बीते 28 जून को राजस्थान के जोधपुर के खेड़ापा में एक युवक के वॉट्सऐप पर प्रधानमंत्री किसान ऐप को लेकर एक मैसेज आया। मैसेज के साथ एक लिंक भी अटैच था, जब युवक ने इस लिंक पर क्लिक किया तो तुरंत उसका मोबाइल हैक हो गया। कुछ ही देर में युवक के बैंक अकाउंट से 2 लाख 75 हजार रुपए कट गए। पीड़ित ने तत्काल जोधपुर ग्रामीण पुलिस की साइबर सेल से मामले की शिकायत की। पुलिस ने तुरंत एक्शन लिया और हैकर्स के बैंक अकाउंट को फ्रीज कर पैसे होल्ड करवाए। इसके बाद पुलिस ने कोर्ट के जरिए पीड़ित के 1 लाख 57 हजार 100 रुपए रिफंड करवाए। ऐसा ही दूसरा केस जोधपुर की शेरगढ़ तहसील क्षेत्र से सामने आया। जहां एक युवक के मोबाइल पर मैसेज आया, जिसमें लिखा था कि ‘केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि योजना से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।’ लिंक पर क्लिक करते ही एक संदिग्ध ऐप मोबाइल में डाउनलोड हो गया। थोड़ी देर बाद युवक के बैंक अकाउंट से 41 हजार 200 रुपए निकल गए। युवक ने तत्काल पुलिस को मामले की सूचना दी। पुलिस ने तत्परता दिखाई और हैकर के बैंक अकाउंट से 12 सितंबर को 41 हजार 200 रुपए रिफंड करवाए। राजस्थान में पिछले कुछ सालों में साइबर क्राइम की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर के मुताबिक बीते 3 सालों में 165 करोड़ रुपए की साइबर ठगी को अंजाम दिया गया, जिसमें पुलिस ने 61 करोड़ रुपए फ्रीज करवाए और पीड़ितों के 9 करोड़ रुपए वापस करवाए। इसलिए आज जरूरत की खबर में बात करेंगे कि फेक ऐप्स या वेबसाइट्स की पहचान कैसे करें? साथ ही जानेंगे कि- एक्सपर्ट: राहुल मिश्रा, साइबर सिक्योरिटी एडवाइजर (उत्तर प्रदेश पुलिस) सवाल- साइबर ठग लोगों को कैसे अपना शिकार बनाते हैं? जवाब- साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट राहुल मिश्रा बताते हैं कि हैकर्स आपका फोन तभी हैक कर सकते हैं, जब आप खुद से कोई गलती करें क्योंकि किसी भी फोन को हैक करने के लिए परमिशन की जरूरत होती है। हैकर्स आपके मोबाइल को हैक करने के लिए सबसे पहले फेसबुक, वॉट्सऐप मैसेज या ई-मेल के जरिए एक लिंक भेजते हैं। इस लिंक में किसी ई-कॉमर्स साइट पर भारी डिस्काउंट, सरकारी योजना का लाभ, घर बैठे पैसे कमाने या बेहद कम ब्याज पर लोन का झांसा देते हैं। जब यूजर इस लिंक पर क्लिक करता है तो एक फर्जी वेबसाइट खुल जाती है या कोई ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा जाता है। इन फिशिंग वेबसाइट्स या ऐप को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि पहली नजर में देखने पर यह बिल्कुल असली लगती है। इसलिए कई बार समझदार यूजर्स भी धोखा खा जाते हैं, लेकिन यह साइट्स फ्रॉड होती हैं और इन पर अपनी डिटेल डालते ही लोग इसका शिकार हो जाते हैं। सवाल- कोई वेबसाइट असली है या नकली, यह कैसे पहचान सकते हैं? जवाब- लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए साइबर क्रिमिनल द्वारा फेक वेबसाइट्स बनाई जाती हैं। इन्हें फिशिंग वेबसाइट भी कहा जाता है। ऑनलाइन सिक्योरिटी और फोन को हैकिंग से बचाने के लिए इन वेबसाइट्स की जांच करना बहुत जरूरी है। किसी भी वेबसाइट पर अपनी डिटेल रजिस्टर्ड करने से पहले कुछ चीजों को जरूर चेक करें। नीचे दिए ग्राफिक से समझिए कि कैसे किसी वेबसाइट की ऑथेंटिसिटी चेक कर सकते हैं। सवाल- अगर किसी फेक वेबसाइट पर चले जाएं तो क्या करें? जवाब- किसी भी फेक वेबसाइट पर अपनी फाइनेंशियल डिटेल, वेरिफिकेशन कोड, सोशल मीडिया अकाउंट पासवर्ड, मोबाइल नंबर या ई-मेल ID जैसी सेंसिटिव जानकारी शेयर न करें। अगर आपको वेबसाइट को लेकर कोई संदेह है तो गूगल के सिक्योर ब्राउजिंग पर जाकर फेक वेबसाइट की रिपोर्ट करें। गूगल सिक्योर ब्राउजिंग यूजर्स को फेक वेबसाइट्स और ऑनलाइन खतरों से बचाती है। सवाल- फेक ऐप्स क्या होते हैं? जवाब- साइबर क्रिमिनल फेक ऐप्स को इस तरह से डिजाइन करते हैं कि वह आमतौर पर वेलिड एप्लिकेशन जैसे लगते हैं। इंस्टॉल करते समय यह ऐप जरूरत से ज्यादा एक्सेस की परमिशन मांगते हैं, जिससे हैकर्स यूजर के डेटा तक पहुंच सकें। फेक ऐप्स कई कारणों से डेवलप किए जाते हैं। जैसेकि- मालवेयर इंस्टॉल कराना: फेक ऐप्स के जरिए स्कैमर्स स्मार्टफोन में मालवेयर इंस्टॉल कर देते हैं, जिससे यूजर का डेटा (पासवर्ड, ईमेल, फोन नंबर) चोरी कर लेते हैं। फाइनेंशियल स्कैम: फेक ऐप्स का इस्तेमाल करके हैकर्स यूजर के UPI ऐप्स तक पहुंच सकते हैं और बैंक अकाउंट से पैसे निकाल सकते हैं। आइडेंटिटी की चोरी: फेक ऐप्स से यूजर की आइडेंटिटी की चोरी कर उसे ब्लैकमेल किया जा सकता है। सवाल- हैकर्स द्वारा भेजे गए फेक लिकं को कैसे पहचान सकते हैं? जवाब- हैकिंग लिंक को पहचानने के लिए लिंक के आखिर में .apk, .exc, .pif, .shs, .vbs जैसे कीबर्ड जरूर देखें। अगर लिंक इन कीबर्ड के साथ खत्म हो रहा है तो इस तरह के लिंक पर बिल्कुल क्लिक न करें। इस पर क्लिक करके आप फ्रॉड का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा ऐनीडेस्क (AnyDesk), टीमव्यूअर (Teamviewer), एयरडॉप (Airdrop) जैसे ऐप्स कभी भी संदिग्ध लिंक के जरिए फोन या लैपटॉप में इस्टॉल न करें। ये रिमोट एक्सेस ऐप होते हैं, इसके मोबाइल में इंस्टॉल होते ही पूरे मोबाइल या लैपटॉप का कंट्रोल साइबर ठगों के हाथ में चला जाता है। इसके बाद वह आपकी गतिविधि पर नजर रख सकते हैं। आपके डेटा की चोरी कर सकते हैं। सवाल- साइबर ठगी का शिकार होने पर क्या पैसे वापस हो सकते हैं? जवाब- साइबर एक्सपर्ट राहुल मिश्रा बताते हैं कि अगर आपके साथ साइबर ठगी हुई है तो तुरंत नजदीकी साइबर सेल पुलिस से इसकी शिकायत करें। इसके अलावा राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल या 1930 पर इसकी शिकायत दर्ज कराएं। अगर शिकायत 30 मिनट के भीतर होगी तो पैसा रिफंड होने की संभावना रहती है क्योंकि साइबर टीम शिकायत मिलते ही सबसे पहले साइबर ठगों का बैंक अकाउंट्स फ्रीज कर देती है। अगर साइबर ठग ने तब तक उन पैसों को ATM से नहीं निकाला है तो वह रिफंड हो सकता है। शिकायत में देरी करने से पैसे के रिफंड होने की उम्मीद न के बराबर है।