‘मार्च में लॉकडाउन लगा तो हमारा काम पूरी तरह बंद हो गया। हम शादियों में जाते थे, शादी-ब्याह, बच्चा पैदा होने पर हम घरों में जाते थे लेकिन अब तो लोग अपने घरों में घुसने भी नहीं देते। बच्चे वाले घरों में जाओ तो लोग बाहर से ही नमस्ते कर लेते हैं। हमारी बिरादरी के कुछ लोग सेक्स वर्कर हैं, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के बीच ये काम नामुमकिन है। टीवी, फ्रिज, मोबाइल बेचकर घर का किराया और दो वक्त का खाना जुटाने को मजबूर हैं।’ ये कहानी ट्रांसजेंडर समुदाय की निरवैर कौर की है। दिल्ली की ट्रांसजेंडर निरवैर कहती हैं, बहुत महीनों बाद मैं पिछले रविवार को नजफगढ़ के बाजार गई थी कि कुछ पैसा मिल जाए। दिनभर घूमी और मिले 290 रुपए। इतने बुरे दिन कभी नहीं देखे।
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2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 4 लाख 80 हजार ट्रांसजेंडर्स है। लेकिन इनमें से इलेक्शन कमीशन में सिर्फ 30 हजार ही रजिस्टर्ड हैं। ट्रांसजेंडर के लिए काम करने वाले एनजीओ कहते हैं कि अब इनकी आबादी 20 लाख से भी ज्यादा है, क्योंकि जनगणना के वक्त भी सही आंकड़े नहीं आ सके थे।
निरवैर कहती हैं, मुझे तो खुशकिस्मती से पिछले महीने दिल्ली में ही एक लॉजिस्टिक कंपनी में नौकरी मिली है। पहली सैलरी 7 तारीख को आएगी। उसका बेसब्री से इंतजार है। यदि मेरे अच्छे कॉन्टैक्ट नहीं होते तो लॉकडाउन नहीं निकल पाता। मेरे कुछ दोस्त डॉक्टर हैं। कुछ बिजनेसमैन हैं। उन्होंने बहुत मदद की। तभी किराया दे पाई और खाना पीना चल पाया। लेकिन हमारे ग्रुप के लोगों के हालात बहुत खराब है। जो किराया नहीं दे पाए, उन्हें घर छोड़ना पड़ा। गुड़गांव, दिल्ली में कई जगह हमारे इलाके हैं, जहां हमारी झुग्गियां हैं, जो किराया नहीं दे पाए वो झुग्गियों में लौटे आए हैं। लॉकडाउन में बहुत सी नई झुग्गियां बन गईं। यहां हमारे वो साथी भी रहते हैं, जो जिस्म बेचकर पैसा कमाने पर मजबूर हैं, लेकिन इन्हें भी अब कोई ग्राहक नहीं मिल रहा।
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2018 में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने ट्रांसजेंडर्स को लेकर एक अध्ययन किया था, जिसमें सामने आया था कि ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों में बड़े पैमाने पर समझौता किया जाता है। वे खुद को अलग महसूस करते हैं। घरों, समुदायों और संस्थानों के भीतर सामाजिक लैंगिक भेदभाव के बीच उन्हें जीना पड़ रहा है। अब लॉकडाउन ने इन लोगों की मुसीबतों को पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है।
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पिछले 20 साल से हमसफर ट्रस्ट के जरिए ट्रांसजेंडर की मदद कर रहीं सौम्या गुप्ता खुद भी ट्रांसजेंडर हैं। हमने उनसे ट्रांसजेंडर्स के हालातों के बारे में पूछा तो बोलीं, पहले एक पॉजिटिव पॉइंट बताती हूं। मार्च में जब लॉकडाउन लगा तो उसके कुछ ही दिनों बाद मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट ट्रांसजेंडर की मदद के लिए आगे आई थी। ट्रांसजेंडर्स से ऑनलाइन फॉर्म भरवाकर अप्रैल में 1500-1500 रुपए की मदद हर ट्रांसजेंडर को सरकार ने दी। हालांकि यह मदद महज 6 से 7 हजार ट्रांसजेंडर्स को ही मिल पाई क्योंकि बाकी लोगों को शायद इसके बारे में पता ही नहीं चला।
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पिछले दिनों बिहार के गांव में एक ट्रांसजेंडर के बाल काट दिए गए और उसे शर्ट-पेंट पहना दिया गया। वो कुछ ही दिनों पहले शहर से गांव गया था। इसी तरह मुंबई में एक ट्रांसजेंडर को मेल वॉर्ड में रखने की बात भी ट्रस्ट को पता चली थी। सौम्या के मुताबिक, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, मणिपुर जैसे कुछ राज्यों में तो ट्रांसजेंडर्स के लिए कोरोना के अलग बेड रखे गए थे, लेकिन सभी जगह ऐसा नहीं हुआ। जबकि सरकार को एक वॉर्ड ट्रांसजेंडर्स के लिए भी रखना था। अब किसी ट्रांसजेंडर को मेल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया जाए तो वो कैसे रह सकेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
वे कहती हैं, मजदूरों ने तो पलायन कर लिया। शहर से अपने गांव चले गए। लेकिन ट्रांसजेंडर कहां जाएं। हमें तो सब जगह से निकाल दिया जाता है इसलिए हम अपनी टोली बनाकर अलग रहते हैं, लेकिन खाने-पीने को ही नहीं मिलेगा तो मरने की नौबत आ जाएगी। जैसा बीते कुछ महीनों से चल रहा है। जो पुराना जुड़ा था, उसी से दाल-रोटी चल रही है। बहुत से चेलों को अपने गुरूओं से मदद मिली है। किसी ने किराया दिया है तो किसी ने राशन भरवाया है, लेकिन अब वो भी कब तक करेंगे।
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अधिकतर किन्नर भाड़े पर रहते हैं, उनके पास खुद का घर नहीं है। लॉकडाउन लगने के बाद एक, दो महीने मकान मालिकों ने उनकी मदद की लेकिन अब वो घर छोड़ने को मजबूर हैं। किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी कहती हैं, लॉकडाउन में कुछ जगह किन्नरों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश भी हुई। हैदराबाद, तेलंगाना में पोस्टर लगाए गए कि किन्नरों से न मिलें। उन्हें दक्षिणा न दें। वरना कोरोना का शिकार हो सकते हैं। सरकार ने एक बार 1500 रुपए डालकर मदद जरूर की लेकिन यह मदद बमुश्किल एक परसेंट किन्नरों को ही मिल सकी। अब दो ईद निकल गईं, होली निकल गई, सावन निकलने को है। हमारी कम्युनिटी फिर सड़कों पर आ रही है। शायद दीवाली-दशहरे तक हालात कुछ ठीक हों।।
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भोपाल में ट्रांसजेंडर्स के दो घराने हैं। एक है मंगलवारा और दूसरा बुधवारा घराना है। यहां करीब 400 से 500 ट्रांसजेंडर्स रहते हैं। मंगलवारा किन्नर समाज की अध्यक्ष देवी रानी के मुताबिक, कुछ लोग हमारी मदद के लिए आगे आए लेकिन वो इक्का-दुक्का ही हैं। सरकार से हमें कुछ नहीं मिला। सुबह से रात सब घर में ही रहते हैं क्योंकि बाहर जा भी नहीं सकते और अभी तो कोई कुछ देगा भी नहीं। इस बार का सावन भी बीतने को है और हम कुछ नहीं मांग पाए इसलिए सोचा है कि सावन भले ही निकल जाए लेकिन सावन के बाद हम सावन वाला मांगने निकलेंगे। तब तक सब खुल भी जाएगा।
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दिल्ली में तो चौराहों पर लालबत्ती के किनारे किन्नर निकलना शुरू हो चुके हैं, क्योंकि अब सवाल भूख का है। टोली बनाकर घरों में भी जा रहे हैं, लेकिन वहां कोई बातचीत नहीं कर रहा। लेकिन वो न तो मास्क पहनते हैं न ही सैनिटाइजर इस्तेमाल कर रहे हैं। कहते हैं ये सब खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं है। हां कभी-कभी दुपट्टा मुंह पर बांध लेते हैं, आखिर कोरोना का खतरा तो उन्हें भी है। ट्रांसजेंडर तराना कहती हैं, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद हमारे लिए लोगों की थोड़ी सोच बदली तो है। अब सरकारी फॉर्म में ट्रांसजेंडर वाला ऑप्शन भी दिखने लगा लेकिन जो बदलाव हम चाहते हैं वो अभी नहीं दिखता।
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