जो बहादुर होते हैं, वो समस्याओं से उबर कर निकलना जानते हैं। कुछ ऐसी ही है झारखंड के गुमला जिले के जारी प्रखंड में जन्मे नेमहस एक्का की कहानी, जो हाथों से दिव्यांग है। लेकिन उसने अपनी दिव्यांगता को कभी अभिशाप बनने नहीं दिया। अपनी दिव्यांगता से लड़ते हुए नेमहस न सिर्फ अपने पैरों से सारे काम निपटाते है, बल्कि पैरों से ही मैट्रिक की परीक्षा लिखकर द्वितीय श्रेणी से पास भी की।
सरकारी सुविधा से भी महरूम
विकलांगता के बावजूद नेमहस तक कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिली है। जारी के आमगांव का रहने वाले नेमहस के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं थे। नेमहस के पैदा होते ही परिजनों में खुशी की बजाय मायूसी थी कि आखिर नेमहस अपनी जिंदगी कैसे गुजर बसर करेगा। लेकिन नेमहस जब समझदार हुआ, तो उसने कभी अपनी दिव्यांगता को बोझ नहीं समझा और अपने सभी काम पैरों से ही करना शुरू किया।
दिव्यांगता के बावजूद जिद कर गया स्कूल
बढ़ती उम्र के साथ ही नेमहस की इच्छा स्कूल जाने की हुई। पर हाथ नहीं होने की वजह से उसके माता-पिता उसे स्कूल नहीं भेज रहे थे। जिसके बाद भी उसने पढ़ने की ठानी और स्कूल जाने की जिद करने लगा। बेटे की जिद देख पिता अमर एक्का ने नेमहस को स्कूल भेजना शुरू किया। नेमहस स्कूल तो चला गया, लेकिन दोनों हाथ नहीं होने की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाता था। दिन भर स्कूल में बैठा रहता था।
अचानक आया पैरों का इस्तेमाल करने का ख्याल
एक दिन नेमहस ने अपने पैरों का इस्तेमाल हाथ के रूप करने की सोची। इसमें काफी वक्त और हिम्मत लगी, किंतु वह हारा नहीं। बचपन से ही खुद को आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा लिए नेमहस नए रास्ते पर निकल पड़ा। इसमें उसे सफलता मिली और धीरे-धीरे वे अपने सारे काम पैरों से ही करने में कामयाब हो गया।