दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले एक बार फिर से लगातार बढ़ते जा रहे है। इसको लेकर दिल्ली सरकार की चिंता फिर बढ़ने लगी है। इसका एक दूसरा कारण निजी अस्पतालों में दूसरे राज्यों के मरीजों का भर्ती होना भी है। ऐसे में दिल्ली सरकार के सामने सवाल खड़ा हो रहा है कि आने वाले समय में मरीजों की संख्या बढ़ने की रफ्तार तेज होने पर दिल्ली के मरीज इलाज कराने कहां जाएंगे?
आंकड़ों के अनुसार दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में करीब 14151 हजार बेड है। इनमें से करीब 4805 बेड पर मरीज भर्ती है। इनमें से 1500 मरीज दूसरे राज्यों के निवासी है। यानी कुल बेड में 33 फीसद कोरोना मरीज दूसरे राज्यों के है। हालांकि राहत की बात यह है कि दिल्ली में अभी भी 70 फीसद बेड खाली है। दिल्ली के 131 कोविड अस्पताल में से सिर्फ 3 अस्पताल में बेड पूरी तरह भरे हैं।
अस्पतालों में बेड की व्यवस्था के बारे में पूछे जाने पर दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अभी दिल्ली में बेड की कोई कमी नहीं है। लेकिन दूसरे राज्यों के मरीजों की बढ़ती संख्या चिंता कारण है। अधिकारी ने कहा कि पूरे देश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। । इसमें गंभीर बात यह है कि दिल्ली के प्रमुख निजी अस्पताल के सभी आईसीयू बेड भर चुके है। इसमें मैक्स साकेत, मैक्स पड़पड़गंज, इंद्रप्रस्थ अपोलो, फोर्टिस वसंत कुंज शामिल हैं। इनमें 70 फीसद मरीज दूसरे राज्यों के हैं।
उपराज्यपाल ने पलट दिया था दिल्ली सरकार का फैसला
बता दें जून में कोरोना मरीजों को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव हो चुका है। अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को लेकर दिल्ली सरकार ने एक सर्वे कराया था। उसमें आए सुझाव के आधार पर फैसला लेने के लिए डा. महेश वर्मा के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी। डॉ महेश वर्मा की कमेटी की सिफारिशों के बाद जून के पहले सप्ताह में केजरीवाल कैबिनेट ने फैसला लिया था कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों और यहां के निजी अस्पतालों में केवल दिल्लीवासियों का इलाज होगा। वहीं केंद्र सरकार के अस्पतालों में देशभर के लोग इलाज करा सकते हैं। यह व्यवस्था कोरोना काल तक लागू रहेगी। हालांकि उपराज्यपाल के अगले ही दिन दिल्ली कैबिनेट के फेसले को पलट दिया था। उन्होंने अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में दूसरे राज्यों के मरीज भी उपचार करा सकेंगे।
