नीतियां बनाने के लिए जरूरी
शासन-प्रशासन के लिए जनगणना का बेसिक डेटा बहुत जरूरी है। जनगणना में जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर यह तय होता है की विधानसभाओं और लोकसभा में कितनी सीटें आरक्षित होंगी। जनगणना के आधार पर ही सरकार समाज कल्याण संबंधी नीतियां बनाती है। जनगणना के बाद ही संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होगा। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 2026 तक बढ़-घट नहीं सकती। वर्ष 2021 की आबादी के हिसाब से निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से सीमांकन होना है। इसके हिसाब से सीटें बढ़ सकती हैं। बढ़ी सीटों पर महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें आरक्षित होनी हैं। जातियों की गिनती के लिए एक्ट में संशोधन करना होगा
जनगणना एक्ट 1948 में एससी- एसटी की गणना का प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, मार्च 2023 तक 1,270 एससी, 748 एसटी जातियां हैं। 2011 में एससी आबादी 16.6% और एसटी 8.6% थी। सामाजिक-आर्थिक गणना के आंकड़े जारी ही नहीं हुए
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर इसके एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आंकड़े ही जारी किए गए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि जनगणना का चक्र बदल सकता है। इससे जनगणना की नई साइकल 2025 के बाद 2035 और 2045 की होगी। सूत्रों ने बताया, जनगणना डिजिटल होगी और सेल्फ एन्यूमरेशन एप का सहारा लिया जाएगा। ऐसे संकेत हैं कि सितंबर 2024 में जनपदों की प्रशासनिक इकाइयों की सीमाएं सील करने के तीन महीने के भीतर जनगणना के पहले चरण में हाउस लिस्टिंग का काम शुरू हो जाएगा। यह खबर भी पढ़ें…
बिहार में जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य: यहां 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग, ओबीसी 27% बिहार सरकार ने अक्टूबर 2023 में जातीय गणना के आंकड़े जारी किए थे। इसके साथ ही बिहार जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य बना था। इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36%, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27% हैं। सबसे ज्यादा 14.26% यादव हैं। ब्राह्मण 3.65%, राजपूत (ठाकुर) 3.45% हैं। सबसे कम संख्या 0.60% कायस्थों की है। पूरी खबर पढ़ें…