जाकिर हुसैन को पंडित रविशंकर ने उस्ताद कहा था:अपना तबला खुद उठाते थे; सबसे कम उम्र में पद्मश्री मिला, एक साथ 3 ग्रैमी अवॉर्ड जीते

दुनियाभर में मशहूर तबला वादक पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को में 73 साल की उम्र में निधन हो गया। उस्ताद ने तबले को आम आदमी की समझ में आने वाला म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बनाया। वे कहते थे- तबले के बिना जिंदगी है, ये मेरे लिए सोचना असंभव है पिता ने कान में तबले के बोल सुनाए, कहा- यही मेरी दुआ
2018 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में फेस्टिवल के प्रोड्यूसर संजॉय रॉय के साथ उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने जीवन के पन्नों को खोला था। लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर ने जाकिर हुसैन पर पुस्तक ‘जाकिर हुसैन: ए लाइफ इन म्यूजिक’ लिखी थी। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सेशन ‘ए लाइफ इन म्यूजिक’ में उस्ताद जाकिर हुसैन ने कहा था- जब मैं पैदा हुआ तो मां ने मुझे पिता उस्ताद अल्लारक्खा की गोद में रखा। दस्तूर के मुताबिक उन्हें मेरे कान में एक प्रार्थना सुनानी थी। पिता बीमार थे, लेकिन फिर भी वो अपने होंठों को मेरे कानों के बिल्कुल करीब ले आए और तबले के कुछ बोल सुनाए। मां नाराज हुईं और कहा कि यह तो अपशकुन है। पिता ने जवाब दिया कि संगीत मेरी साधना है और सुरों से मैं सरस्वती और गणेश की पूजा करता हूं। इसलिए यही सुर-ताल मेरी दुआ है। अपने तबले हाथों में लेकर आते थे, किसी और को उठाते नहीं देखा
जयपुर के पद्म भूषण और ग्रैमी अवॉर्ड विनर मोहन वीणा वादक पं. विश्वमोहन भट्ट से उस्ताद जाकिर हुसैन का गहरा लगाव था। यही वजह है कि एक बार वे जयपुर आए तो विश्वमोहन भट्‌ट के साथ स्कूटर पर बैठकर उनके घर गए थे। उन्होंने जाकिर हुसैन के साथ जुड़ी यादों और अनुभवों को दैनिक भास्कर के साथ शेयर किया। पंडित विश्वमोहन भट्ट ने बताया- हमने कई बार साथ में भी परफॉर्म किया। एक बार चेन्नई (तमिलनाडु) में कार्यक्रम था। मेरे साथ पंडित विक्कू विनायक राम भी थे। उस्ताद जाकिर हुसैन भी आए थे। यह अब तक का सबसे यादगार कार्यक्रम रहा। इसे चेन्नई की म्यूजिक एकेडमी ने आयोजित किया था। उस्ताद जाकिर हुसैन अपने दोनों हाथों से तबले लेकर आए। हमने कभी किसी और को उनके तबले उठाते नहीं देखा। यह एक बड़े कलाकार की निशानी होती है। तबले को उस्ताद ने आम आदमी तक पहुंचाया
पंडित विश्वमोहन भट्‌ट ने बताया- तबले को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय सिर्फ उस्ताद जाकिर हुसैन को है। उन्होंने इस वाद्य को इतना सरल बनाया कि घोड़े की टाप, शंकर भगवान का डमरू और मंदिर की घंटी उनके तबलों की थाप से सुनाई देती थी। वे असली एंटरटेनर थे। शास्त्रीय संगीत के शास्त्र को पब्लिक को आसानी से समझाना उनकी खूबी थी। पंडित बिरजू महाराज ने भी ऐसे ही कथक के साथ किया था। पहला प्रोफेशनल शो 11 साल की उम्र में किया
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को महाराष्ट्र में उस्ताद अल्लारक्खा और बावी बेगम के घर हुआ था। जाकिर का बचपन पिता की तबले की थाप सुनते ही बीता और 3 साल की उम्र में जाकिर को भी तबला थमा दिया गया, जो उनसे फिर कभी नहीं छूटा। पिता और पहले गुरु उस्ताद अल्लारक्खा के अलावा जाकिर ने उस्ताद लतीफ अहमद खान और उस्ताद विलायत हुसैन खान से भी तबले की तालीम ली। जाकिर ने पहला प्रोफेशनल शो 11 साल की उम्र में किया था, जिसके लिए उन्हें 100 रुपए मिले थे। तबले के साथ फ्यूजन म्यूजिक में कई प्रयोग में महारथ
शास्त्रीय संगीत में तो उन्हें महारत हासिल थी ही, कॉन्टेंपरेरी वर्ल्ड म्यूजिक, यानी पश्चिम और पूर्व के संगीत को एक साथ लाने के कामयाब प्रयोग की वजह से उन्हें काफी कम उम्र में ही इंटरनेशनल आर्टिस्ट के रूप में ख्याति मिली। मिकी हार्ट, जॉन मैक्लॉफ्लिन जैसे आर्टिस्ट्स के साथ फ्यूजन म्यूजिक बनाने के दौरान ही उन्होंने अपना बैंड ‘शक्ति’ भी शुरू किया। फ्यूजन म्यूजिक बनाने के बाद भी उन्होंने कभी तबले को नहीं छोड़ा, क्योंकि उनके मुताबिक तबला बचपन से उनके साथ एक दोस्त और भाई की तरह रहा। जाकिर हुसैन उस दुर्लभ योग्यता के तबलावादक थे, जिन्होंने सीनियर डागर ब्रदर्स, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब से लेकर बिरजू महाराज और नीलाद्रि कुमार, हरिहरन जैसे 4 पीढ़ियों के कलाकारों के साथ तबले पर संगत की। सिनेमा जगत में भी उस्ताद जाकिर हुसैन का योगदान अहम है। ‘बावर्ची’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘हीर-रांझा’ और ‘साज’ जैसी फिल्मों के संगीत में उस्ताद की बड़ी भूमिका थी। सिर्फ संगीत ही नहीं लिटिल बुद्धा और साज जैसी फिल्मों में उस्ताद ने एक्टिंग भी की थी। जाकिर हुसैन को सबसे कम उम्र में पद्मश्री मिला
जाकिर हुसैन को 1988 में सबसे कम उम्र (37 साल) में पद्मश्री से नवाजा गया। हुसैन को पद्मश्री मिलने पर खुशी से गदगद गुरु और पिता उस्ताद अल्लारक्खा ने उन्हें हार पहनाया था। एक शागिर्द के लिए इससे बेहतरीन और यादगार क्षण और क्या हो सकता है। उसी समय पहली बार पंडित रविशंकर ने जाकिर को उस्ताद कहकर संबोधित किया था। इसके बाद यह सिलसिला कभी नहीं थमा। जाकिर के को-क्रिएट किए गए एल्बम ‘प्लेनेट ड्रम’ में हिंदुस्तानी और विदेशी ताल विद्या को मिलाकर रिकॉर्डिंग की गई थी, जो उस वक्त दुर्लभ था। यही वजह थी कि उस वक्त इस एल्बम के करीब 8 लाख रिकॉर्ड्स बिके थे। उस्ताद को 2002 में पद्म भूषण, 2006 में कालिदास सम्मान, 2009 में उनके ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ एल्बम को ग्रैमी अवॉर्ड मिला। 2023 में पद्म विभूषण और 4 फरवरी 2024 को 66वें एनुअल ग्रैमी अवॉर्ड्स में एक साथ 3 ग्रैमी अवॉर्ड्स जीत कर उन्होंने इतिहास रच दिया। साल 2010 में उस्ताद अल्लारक्खा इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक की तरफ से उन्हें पंजाब घराने के तबला वादन के सबसे बड़े गुरु होने की उपाधि दी गई। उस्ताद के इंटरेस्टिंग किस्से ———————————– उस्ताद जाकिर हुसैन से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन:परिवार ने पुष्टि की, 73 साल के थे; 2023 में मिला था पद्म विभूषण विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का 16 दिसंबर को निधन हो गया। सोमवार सुबह उनके परिवार ने इसकी पुष्टि की। परिवार के मुताबिक हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थे। पहले 15 दिसंबर की रात उनके निधन की खबर आई थी। पूरी खबर पढ़ें… जयपुर की सड़कों पर स्कूटर से घूमे थे जाकिर हुसैन:ग्रैमी अवॉर्ड विनर बोले-खुद उठाते थे तबला जयपुर के पद्मभूषण और ग्रैमी अवॉर्ड विनर मोहन वीणा वादक पं. विश्वमोहन भट्ट से उस्ताद जाकिर हुसैन का गहरा लगाव था। यही वजह है कि एक बार वे जयपुर आए तो विश्वमोहन भट्‌ट के साथ स्कूटर पर बैठकर उनके घर गए थे। पूरी खबर पढ़ें