भास्कर न्यूज|नई दिल्ली
आत्महत्या के मामले में भारत एशिया में तीसरे स्थान पर है, जिसकी एक बडी वजह है तनाव। देश में आत्महत्या करने वालों में करीब 67 फीसदी युवाओं की संख्या है। यह बात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मनोरोग विभाग और नेशनल ड्रग रिएक्शन ट्रीटमेंट सेंटर में सीनियर रेजिडेंट डॉ. श्रीनिवास राजकुमार ने कही। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के उपलक्ष्य में शुरू किए गए जागरूकता अभियान के बारे में उन्होंने कहा देश में बढ़ते आत्महत्या को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। यह समाज की जिम्मेदारी हैं कि वह ऐसे मामलों को रोके। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2019 के रिकार्ड के तहत 1.39 लाख भारतीयों ने आत्महत्या की। इसमें 67 फीसदी युवा है। इनमें 50 फीसदी लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या की, जबकि बाकी ने अन्य तरीके से आत्महत्या की। आत्महत्या करने वाले 18-45 वर्ष के लोगों में केवल 7 फीसदी में ही मानसिक बीमारी पाई गई है। जबकि 45 फीसदी मामले विवाह, परिवार और संबंध मुद्दों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में आत्महत्या के लिए अग्रणी कारकों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। केवल मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में आत्महत्या को खारिज नहीं किया जा सकता।
लॉकडाउन में बढ़ी आत्महत्या में घटनाएं
कोरोना महामारी के दौरान देशभर में लगाए गए लॉकडाउन के बाद बड़े स्तर पर लोग तनाव का शिकार हुए हैं। डॉ श्रीनिवास राजकुमार ने बताया कि कोरोना काल में बड़े स्तर पर नौकरियां गई। लोगों के बीच आर्थिक तंगी आई, जिस कारण लोग तनाव में आ गए। इस दौरान बड़ी संख्या में आत्महत्याएं बढ़ी है। आत्महत्या की रोकथाम के प्रयासों को मानसिक स्वास्थ्य के अलावा सामाजिक और आर्थिक कारकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
बात करो, घट जाएगी आत्महत्या की घटनाएं
आत्महत्या के बारे में बोलने से आत्महत्या का खतरा नहीं बढ़ता। मन के अंदर यदि आत्मघाती विचार आते हैं और इस संबंध में हम दोस्त से बात करते हैं तो आत्महत्या के विचार मन में घर नहीं करते। ऐसे में आत्महत्या की रोकथाम के लिए सभी को संदेश फैलाना चाहिए।