जिंदगी के लिए मोहब्बत जगाती है ‘दिल बेचारा’, इसे देखकर दिल कहता है- सुशांत, तुम्हें भी उम्मीद नहीं छोड़ना थी!

सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ का प्रीमियर शुक्रवार शाम 7.30 बजे ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर हुआ। फैन्स इस फिल्म को लेकर थाेड़े रुआंसे भी हैं और थोड़े खुश भी, इसीलिए इसके रिलीज होने का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे। इसे लेकर क्रेज ऐसा है कि ट्विटर पर शाम से ही नंबर 1 पोजिशन पर #DilBecharaDay हैशटेग ट्रेंड कर रहा है।

फिल्म का प्लॉट

‘दिल बेचारा’ हॉलीवुड फिल्‍म ‘दी फॉल्‍ट इन ऑवर स्‍टार्स’ की रीमेक है। यानी ‘हमारे तारों में खरोंच है’। यह सवाल से शुरू होती है और सवाल पर ही खत्‍म कि ‘क्‍या किसी के जाने के बाद खुशी से रहा जा सकता है’? ‘क्‍या अधूरेपन के साथ जीने को मजबूर लोग खुश रह सकते हैं? ‘किसी के जाने के ख़याल को क्‍या स्‍वीकार किया जाए? ‘जिंदगी कुछ लोगों के साथ बहुत बेरहम क्‍यों है?’

कहानी ऐसे आगे बढ़ती है

कहानी के हीरो इमैनुएल जूनियर राजकुमार उर्फ मैनी को बीमारी के चलते एक पांव खोना पड़ता है। हीरोइन किज्‍जी बासु थॉयरॉयड कैंसर पीड़ित है। मैनी के दोस्त जगदीश पांडे को आंख की बीमारी है। आगे चलकर उसका अंधा होना तय है। इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद हर किरदार के अपने सपने हैं। किज्‍जी को अपने फेवरेट सिंगर अभिमन्‍यु वीर से मिलना है। मैनी को किज्‍जी का सपना पूरा करना है।

कहानी जमशेदपुर जैसी जगह से निकलकर आगे बढ़ती है। प्लॉट बहुत कस्बाई नहीं है। मिजाज से कॉस्‍मोपॉलिटन है, पर युवाओं के मासूम सवाल हैं। एक हद तक पलायनवाद भी है। कड़वी हकीकतों से दूर जाने का इरादा है। इसे सकारात्‍मक तौर पर देखा जाए तो इसे ‘लीप ऑफ फेथ’ भी कह सकते हैं। यह किरदारों में झलकती है। नजदीक आती मौत से दूर भागने की जद्दोजहद कभी इंस्पायर करती है तो कभी परेशान, तो कभी हैरान।

मैनी खुशमिजाज रहने की कोशिश करता है। किज्‍जी को जीने की वजह देता है। पर उसे पता है कि आखिरकार क्‍या होने को है। वह किसी हाल में उम्‍मीद का दामन नहीं छोड़ता। यह किज्‍जी में बदलाव लाता है। यहां एक प्रेरक, भावनात्मक कहानी जिसमें बलिदान, कड़ी सच्चाई और सच्चे प्यार के बारे में सकारात्मक संदेश हैं। यह भी जाहिर होता है कि बुरी चीजें सामान्य से अधिक प्रेरक हो सकती हैं।

सुशांत की ताकत नजर आई

मुकेश छाबड़ा की बतौर डायरेक्‍टर यह पहली फिल्‍म है। उन्‍होंने सुशांत की ताकत का सही इस्‍तेमाल किया है। बस थोड़ा और झिंझोड़ने में वह रह गए हैं। गम को जरा और पैना करते तो फिल्‍म गहरा असर छोड़ती।स्क्रिप्ट राइटर शशांक खेतान ने फिल्‍म का देसीकरण किया है। कहानी जमशेदपुर से पेरिस सफर करती है। मौत के जोखिम से लगातार आंख मिचौली कर रहे किरदारों को सहज भाव से पेश किया है, मगर जरा सी दिक्‍कत बेहतर संवाद देने में रह गई है। वह सोच देने में कसक सी है, जो मौत जैसे एक बड़े सवाल का असरदार जवाब दे सकती थी।

एक कमी भी, लेकिन वो अखरती नहीं

राजेश खन्‍ना वाली ‘आनंद’ को छोड़ दिया जाए तो अब तक इन सवालों को टटोलती फिल्‍में आमतौर पर इस कमी से जूझती रही हैं। सधे हुए जवाब की तलाश यहां भी रह जाती है। हालांकि, इसकी कमी अखरती नहीं। उसकी ठोस वजह मैनी की भूमिका रचे बसे सुशांत हैं। मैनी की जिजीविषा, खिलंदड़पन, मासूमियत, उदासी, बेचैनी, आदतें हर कुछ को उन्‍होंने जीवंत किया है। उनके काम में वो सुकून नजर आया है जो उनकी खूबी थी।

इन कलाकारों को भी याद रखिएगा

  • किज्‍जी बासू बनी संजना सांघी के लिए यह मुश्किल रोल था। उसे उन्‍होंने एक हद तक ठीक निभाया है। बाकी कलाकारों में साहिल वैद्य, शाश्‍वस्‍त चटर्जी और स्‍वास्तिका मुखर्जी कैरेक्‍टर के अंदर ठीक से बने रहे हैं।
  • आरिफ शेख की एडिटिंग चुस्‍त रही है। सिनेमैटोग्राफर ने जमशेदपुर और पेरिस दोनों को उम्‍दा कैप्‍चर किया है।
  • एआर रहमान ने अमिताभ भट्टाचार्य के साथ फिल्‍म के सुर के साथ न्‍याय किया है। गानों में वो एहसास हैं, जो शायद मौत की गोद में सिर रखे लोगों की होती होगी।

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Dil Bechara Movie Review| A love story involving two cancer patients, starring Sushant Singh Rajput and Sanjana Sanghi. Based on the novel `The Fault in Our Stars’ by John Green.