जीवन में सुविधाएं नहीं, संतोष और शांति जरूरी है:संत की राजा को सीख – जो व्यक्ति कम संसाधनों में भी प्रसन्न रहता है, वही सबसे बड़ा धनी है

ये भ्रम है कि जिसके पास सुख-सुविधाओं की चीजें हैं, वही सबसे सुखी है। महंगे कपड़े, आलीशान घर, धन-संपत्ति से सुख-शांति नहीं मिलती है। ये बात एक पुरानी लोककथा से समझ सकते हैं। इस कथा में एक संत ने राजा को सीख दी है कि जो व्यक्ति कम संसाधनों में भी प्रसन्न रहता है, वही सबसे बड़ा धनी है। जीवन में सुविधाएं नहीं, संतोष और शांति सबसे जरूरी है। कथा के मुताबिक, पुराने समय में एक राजा था, जिसके पास हर प्रकार की भौतिक सुविधा मौजूद थी, बड़ा राज्य, अपार धन, विशाल सेना। उसे अपने वैभव पर बड़ा घमंड था। इस राजा के राज्य में एक संत आए, जिनके विचारों और प्रवचनों ने लोगों के मन को छू लिया। कई लोग संत के प्रवचन सुनने पहुंच रहे थे। जब राजा को संत के बारे में मालूम हुआ तो उसने संत को अपने महल में आमंत्रित किया और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करते हुए, उन्हें भोजन पर बुलाया। संत राजा के महल पहुंचे और भोजन किया। इसके बाद राजा ने संत से गर्व से कहा कि मेरे पास दुनिया का हर सुख है। मैं संसार का सबसे सुखी व्यक्ति हूं। आप जो चाहें, मुझसे मांग सकते हैं। संत मुस्कुराए और बोले, “राजन, मेरी आवश्यकताएं बहुत कम हैं, मेरा मन शांत है और मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं। असली सुखी वही है, जिसका अंतिम समय भी शांत और संतोषजनक हो।” राजा को ये बात अच्छी नहीं लगी। उसने संत को तुरंत अपने महल से जाने के लिए कह दिया। इस घटना के कुछ समय बाद, शत्रुओं ने उस राजा के राज्य पर हमला कर दिया। युद्ध में राजा हार गया, बंदी बना लिया गया। अब राजा कैद में था। तभी उसे संत की बात याद आई कि अंतिम समय में जो व्यक्ति शांत और संतोषी है, वही असली सुखी व्यक्ति है। विरोधी राजा के दरबार में घमंडी राजा बंदी बना हुआ खड़ा था। उस समय वह संत भी दरबार में पहुंच गए। संत को देखकर बंदी बना राजा उनके चरणों में गिर पड़ा। उसने स्वीकार किया कि सच्चा सुख अंत में शांति और संतोष में ही है, न कि सुख-सुविधा की चीजों में है। संत के कहने पर विरोधी राजा ने उस बंदी राजा को मुक्त कर दिया। राजा ने संत को धन्यवाद कहा और अहंकार छोड़ने का संकल्प लिया। इस कथा से हमें ये समझने को मिलता है कि धन-संपत्ति तात्कालिक सुख दे सकती है, लेकिन स्थायी सुख शांति और संतोष से ही मिलता है। मन की शांति और संतोष ही वास्तविक समृद्धि है। जो व्यक्ति कम संसाधनों में भी प्रसन्न रहता है, वही असल में सबसे धनी है। सुखी जीवन के लिए ध्यान रखें ये बातें जीवन को सफल बनाने के लिए जरूरी नहीं कि हमारे पास सब कुछ हो; जरूरी ये है कि जो है, उसमें मन संतुष्ट और शांत हो। सुख की खोज बाहर नहीं, भीतर से शुरू होती है और यह सीख ही हमें एक राजा की हार और एक संत की बातों से मिलती है।