जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों का रिजल्ट आज:5 एग्जिट पोल में NC-कांग्रेस, तो 5 में हंग असेंबली; 10 साल बाद बनेगी नई सरकार

जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों का आज रिजल्ट आएगा। काउंटिंग सुबह 8 बजे से शुरू होगी। शाम तक सभी सीटों पर गिनती पूरी हो जाएगी। हालांकि, दोपहर 12 बजे तक के रुझानों से यह साफ हो जाएगा कि 10 साल बाद सरकार किसकी बनेगी। बहुमत के लिए 46 सीट जरूरी है। जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से 1 अक्टूबर तक 3 फेज में 63.88% वोटिंग हुई थी। 10 साल पहले यानी 2014 में आखिरी बार हुए चुनाव में 65% मतदान हुए थे, यानी इस बार 1.12% कम वोटिंग हुई। नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, भाजपा और PDP के अलावा छोटी पार्टियां मुकाबले में हैं। 5 अक्टूबर को आए एग्जिट पोल में 5 सर्वे एजेंसियों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की सरकार को बहुमत दिया था। वहीं 5 एग्जिट पोल में हंग असेंबली का अनुमान जताया गया है। यानी किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में छोटे दल और निर्दलीय विधायक किंगमेकर होंगे। चुनाव रिजल्ट से पहले 4 नेताओं के बड़े बयान… जम्मू-कश्मीर भाजपा चीफ रविंदर रैना 7 अक्टूबर को ANI को दिए इंटरव्यू में कहा- BJP छोटी पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाएगी। मुझे विश्वास है कि भाजपा कश्मीर में भी अपना खाता खोलेगी। 8 अक्टूबर को भाजपा लगभग 35 सीटें जीतेगी और भाजपा समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों और छोटी पार्टियों के साथ सरकार बनाएगी। वहीं, 6 अक्टूबर को PDP नेता जुहैब यूसुफ मीर ने कहा- भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए हम नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं। इस पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रेसिडेंट फारूक अब्दुल्ला ने खुशी जताई। इसके बाद PDP चीफ महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने 7 अक्टूबर को पार्टी का स्टैंड रखा। उन्होंने X पोस्ट में लिखा- गठबंधन की बात केवल अटकलें हैं। PDP की सीनियर लीडरशिप सेक्युलर फ्रंट को समर्थन पर तभी फैसला करेगी, जब रिजल्ट आएगा। ये हमारा ऑफिशियल स्टैंड है। इंजीनियर राशिद ने जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव फिर से बहाल करने की मांग भी की। उन्होंने कहा- दरबार मूव अच्छी परंपरा थी। इसे फिर से बहाल किया जाना चाहिए। इसने दोनों क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ावा देते हुए एक बंधन तंत्र के रूप में काम किया है। 90 सीटों के सदन में बहुमत के लिए 46 सीटें जरूरी हैं, लेकिन एग्जिट पोल्स की मानें तो इस बार भी हंग असेंबली के आसार हैंं। नतीजे क्या होंगे, इसका अंदाजा थोड़ी देर में लगने लगेगा लेकिन उससे पहले प्रदेश के राजनीतिक समीकरण पर एक नजर… NC-कांग्रेस को मिल सकता है अलायंस का फायदा, निर्दलीय और छोटी पार्टियां निर्णायक
नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन सरकार बनाने के सबसे करीब है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने (NC) 51 और कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा है। वहीं, एक-एक सीट CPI (M) और पैंथर्स पार्टी को दी गई। बाकी बची 5 सीटों पर NC और कांग्रेस दोनों के कैंडिडेट चुनाव में उतरे थे। 2014 में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। तब NC ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं। इस बार एक साथ चुनाव लड़ने से अलायंस को 10 से ज्यादा सीटों का फायदा होता दिख रहा है। इस अलायंस को 35 से 40 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन ये बहुमत से पीछे है। वहीं, सरकार बनाने के लिए अगर NC-कांग्रेस अलांयस को अन्य का सहारा लेना पड़ा तो सज्जाद लोन की जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस (JKPC), अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी, बारामूला से पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को लोकसभा चुनाव में हराने वाले इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तिहाद पार्टी के साथ ही निर्दलीय किंगमेकर बन सकते हैं। इन्हें 10 से 15 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। भाजपा को इस बार भी 25 सीटें मिलने की संभावना लेकिन PDP कमजोर 2014 में 25 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही भाजपा को इस बार भी करीब उतनी ही सीटें मिलने की संभावना है। जहां कांग्रेस-NC गठबंधन कश्मीर घाटी में मजबूत दिख रहा है, वहीं, जम्मू रीजन में भाजपा को बढ़त मिलती दिख रही है। कश्मीर में भाजपा 0-1, NC+कांग्रेस 29-33, PDP सहित अन्य छोटी पार्टियां और निर्दलीय की 12-20 सीटें आ सकती हैं। जम्मू रीजन में भाजपा 27 से 31, NC+कांग्रेस 11 से 15 , PDP सहित अन्य छोटी पार्टियां और निर्दलीय 0 से 3 सीटें जीत सकते हैं। 2014 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली PDP इस बार कमजोर नजर आ रही है। तब पार्टी सबसे ज्यादा 28 सीटें जीतकर पहले नंबर पर रही थी। हालांकि, इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में ही साफ हो गया था कि महबूबा मुफ्ती की पार्टी अपनी जमीन खो चुकी है। चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। खुद महबूबा मुफ्ती अनंतनाग से हार गई थीं। आइए जानते हैं जम्मू-कश्मीर की 7 हॉट सीट्स के बारे में… 1. बिजबेहारा सीट अनंतनाग जिले की बिजबेहरा सीट मुफ्ती परिवार का गढ़ मानी जाती है। इस बार यहां से महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती चुनाव लड़ रही हैं। 1967 से लेकर अब तक 9 विधानसभा चुनावों में 6 बार मुफ्ती परिवार या PDP कैंडिडेट की जीत हुई है। हालांकि, 2014 में PDP कैंडिडेट अब्दुल रहमान सिर्फ 2,868 वोटों से ही जीत सके थे। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में महबूबा मुफ्ती अनंतनाग से हार गई थीं। जम्मू-कश्मीर की राजनीति को समझने वाले एक्सपर्ट कहते हैं बिजबेहरा सीट पर इल्तिजा मुफ्ती को कड़ी टक्कर मिल रही है। PDP के लिए ये सीट खतरे में दिख रही है। उनकी टक्कर NC के बशीर अहमद से है। बशीर के पिता भी 3 बार विधायक रहे हैं। लोकसभा चुनाव में एक बार पूर्व CM मुफ्ती मोहम्मद सईद को हरा भी चुके हैं। 2. गांदरबल गांदरबल सीट पर अब्दुल्ला परिवार का कब्जा रहा है। इस बार यहां से पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चुनाव मैदान में हैं। उनके दादा शेख अब्दुल्ला 1977 और पिता फारूक अब्दुल्ला 1983, 1987 और 1996 में यहां से जीत चुके हैं। NC को इस सीट पर 1977 से लेकर 2014 के तक सिर्फ एक हार मिली है। 2008 में जब ​उमर पहली बार सीएम बने थे, तब वे भी इसी सीट से चुनाव जीते थे। उनके सामने PDP के बशीर अहमद मीर मैदान में हैं। 2014 में उन्होंने कंगन सीट से चुनाव लड़ा था और NC के मियां अल्ताफ को कड़ी टक्कर दी थी। बशीर 2000 से भी कम वोटों से हारे थे। इस बार कंगन सीट एससी के लिए रिजर्व है, इसलिए बशीर गांदरबल से चुनाव लड़ रहे हैं। इनकी भी अच्छी पकड़ मानी जाती है। 2014 में NC से ही इसी सीट पर विधायक रहे शेख इश्फाक जब्बार भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इनके अलावा अब्दुल्ला के सामने कश्मीर घाटी में ‘आजादी चाचा’ के नाम से मशहूर अहमद वागे उर्फ सरजन बरकती से भी है। बरकती पर आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद युवाओं को आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के लिए उकसाने के आरोप हैं। इसके चलते वे जेल में हैं। उमर इससे पहले तिहाड़ जेल से चुनाव लड़े इंजीनियर रशीद से बारामुला सीट पर लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। इन्हीं वजहों से उमर के लिए यह मुकाबला कड़ा माना जा रहा है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बिलाल फुरकानी भी मानते हैं कि भले ही यह सीट अब्दुल्ला परिवार का गढ़ है, लेकिन यहां भी कड़ी टक्कर मिलेगी। यही वजह है कि उमर बडगाम सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं। 3. बडगाम इस सीट पर भी NC का दबदबा रहा है। पिछले 10 विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक बार NC यहां से हारी है। ऐसे में बडगाम भी उमर के लिए सेफ सीट मानी जा रही है। लेकिन कश्मीर के सीनियर जर्नलिस्ट बिलाल फुरकानी कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि गांदरबल से ज्यादा करीबी टक्कर बडगाम सीट पर होगी। PDP कैंडिडेट सैयद मुंतजिर मेहदी से उनकी कड़ी टक्कर होगी। मुंतजिर शिया समुदाय से आते हैं। बडगाम सीट पर शिया मुस्लिम वोटर्स सबसे ज्यादा हैं। उनके पिता आगा सैयद हुसैन मेहदी नामी शिया नेता थे। वे बड़े हुर्रियत नेता भी रहे हैं। ऐसे में यहां काफी नजदीकी चुनाव हो सकता है।‘ सीट पर 30 से 33 हजार वोटर शिया हैं जो जिले की आबादी का करीब 35% है। 2014 में इस सीट से मेहदी के चचेरे भाई आगा सैयद रूहुल्लाह ने NC से चुनाव जीता था। रूहुल्लाह श्रीनगर से सांसद चुने गए हैं। 4. नौशेरा भाजपा के जम्मू-कश्मीर प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना नौशेरा सीट से चुनाव मैदान में हैं। 2014 में वे यहां से विधायक बने थे। 2014 चुनाव में उन्हें कड़ी टक्कर देने वाले PDP कैंडिडेट सुरेंद्र चौधरी इस बार NC से चुनाव लड़ रहे हैं। वे PDP से अलग होकर पहले BJP में शामिल हुए थे। फिर NC में आए और विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि सुरेंद्र चौधरी का अपना वोट बैंक है। 2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को 5,342, जबकि NC को 1,099 वोट मिले थे। इस बार NC और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव मैदान में है। ऐसे में यहां लड़ाई कांटे की होगी। एक खास बात यह है कि रविंदर रैना सबसे कम संपत्ति वाले उम्मीदवारों में दूसरे नंबर पर हैं। रैना ने हलफनामे में अपनी संपत्ति कुल एक हजार रुपए घोषित की है। 5. कुपवाड़ा जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस (JKPC) प्रमुख सज्जाद गनी लोन कुपवाड़ा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। NC ने नासिर असलम वानी और PDP ने मीर मोहम्मद फयाज उम्मीदवार बनाया है। 2014 में इस सीट JKPC के उम्मीदवार बशीर अहमद डार ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कुल 24,754 वोट हासिल किए थे। 6. लंगेट नॉर्थ कश्मीर की लंगेट सीट नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ रही है। लेकिन 2008 में अवामी इत्तिहाद पार्टी के चेयरमैन शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर राशिद ने अपना पहला विधानसभा चुनाव जीतकर स्थिति काफी बदल दी है। 2014 में भी उन्होंने यहां से चुनाव जीता। इसी साल जेल में रहते हुए उन्होंने उमर अब्दुल्ला को बारामूला लोकसभा सीट से हराया है। लंगेट सीट से इस बार उनके भाई खुर्शीद अहमद शेख चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला JKPC नेता और कुपवाड़ा के डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के अध्यक्ष इरफान सुल्तान पंडितपुरी से है। NC और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार इरशाद गनी भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इनके अलावा प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. कलीम उल्लाह भी मैदान में हैं। 7. सोपोर सेब के बागानों के लिए मशहूर रहा सोपोर, 90 के दशक में आतंकवाद के कब्जे में रहा है। यह सीट अलगाववादी नेताओं का गढ़ मानी जाती रही है। अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी इस सीट से तीन बार चुने जा चुके हैं। यही वजह है कि सीट पर मतदान भी कम होता रहा है। 2008 में यहां केवल 19% ही वोटिंग हुई थी। 2014 में यह आकड़ा बढ़कर 30% और इस बार 45.32% रहा है। हालांकि, सीट चर्चा में इसलिए है क्योंकि यहां से संसद हमले का दोषी अफजल गुरु का बड़ा भाई एजाज अहमद गुरु निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है। इस सीट पर NC और कांग्रेस ने अपने अलग-अलग कैंडिडेट उतारे हैं। NC ने इरशाद रसूल कर तो कांग्रेस ने 2014 में यहां से विधायक रहे अब्दुल राशिद डार को दोबारा टिकट दिया है। वहीं, PDP से इरफान अली लोन मैदान में हैं। 2014 में भाजपा और PDP ने सरकार बनाई, सिर्फ 3 साल ही चल सकी
2014 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई। 28 सीटों के साथ PDP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं, भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरी सबसे पार्टी बनी। NC को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। भाजपा-PDP की सरकार बनने और तीन साल के अंदर टूटने की कहानी पढ़ें… 1. भाजपा ने सरकार बनाने के लिए सभी पार्टियों से बात की
23 दिसंबर, 2014 को नतीजे सामने आने के साथ ही सभी पार्टियों ने सरकार बनाने की कोशिश शुरू कर दी। भाजपा ने दावा किया था कि उसके पास निर्दलीय सहित छह विधायकों का समर्थन है। भाजपा के उस समय के जम्मू-कश्मीर प्रभारी राम माधव बोले कि उन्होंने सभी पक्षों से बातचीत की है। कभी NC के साथ रहे और अब भाजपा के नेता देवेंद्र सिंह राणा ने ANI को दिए एक इंटरव्यू में फिर से अपना दावा दोहराया कि उमर अब्दुल्ला भी उस समय भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाने के लिए तैयार थे। हालांकि, उमर ने इससे इनकार करते रहे हैं। 2. उमर अब्दुल्ला ने PDP को समर्थन की पेशकश की, PDP ने भाजपा से गठबंधन किया
करीब दो साल पहले एक रैली में उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि मैं सरकार गठन को लेकर बिना शर्त बाहरी समर्थन देने के लिए मुफ्ती साहब के पास गया था। सरकार बनने के आसार न बनते देख राज्यपाल एनएन वोहरा ने प्रदेश में राज्यपाल शासन (उस समय जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुसार) लागू कर दिया। करीब दो महीने बाद 24 फरवरी, 2015 को भाजपा के तब के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों दलों के साथ आकर सरकार बनाने की घोषणा की। दोनों पार्टियां कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत साथ आईं थीं। हालांकि, दोनों में से किसी ने भी अनुच्छेद-370, अफस्पा आदि पर समझौते की शर्तों का खुलासा नहीं किया। 1 मार्च को जम्मू के जोरावर सिंह स्टेडियम में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा के निर्मल कुमार सिंह उप-मुख्यमंत्री बने। दोनों दलों के 12 कैबिनेट मंत्रियों ने भी शपथ ली। यह पहली बार था कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में सरकार का हिस्सा बनने जा रही थी। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। 3. एक साल में ही टूटा गठबंधन, भाजपा की कोशिशों से दोबारा साथ आई PDP
सरकार बने अभी साल भर भी पूरा नहीं हुआ था कि 7 जनवरी, 2016 को मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया। इसके बाद PDP ने विचारधारा में फर्क का हवाला देकर गठबंधन तोड़ लिया, लेकिन BJP में कोशिशें जारी रखीं। आखिरकार 4 अप्रैल, 2016 को BJP और PDP ने फिर से सरकार बनाई। इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर महबूबा मुफ्ती थीं। 4. 2018 में सरकार गिरी, 2019 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बंटा राज्य
ये सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली। जून, 2018 में गठबंधन टूट गया और सरकार गिर गई। इसके बाद राज्य में 6 महीने तक राज्यपाल शासन रहा। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राष्ट्रपति शासन के बीच ही 2019 के लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें BJP भारी बहुमत के साथ केंद्र में लौटी। इसके बाद 5 अगस्त, 2019 को BJP सरकार ने आर्टिकल-370 खत्म करके राज्य को दो केंद्र-शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया। इसके बाद करीब 6 साल तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा और अब जाकर विधानसभा चुनाव हुए हैं।