दिल्ली विधानसभा की 70 विधानसभा सीटों के लिए बुधवार को सिंगल फेज में वोटिंग होगी। लोकसभा चुनाव में INDIA ब्लॉक का हिस्सा रहीं पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। इनमें आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस सभी 70 सीटों पर आमने-सामने हैं। वहीं, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) ने 6, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्कसिस्ट (CPM) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्कसिस्ट लेनेनिस्ट (CPI-ML) ने 2-2 प्रत्याशी उतारे हैं। भाजपा ने 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और दो सीटें सहयोगी पार्टियों को दी हैं। इसमें जनता दल- यूनाइटेड (JDU) ने बुराड़ी और लोक जनशक्ति पार्टी- रामविलास (LJP-R) ने देवली सीट से प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने भाजपा के खिलाफ 30 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। जबकि शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के डिप्टी CM एकनाथ शिंदे ने सभी सीटों पर भाजपा के समर्थन की घोषणा की है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी (BSP) 70 और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) 12 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। चुनाव के नतीजे 8 फरवरी को आएंगे। 19% उम्मीदवार दागी, 81 पर हत्या-बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज चुनाव आयोग के मुताबिक निर्दलीय समेत विभिन्न पार्टियों के कुल 699 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने इन सभी उम्मीदवारों के हलफनामों की जांच करके एक रिपोर्ट तैयार की है। इसके मुताबिक करीब 19 फीसदी यानी 132 उम्मीदवार आपराधिक छवि के हैं। इनमें से 81 पर हत्या, किडनैपिंग, बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। 13 उम्मीदवार महिलाओं के खिलाफ अपराधों के आरोपी हैं। 5 उम्मीदवारों के पास ₹100 करोड़ से ज्यादा संपत्ति, 699 में सिर्फ 96 महिलाएं
ADR के अनुसार 5 उम्मीदवारों के पास 100 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की संपत्ति है। इसमें 3 भाजपा के जबकि एक-एक कांग्रेस और AAP का है। भाजपा उम्मीदवारों की औसत संपत्ति करीब 22.90 करोड़ रुपए है। वहीं, तीन उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है। करीब 28% यानी 196 उम्मीदवारों ने अपनी उम्र 25 से 40 साल के बीच बताई है। 106 (15%) की उम्र 61 से 80 साल के बीच, जबकि तीन की उम्र 80 साल से ज्यादा है। सभी 699 उम्मीदवारों में 96 महिलाएं हैं, जो करीब 14% होता है। प्रत्याशियों के एजुकेशन क्वालिफिकेशन की बात करें तो 46% ने अपने आपको 5वीं से 12वीं के बीच घोषित किया है। 18 उम्मीदवारों ने खुद को डिप्लोमा धारक, 6 ने साक्षर और 29 ने असाक्षर बताया है। एक नजर दिल्ली के राजनीतिक समीकरण पर… दिल्ली में 18% स्विंग वोटर्स किंगमेकर लोकसभा चुनाव में दिल्ली की 7 सीटों पर AAP और कांग्रेस ने INDIA ब्लॉक में साथ रहते हुए लड़ा था। इसके तहत AAP ने 4 और कांग्रेस ने 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सभी 7 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। भाजपा को 54.7% जबकि INDIA ब्लॉक को कुल 43.3% वोट मिला था। जीत-हार का मार्जिन सभी सीटों पर औसतन 1.35 लाख रहा था। भाजपा 52 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी। इस लिहाज से विधानसभा चुनाव में भाजपा को अच्छी बढ़त हासिल है। दिल्ली चुनाव लोकसभा के करीब 9 महीने बाद होते हैं लेकिन इतने कम वक्त में ही वोटिंग ट्रेंड्स में बड़ा बदलाव दिखता है। पिछले दो लोकसभा (2014 और 2019) और दो विधानसभा चुनावों (2015 और 2020) के एनालिसिस से पता चलता है कि करीब 18% स्विंग वोटर्स दिल्ली की सत्ता तय करते रहे हैं। स्विंग वोटर या फ्लोटिंग वोटर वह मतदाता होता है जो किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होता। वह हर चुनाव में अपने फायदे-नुकसान के आधार पर अलग-अलग पार्टी को वोट दे सकता है। 2014 में भी भाजपा ने लोकसभा की सभी 7 सीटें जीती थीं। इस दौरान विधानसभा की 70 में से 60 सीटों पर भाजपा आगे रही थी। जबकि 2015 विधानसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ 3 सीटें ही जीत सकी और AAP ने 67 सीटों पर कब्जा जमाया। इसी तरह 2019 में भी भाजपा ने सातों लोकसभा सीटें जीतीं और 65 विधानसभा सीटों पर आगे रही। वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में AAP ने 62 और भाजपा ने 8 सीटें जीतीं। एनालिसिस से पता चलता है कि विधानसभा चुनाव में AAP करीब उतना वोट लेकर एकतरफा जीत रही है, जितने वोट भाजपा ने लोकसभा में पाए थे। 2013 में साल भर पुरानी पार्टी ने 29% वोट पाए, 2 साल में 54% तक पहुंची 2012 की गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को आम आदमी पार्टी की नींव रखी गई। इसके ठीक 1 साल 1 महीने और 2 दिन बाद 4 दिसंबर, 2013 को दिल्ली चुनाव के लिए वोटिंग हुई। जब 8 दिसंबर को नतीजे आए तो AAP को 29.49% वोट के साथ 28 सीटों पर जीत मिली। पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनकी नई दिल्ली सीट पर करीब 26 हजार वोट से हराया। केजरीवाल को 53.8% वोट मिले, जबकि तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सिर्फ 22.4% वोट मिले। 7 साल में भाजपा का 5% वोट बढ़ा, सीटें 31 से घटकर 8 रह गईं दिसंबर, 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन बहुमत से 5 सीट पीछे रह गई। भाजपा ने 31 सीटें जीतीं। AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन 2 महीने में ही गिर गई। करीब साल भर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन रहा। 2015 में चुनाव हुए तो भाजपा का वोट शेयर सिर्फ 0.88% घटा लेकिन इतने से ही पार्टी ने 28 सीटें गवां दीं। पार्टी सिर्फ 3 सीटें जीत पाई। 2013 की तुलना में 2020 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 5.44% बढ़कर 38.51% हो गया फिर भी पार्टी सिर्फ 8 सीटें ही जीत सकी। 7 साल में 24% से 4% पर आई कांग्रेस, 2 बार से खाता भी नहीं खुला 1998 से 2013 तक लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस 2015 के चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई। पार्टी को सिर्फ 9.65% वोट मिले। जबकि, 2013 में कांग्रेस ने 24.55% वोट के साथ 8 सीटें जीती थीं। दिल्ली में पार्टी की दुर्गति यहीं नहीं रुकी। 2020 में वोट गिरकर 4.26% रह गया और पार्टी फिर से जीरो पर सिमट गई। अब 14 हॉट सीटों पर एक नजर… 1. नई दिल्ली नई दिल्ली विधानसभा सीट इस बार सिर्फ इसलिए खास नहीं है कि यहां से AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। बल्कि इसलिए भी है क्योंकि इस सीट पर एक पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे चुनाव लड़ रहे हैं। दिल्ली के पूर्व CM अरविंद केजरीवाल के सामने भाजपा ने 1996 से 1998 तक दिल्ली के CM रहे साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को उतारा है। वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित तीन बार CM रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं। 2008 में परिसीमन से पहले इस सीट का नाम गोट मार्केट हुआ करता था। इसी गोल मार्केट सीट से चुनाव जीतकर शीला दीक्षित पहली बार 1998 में मुख्यमंत्री बनीं और 2013 तक इस पद पर रहीं। 2013 के चुनाव में नई-नवेली आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को 25 हजार से ज्यादा वोटों से हराया और पहली बार CM बने। तब से केजरीवाल ही इस सीट से जीतते आ रहे हैं। 2020 में केजरीवाल को 61.4% वोट मिले थे। भाजपा के सुनील कुमार 28.5% वोट मार्जिन से हार झेलनी पड़ी थी। भाजपा उम्मीदवार प्रवेश वर्मा 2014 से 2024 तक पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं। साल 2013 में वे महरौली विधानसभा सीट से विधायक भी रह चुके हैं। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित 2004 से 2014 तक पूर्वी दिल्ली सीट से सांसद रहे हैं। 2. कालकाजी साउथ दिल्ली की इस सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री आतिशी इस सीट से दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं। वहीं, भाजपा ने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को टिकट दिया है। वे दक्षिणी दिल्ली सीट से 2 बार सांसद रह चुके हैं। तीसरा मोर्चा कांग्रेस की तरफ से अलका लांबा ने खोल रखा है। कांग्रेस की स्टूडेंट विंग NSUI से राजनीतिक करियर शुरू करने वाली अलका 2015 में AAP के टिकट पर चांदनी चौक से विधायक बनी थीं।
2015 में यह सीट AAP के अवतार सिंह ने तो 2013 में भाजपा के हरमीत सिंह ने जीती थी। उससे पहले 15 साल तक इस सीट पर कांग्रेस के सुभाष चोपड़ा का कब्जा रहा था। 2020 में यह सीट जीतने से पहले आतिशी ने 2019 में पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, भाजपा के गौतम गंभीर से साढ़े चार लाख से ज्यादा वोटों से हार गई थीं। डिप्टी CM और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद आतिशी को ही शिक्षा मंत्री बनाया गया था। भाजपा उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी सांसद बनने से पहले 2003 से 2014 तक तुगलकाबाद सीट से तीन बार विधायक रहे थे। वे दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष और महासचिव भी रह चुके हैं। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी अलका लांबा महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। 3. जंगपुरा पूर्वी दिल्ली लोकसभा में आने वाली इस सीट पर पूर्व डिप्टी CM मनीष सिसोदिया चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, 2013 से वे पटपड़गंज सीट से चुनाव लड़ते आए हैं। दरअसल, 2020 का चुनाव सिसोदिया मामूली अंतर से ही जीत पाए थे। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार रवींद्र सिंह नेगी को सिर्फ 3207 वोटों से हराया था। इस बार पटपड़गंज सीट से मनीष का जीतना मुश्किल लग रहा था। यही वजह है कि उन्हें जंगपुरा सीट से चुनाव में उतारा गया। पिछली बार AAP के प्रवीण कुमार ने यह सीट करीब 16 हजार के मार्जिन से जीती थी। भाजपा की ओर से तरविंदर सिंह मारवाह मैदान में हैं। वे 1998 से 2013 तक तीन बार इस सीट से कांग्रेस विधायक रह चुके हैं। साथ ही उस समय की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के संसदीय सचिव के रूप में भी काम कर चुके हैं। वे जुलाई, 2022 में भाजपा में शामिल हुए थे और दिल्ली भाजपा सिख प्रकोष्ठ के प्रभारी हैं। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व मेयर फरहाद सूरी को टिकट दिया है। वे दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में विपक्ष के नेता और दरियागंज से 4 बार पार्षद रह चुके हैं। उनके पिता ताजदार बाबर भी विधायक रहे थे। 4. पटपड़गंज इस सीट पर करीब 25% वोटर पहाड़ी हैं, जबकि 30% पूर्वांचल से हैं। 1993 से अब तक हुए 7 चुनावों में सिर्फ पहला चुनाव भाजपा ने जीता था। उसके बाद हर चुनाव में पार्टी दूसरे नंबर पर ही रही है। AAP ने इस सीट पर टीचर से पॉलिटिशियन बने अवध ओझा को टिकट दिया है। वे करीब 22 साल से सिविल सेवा परीक्षा की कोचिंग दे रहे हैं। ओझा ने घोषणा की है कि चुनाव जीतने पर गरीब बच्चों को फ्री कोचिंग देंगे। इसके लिए उन्होंने QR कोड जारी किया है। स्टूडेंट QR कोड स्कैन करके फ्री कोचिंग का फॉर्म भर सकते हैं। भाजपा ने उनके सामने उत्तराखंड के मूल निवासी रविंद्र सिंह नेगी को उतारा है। वे विनोद नगर वार्ड से निगम पार्षद हैं। नेगी पिछले साल अपने वार्ड के दुकानदारों से नाम पूछने और मुस्लिम दुकानदारों से दुकान के बाहर उनका नाम लिखने के लिए कहने पर विवाद में आए थे। उन्होंने हिंदू दुकानदारों को भगवा झंडे भी बांटे थे ताकि हिंदू दुकानदारों की पहचान हो सके। पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने नेगी को प्रत्याशी बनाया था। उन्होंने AAP उम्मीदवार और तब के डिप्टी CM मनीष सिसोदिया को कड़ी टक्कर दी थी। मनीष सिर्फ 2.3% के वोट मार्जिन से जीत पाए थे। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी को उम्मीदवार बनाया है। वे 2008 से 2013 तक इस सीट से विधायक रहे थे। NSUI से पॉलिटिकल करियर शुरू करने वाले चौधरी कांग्रेस के सचिव भी रह चुके हैं। 5. ग्रेटर कैलाश इस सीट से AAP की ओर से कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पास हेल्थ, फूड कंट्रोल, इंडस्ट्री जैसे कई अहम मंत्रालय रहे हैं। वे पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। सौरभ 2013 से ही इस सीट पर जीतते आ रहे हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में करियर शुरू करने वाले सौरभ 2013 में केजरीवाल की 49 दिन की सरकार में भी मंत्री थे। वहीं, भाजपा ने इस सीट पर एक बार फिर शिखा राय को उतारा है। वे 2020 में इसी सीट से और 2013 में कस्तूरबा नगर सीट से चुनाव हार चुकी हैं। अभी वे ग्रेटर कैलाश- 1 वार्ड से दूसरी बार निगम पार्षद हैं। शिखा 2023 में भाजपा की ओर से मेयर प्रत्याशी भी थीं, हालांकि नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए थे। शिखा प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष और महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं। उधर कांग्रेस ने भी 2020 में उम्मीदवार रहे सुखबीर सिंह पंवार को दोबारा मौका दिया है। 6. बाबरपुर दिल्ली AAP अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री गोपाल राय इस सीट से मैदान में हैं। राय ने 2013 में अपना पहला चुनाव इसी सीट से लड़ा था लेकिन करीब 25 हजार वोटों से हारकर तीसरे नंबर पर रहे थे। जबकि 2015 का चुनाव 35 हजार से ज्यादा वोट से जीता और कैबिनेट मंत्री बने। वहीं, भाजपा ने इस सीट से अनिल वशिष्ठ को उतारा है। पिछले 7 विधानसभा चुनावों में से 4 बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। हालांकि सीट पर करीब 35% मुस्लिम वोटर है। मुस्लिम वोट बंटने पर भाजपा को और हिंदू वोट बंटने पर कांग्रेस और AAP को फायदा होता है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक हाजी इशराक खान प्रत्याशी बनाया है। वे 2015 में AAP के टिकट पर सीलमपुर सीट से विधायक बने थे। माना जा रहा है कि साफ छवि के हाजी इशराक मुस्लिमों के अच्छे-खासे वोट अपने पाले में कर सकते हैं, जिसका खामियाजा गोपाल राय को भुगतना पड़ सकता है। 7. मुस्तफाबाद इस सीट को AAP नहीं बल्कि भाजपा प्रत्याशी ने खास बनाया है। भाजपा ने पांच बार के विधायक मोहन सिंह बिष्ट को इस सीट से उतारा है। वे करावल नगर सीट से मौजूदा विधायक हैं। भाजपा ने वहां से कपिल मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। इससे नाराज मोहन ने बगावती तेवर अपना लिए थे और करावल नगर से ही चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। इसके बाद पार्टी ने उन्हें मुस्तफाबाद सीट से प्रत्याशी बनाया था। वहीं, AAP ने पत्रकार रहे आदिल अहमद खान को उम्मीदवार बनाया है। वे एशिया की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी कही जाने वाली आजादपुर मंडी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आदिल अन्ना आंदोलन के समय भी सक्रिय रहे थे और बाद में पत्रकारिता छोड़कर AAP में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने यहां के पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे अली मेहदी को उतारा है। मेहदी 2020 में भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। वे 2022 में एक दिन में दो बार पार्टी बदलने के बाद चर्चा में आए थे। दिल्ली कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे मेहदी ने 9 दिसंबर की सुबह दो पार्षदों के साथ AAP जॉइन की और देर शाम कांग्रेस में वापसी कर ली। इसके अलावा दिल्ली दंगों के आरोपी और AAP के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने कैंडिडेट घोषित किया है। 8. करावल नगर यह सीट भाजपा का गढ़ रही है। सात में से छह बार भाजपा का प्रत्याशी यहां से जीतता आया है। सिर्फ 2015 AAP के टिकट पर कपिल मिश्रा यह सीट जीतने में कामयाब रहे थे। इसके बाद 2017 तक कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। काफी सियासी उठापटक के बाद 2019 में वे भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने इस दफा इन्हीं कपिल मिश्रा को मैदान में उतारा है। इस समय ने दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष भी हैं। AAP ने इस सीट से पूर्व पार्षद मनोज त्यागी को उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने डॉ पीके मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। 9. मोती नगर भाजपा ने इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के बेटे हरीश खुराना को टिकट दिया है। मदनलाल 1993 से 1996 तक दिल्ली के CM रहे थे। उस समय वे इसी सीट से विधायक थे। मदनलाल 2003 में भी इस सीट से विधायक चुने गए थे। हरीश खुराना उनके सबसे छोटे बेटे हैं और इस समय दिल्ली भाजपा के सचिव हैं। इससे पहले हरीश पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और लंबे समय तक मीडिया सेल से जुड़े रहे हैं। वहीं, AAP ने शिवचरण गोयल का टिकट रिपीट किया है। उन्होंने भाजपा के पूर्व विधायक सुभाष सचदेवा को 2020 में करीब 14 हजार वोट और 2015 में करीब 15 हजार वोट से हराया था। कांग्रेस ने राजिंदर नामधारी को प्रत्याशी बनाया है। 10. करोल बाग भाजपा ने इस सीट से अपने राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम को उतारा है। वे राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं और काफी समय तक SC मोर्चा से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा वे निगम पार्षद का चुनाव लड़कर हार चुके हैं। 2013 में दुष्यंत ने कोंडली विधानसभा से चुनाव लड़ा था, लेकिन AAP के मनोज कुमार से 7 हजार से ज्यादा वोट से हारे थे। AAP ने तीन बार के विधायक विशेष रवि को फिर से मैदान में उतारा है। 2013 में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार और तीन बार से विधायक सुरेंद्र पाल रतावल को हराया था। कांग्रेस ने दिल्ली यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल धानक को टिकट दिया है। 11. बिजवासन इस सीट पर भाजपा ने दिल्ली के पूर्व कैबिनेट मंत्री और हाल ही में AAP छोड़कर पार्टी में शामिल हुए कैलाश गहलोत को उतारा है। उनके पास वित्त, परिवहन, राजस्व और कानून जैसे अहम मंत्रालय रहे हैं। वे 2015 से नजफगढ़ के विधायक हैं। गहलोत दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रह चुके हैं। वे 2005 से 2007 तक दिल्ली हाईकोर्ट बार काउंसिल की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर भी रह चुके हैं। पिछले चुनाव में AAP के भूपिंदर सिंह जून भाजपा के सत प्रकाश राना से यह सीट सिर्फ 753 वोट से जीत पाए थे। शायद यही वजह रही कि पार्टी उनकी जगह सुरेंद्र भारद्वाज को उतारा है। वे राजनगर से पार्षद हैं और 2013 में इसी सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं, कांग्रेस ने इसी सीट से विधायक रहे देवेंद्र सहरावत को टिकट दिया है। उन्होंने 2015 का चुनाव AAP के टिकट पर जीता था और दो बार के विधायक सत प्रकाश राणा को 19 हजार से ज्यादा वोट से हराया था। 12. गांधी नगर इस सीट पर भाजपा ने अरविंदर सिंह लवली को उम्मीदवार बनाया है। लवली दिल्ली कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं और मई, 2024 में ही भाजपा में शामिल हुए थे। साल 2017 में भी वे कुछ महीनों तक भाजपा का हिस्सा रहे थे। इसके अलावा वे ज्यादातर समय कांग्रेस में ही रहे हैं। लवली 1998 में पहली बार इसी सीट से विधायक बने थे। इसके बाद 2013 तक लगातार चार बार इस सीट से विधायक चुने गए। वे 2003 से 2013 तक शीला दीक्षित सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। इस दौरान शिक्षा और परिवहन जैसे कई अहम विभाग उनके पास रहे थे। वहीं, AAP ने एक बार फिर नवीन चौधरी को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में वे भाजपा के अनिल कुमार बाजपेयी से करीब 6 हजार वोटों से हारे थे। कांग्रेस ने कमल अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है। 13. रोहिणी इस सीट से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता भाजपा की ओर से मैदान में हैं। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी के के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनकी चुनावी राजनीति की शुरुआत 1997 में निगम पार्षद चुने जाने से होती है। इसके बाद वे रोहिणी वार्ड से तीन बाद पार्षद रहे। विजेंद्र दिल्ली भाजपा के सचिव और अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2013 में उन्होंने अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के खिलाफ नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा था। करीब 18 हजार वोट के साथ वे तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके बाद 2015 में रोहिणी सीट से विधायक चुने गए। उस चुनाव में भाजपा सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी थी। विजेंद्र ने AAP के राजेश नामा को करीब 12 हजार वोट से हराया था। इसके बाद अप्रैल, 2015 से अब तक नेता प्रतिपक्ष रहे। AAP ने इस सीट पर प्रदीप मित्तल को उतारा है। वे रोहिणी- ए वार्ड से पार्षद हैं। कांग्रेस ने एक बार फिर सुमेश गुप्ता को टिकट दिया है। वे 2020 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। तब उन्हें करीब 2 हजार वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। 14. शकूर बस्ती इस सीट से दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन AAP की ओर से मैदान में हैं। मई, 2022 में मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार होने से पहले वे तीन बार दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री रहे थे। जैन सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते थे, लेकिन एग्रीकल्चर कंसल्टेंसी फर्म खोलने के लिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। वे अन्ना आंदोलन में भी सक्रिय रहे और फिर AAP से जुड़ गए। 2013 में पहली बार पार्टी की सरकार बनी तो जैन को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। भाजपा ने मंदिर प्रकोष्ठ के अध्यक्ष करनैल सिंह को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है। वे मुस्लिम समुदाय पर दिए गए बयानों के चलते कई बार विवादों में रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने सतीश लूथरा को टिकट दिया है।
ADR के अनुसार 5 उम्मीदवारों के पास 100 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की संपत्ति है। इसमें 3 भाजपा के जबकि एक-एक कांग्रेस और AAP का है। भाजपा उम्मीदवारों की औसत संपत्ति करीब 22.90 करोड़ रुपए है। वहीं, तीन उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है। करीब 28% यानी 196 उम्मीदवारों ने अपनी उम्र 25 से 40 साल के बीच बताई है। 106 (15%) की उम्र 61 से 80 साल के बीच, जबकि तीन की उम्र 80 साल से ज्यादा है। सभी 699 उम्मीदवारों में 96 महिलाएं हैं, जो करीब 14% होता है। प्रत्याशियों के एजुकेशन क्वालिफिकेशन की बात करें तो 46% ने अपने आपको 5वीं से 12वीं के बीच घोषित किया है। 18 उम्मीदवारों ने खुद को डिप्लोमा धारक, 6 ने साक्षर और 29 ने असाक्षर बताया है। एक नजर दिल्ली के राजनीतिक समीकरण पर… दिल्ली में 18% स्विंग वोटर्स किंगमेकर लोकसभा चुनाव में दिल्ली की 7 सीटों पर AAP और कांग्रेस ने INDIA ब्लॉक में साथ रहते हुए लड़ा था। इसके तहत AAP ने 4 और कांग्रेस ने 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सभी 7 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। भाजपा को 54.7% जबकि INDIA ब्लॉक को कुल 43.3% वोट मिला था। जीत-हार का मार्जिन सभी सीटों पर औसतन 1.35 लाख रहा था। भाजपा 52 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी। इस लिहाज से विधानसभा चुनाव में भाजपा को अच्छी बढ़त हासिल है। दिल्ली चुनाव लोकसभा के करीब 9 महीने बाद होते हैं लेकिन इतने कम वक्त में ही वोटिंग ट्रेंड्स में बड़ा बदलाव दिखता है। पिछले दो लोकसभा (2014 और 2019) और दो विधानसभा चुनावों (2015 और 2020) के एनालिसिस से पता चलता है कि करीब 18% स्विंग वोटर्स दिल्ली की सत्ता तय करते रहे हैं। स्विंग वोटर या फ्लोटिंग वोटर वह मतदाता होता है जो किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होता। वह हर चुनाव में अपने फायदे-नुकसान के आधार पर अलग-अलग पार्टी को वोट दे सकता है। 2014 में भी भाजपा ने लोकसभा की सभी 7 सीटें जीती थीं। इस दौरान विधानसभा की 70 में से 60 सीटों पर भाजपा आगे रही थी। जबकि 2015 विधानसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ 3 सीटें ही जीत सकी और AAP ने 67 सीटों पर कब्जा जमाया। इसी तरह 2019 में भी भाजपा ने सातों लोकसभा सीटें जीतीं और 65 विधानसभा सीटों पर आगे रही। वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में AAP ने 62 और भाजपा ने 8 सीटें जीतीं। एनालिसिस से पता चलता है कि विधानसभा चुनाव में AAP करीब उतना वोट लेकर एकतरफा जीत रही है, जितने वोट भाजपा ने लोकसभा में पाए थे। 2013 में साल भर पुरानी पार्टी ने 29% वोट पाए, 2 साल में 54% तक पहुंची 2012 की गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को आम आदमी पार्टी की नींव रखी गई। इसके ठीक 1 साल 1 महीने और 2 दिन बाद 4 दिसंबर, 2013 को दिल्ली चुनाव के लिए वोटिंग हुई। जब 8 दिसंबर को नतीजे आए तो AAP को 29.49% वोट के साथ 28 सीटों पर जीत मिली। पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनकी नई दिल्ली सीट पर करीब 26 हजार वोट से हराया। केजरीवाल को 53.8% वोट मिले, जबकि तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सिर्फ 22.4% वोट मिले। 7 साल में भाजपा का 5% वोट बढ़ा, सीटें 31 से घटकर 8 रह गईं दिसंबर, 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन बहुमत से 5 सीट पीछे रह गई। भाजपा ने 31 सीटें जीतीं। AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन 2 महीने में ही गिर गई। करीब साल भर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन रहा। 2015 में चुनाव हुए तो भाजपा का वोट शेयर सिर्फ 0.88% घटा लेकिन इतने से ही पार्टी ने 28 सीटें गवां दीं। पार्टी सिर्फ 3 सीटें जीत पाई। 2013 की तुलना में 2020 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 5.44% बढ़कर 38.51% हो गया फिर भी पार्टी सिर्फ 8 सीटें ही जीत सकी। 7 साल में 24% से 4% पर आई कांग्रेस, 2 बार से खाता भी नहीं खुला 1998 से 2013 तक लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस 2015 के चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई। पार्टी को सिर्फ 9.65% वोट मिले। जबकि, 2013 में कांग्रेस ने 24.55% वोट के साथ 8 सीटें जीती थीं। दिल्ली में पार्टी की दुर्गति यहीं नहीं रुकी। 2020 में वोट गिरकर 4.26% रह गया और पार्टी फिर से जीरो पर सिमट गई। अब 14 हॉट सीटों पर एक नजर… 1. नई दिल्ली नई दिल्ली विधानसभा सीट इस बार सिर्फ इसलिए खास नहीं है कि यहां से AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। बल्कि इसलिए भी है क्योंकि इस सीट पर एक पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे चुनाव लड़ रहे हैं। दिल्ली के पूर्व CM अरविंद केजरीवाल के सामने भाजपा ने 1996 से 1998 तक दिल्ली के CM रहे साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को उतारा है। वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित तीन बार CM रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं। 2008 में परिसीमन से पहले इस सीट का नाम गोट मार्केट हुआ करता था। इसी गोल मार्केट सीट से चुनाव जीतकर शीला दीक्षित पहली बार 1998 में मुख्यमंत्री बनीं और 2013 तक इस पद पर रहीं। 2013 के चुनाव में नई-नवेली आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को 25 हजार से ज्यादा वोटों से हराया और पहली बार CM बने। तब से केजरीवाल ही इस सीट से जीतते आ रहे हैं। 2020 में केजरीवाल को 61.4% वोट मिले थे। भाजपा के सुनील कुमार 28.5% वोट मार्जिन से हार झेलनी पड़ी थी। भाजपा उम्मीदवार प्रवेश वर्मा 2014 से 2024 तक पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं। साल 2013 में वे महरौली विधानसभा सीट से विधायक भी रह चुके हैं। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित 2004 से 2014 तक पूर्वी दिल्ली सीट से सांसद रहे हैं। 2. कालकाजी साउथ दिल्ली की इस सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री आतिशी इस सीट से दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं। वहीं, भाजपा ने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को टिकट दिया है। वे दक्षिणी दिल्ली सीट से 2 बार सांसद रह चुके हैं। तीसरा मोर्चा कांग्रेस की तरफ से अलका लांबा ने खोल रखा है। कांग्रेस की स्टूडेंट विंग NSUI से राजनीतिक करियर शुरू करने वाली अलका 2015 में AAP के टिकट पर चांदनी चौक से विधायक बनी थीं।
2015 में यह सीट AAP के अवतार सिंह ने तो 2013 में भाजपा के हरमीत सिंह ने जीती थी। उससे पहले 15 साल तक इस सीट पर कांग्रेस के सुभाष चोपड़ा का कब्जा रहा था। 2020 में यह सीट जीतने से पहले आतिशी ने 2019 में पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, भाजपा के गौतम गंभीर से साढ़े चार लाख से ज्यादा वोटों से हार गई थीं। डिप्टी CM और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद आतिशी को ही शिक्षा मंत्री बनाया गया था। भाजपा उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी सांसद बनने से पहले 2003 से 2014 तक तुगलकाबाद सीट से तीन बार विधायक रहे थे। वे दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष और महासचिव भी रह चुके हैं। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी अलका लांबा महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। 3. जंगपुरा पूर्वी दिल्ली लोकसभा में आने वाली इस सीट पर पूर्व डिप्टी CM मनीष सिसोदिया चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, 2013 से वे पटपड़गंज सीट से चुनाव लड़ते आए हैं। दरअसल, 2020 का चुनाव सिसोदिया मामूली अंतर से ही जीत पाए थे। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार रवींद्र सिंह नेगी को सिर्फ 3207 वोटों से हराया था। इस बार पटपड़गंज सीट से मनीष का जीतना मुश्किल लग रहा था। यही वजह है कि उन्हें जंगपुरा सीट से चुनाव में उतारा गया। पिछली बार AAP के प्रवीण कुमार ने यह सीट करीब 16 हजार के मार्जिन से जीती थी। भाजपा की ओर से तरविंदर सिंह मारवाह मैदान में हैं। वे 1998 से 2013 तक तीन बार इस सीट से कांग्रेस विधायक रह चुके हैं। साथ ही उस समय की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के संसदीय सचिव के रूप में भी काम कर चुके हैं। वे जुलाई, 2022 में भाजपा में शामिल हुए थे और दिल्ली भाजपा सिख प्रकोष्ठ के प्रभारी हैं। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व मेयर फरहाद सूरी को टिकट दिया है। वे दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में विपक्ष के नेता और दरियागंज से 4 बार पार्षद रह चुके हैं। उनके पिता ताजदार बाबर भी विधायक रहे थे। 4. पटपड़गंज इस सीट पर करीब 25% वोटर पहाड़ी हैं, जबकि 30% पूर्वांचल से हैं। 1993 से अब तक हुए 7 चुनावों में सिर्फ पहला चुनाव भाजपा ने जीता था। उसके बाद हर चुनाव में पार्टी दूसरे नंबर पर ही रही है। AAP ने इस सीट पर टीचर से पॉलिटिशियन बने अवध ओझा को टिकट दिया है। वे करीब 22 साल से सिविल सेवा परीक्षा की कोचिंग दे रहे हैं। ओझा ने घोषणा की है कि चुनाव जीतने पर गरीब बच्चों को फ्री कोचिंग देंगे। इसके लिए उन्होंने QR कोड जारी किया है। स्टूडेंट QR कोड स्कैन करके फ्री कोचिंग का फॉर्म भर सकते हैं। भाजपा ने उनके सामने उत्तराखंड के मूल निवासी रविंद्र सिंह नेगी को उतारा है। वे विनोद नगर वार्ड से निगम पार्षद हैं। नेगी पिछले साल अपने वार्ड के दुकानदारों से नाम पूछने और मुस्लिम दुकानदारों से दुकान के बाहर उनका नाम लिखने के लिए कहने पर विवाद में आए थे। उन्होंने हिंदू दुकानदारों को भगवा झंडे भी बांटे थे ताकि हिंदू दुकानदारों की पहचान हो सके। पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने नेगी को प्रत्याशी बनाया था। उन्होंने AAP उम्मीदवार और तब के डिप्टी CM मनीष सिसोदिया को कड़ी टक्कर दी थी। मनीष सिर्फ 2.3% के वोट मार्जिन से जीत पाए थे। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी को उम्मीदवार बनाया है। वे 2008 से 2013 तक इस सीट से विधायक रहे थे। NSUI से पॉलिटिकल करियर शुरू करने वाले चौधरी कांग्रेस के सचिव भी रह चुके हैं। 5. ग्रेटर कैलाश इस सीट से AAP की ओर से कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पास हेल्थ, फूड कंट्रोल, इंडस्ट्री जैसे कई अहम मंत्रालय रहे हैं। वे पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। सौरभ 2013 से ही इस सीट पर जीतते आ रहे हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में करियर शुरू करने वाले सौरभ 2013 में केजरीवाल की 49 दिन की सरकार में भी मंत्री थे। वहीं, भाजपा ने इस सीट पर एक बार फिर शिखा राय को उतारा है। वे 2020 में इसी सीट से और 2013 में कस्तूरबा नगर सीट से चुनाव हार चुकी हैं। अभी वे ग्रेटर कैलाश- 1 वार्ड से दूसरी बार निगम पार्षद हैं। शिखा 2023 में भाजपा की ओर से मेयर प्रत्याशी भी थीं, हालांकि नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए थे। शिखा प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष और महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं। उधर कांग्रेस ने भी 2020 में उम्मीदवार रहे सुखबीर सिंह पंवार को दोबारा मौका दिया है। 6. बाबरपुर दिल्ली AAP अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री गोपाल राय इस सीट से मैदान में हैं। राय ने 2013 में अपना पहला चुनाव इसी सीट से लड़ा था लेकिन करीब 25 हजार वोटों से हारकर तीसरे नंबर पर रहे थे। जबकि 2015 का चुनाव 35 हजार से ज्यादा वोट से जीता और कैबिनेट मंत्री बने। वहीं, भाजपा ने इस सीट से अनिल वशिष्ठ को उतारा है। पिछले 7 विधानसभा चुनावों में से 4 बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। हालांकि सीट पर करीब 35% मुस्लिम वोटर है। मुस्लिम वोट बंटने पर भाजपा को और हिंदू वोट बंटने पर कांग्रेस और AAP को फायदा होता है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक हाजी इशराक खान प्रत्याशी बनाया है। वे 2015 में AAP के टिकट पर सीलमपुर सीट से विधायक बने थे। माना जा रहा है कि साफ छवि के हाजी इशराक मुस्लिमों के अच्छे-खासे वोट अपने पाले में कर सकते हैं, जिसका खामियाजा गोपाल राय को भुगतना पड़ सकता है। 7. मुस्तफाबाद इस सीट को AAP नहीं बल्कि भाजपा प्रत्याशी ने खास बनाया है। भाजपा ने पांच बार के विधायक मोहन सिंह बिष्ट को इस सीट से उतारा है। वे करावल नगर सीट से मौजूदा विधायक हैं। भाजपा ने वहां से कपिल मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। इससे नाराज मोहन ने बगावती तेवर अपना लिए थे और करावल नगर से ही चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। इसके बाद पार्टी ने उन्हें मुस्तफाबाद सीट से प्रत्याशी बनाया था। वहीं, AAP ने पत्रकार रहे आदिल अहमद खान को उम्मीदवार बनाया है। वे एशिया की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी कही जाने वाली आजादपुर मंडी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आदिल अन्ना आंदोलन के समय भी सक्रिय रहे थे और बाद में पत्रकारिता छोड़कर AAP में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने यहां के पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे अली मेहदी को उतारा है। मेहदी 2020 में भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। वे 2022 में एक दिन में दो बार पार्टी बदलने के बाद चर्चा में आए थे। दिल्ली कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे मेहदी ने 9 दिसंबर की सुबह दो पार्षदों के साथ AAP जॉइन की और देर शाम कांग्रेस में वापसी कर ली। इसके अलावा दिल्ली दंगों के आरोपी और AAP के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने कैंडिडेट घोषित किया है। 8. करावल नगर यह सीट भाजपा का गढ़ रही है। सात में से छह बार भाजपा का प्रत्याशी यहां से जीतता आया है। सिर्फ 2015 AAP के टिकट पर कपिल मिश्रा यह सीट जीतने में कामयाब रहे थे। इसके बाद 2017 तक कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। काफी सियासी उठापटक के बाद 2019 में वे भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने इस दफा इन्हीं कपिल मिश्रा को मैदान में उतारा है। इस समय ने दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष भी हैं। AAP ने इस सीट से पूर्व पार्षद मनोज त्यागी को उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने डॉ पीके मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। 9. मोती नगर भाजपा ने इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के बेटे हरीश खुराना को टिकट दिया है। मदनलाल 1993 से 1996 तक दिल्ली के CM रहे थे। उस समय वे इसी सीट से विधायक थे। मदनलाल 2003 में भी इस सीट से विधायक चुने गए थे। हरीश खुराना उनके सबसे छोटे बेटे हैं और इस समय दिल्ली भाजपा के सचिव हैं। इससे पहले हरीश पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और लंबे समय तक मीडिया सेल से जुड़े रहे हैं। वहीं, AAP ने शिवचरण गोयल का टिकट रिपीट किया है। उन्होंने भाजपा के पूर्व विधायक सुभाष सचदेवा को 2020 में करीब 14 हजार वोट और 2015 में करीब 15 हजार वोट से हराया था। कांग्रेस ने राजिंदर नामधारी को प्रत्याशी बनाया है। 10. करोल बाग भाजपा ने इस सीट से अपने राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम को उतारा है। वे राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं और काफी समय तक SC मोर्चा से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा वे निगम पार्षद का चुनाव लड़कर हार चुके हैं। 2013 में दुष्यंत ने कोंडली विधानसभा से चुनाव लड़ा था, लेकिन AAP के मनोज कुमार से 7 हजार से ज्यादा वोट से हारे थे। AAP ने तीन बार के विधायक विशेष रवि को फिर से मैदान में उतारा है। 2013 में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार और तीन बार से विधायक सुरेंद्र पाल रतावल को हराया था। कांग्रेस ने दिल्ली यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल धानक को टिकट दिया है। 11. बिजवासन इस सीट पर भाजपा ने दिल्ली के पूर्व कैबिनेट मंत्री और हाल ही में AAP छोड़कर पार्टी में शामिल हुए कैलाश गहलोत को उतारा है। उनके पास वित्त, परिवहन, राजस्व और कानून जैसे अहम मंत्रालय रहे हैं। वे 2015 से नजफगढ़ के विधायक हैं। गहलोत दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रह चुके हैं। वे 2005 से 2007 तक दिल्ली हाईकोर्ट बार काउंसिल की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर भी रह चुके हैं। पिछले चुनाव में AAP के भूपिंदर सिंह जून भाजपा के सत प्रकाश राना से यह सीट सिर्फ 753 वोट से जीत पाए थे। शायद यही वजह रही कि पार्टी उनकी जगह सुरेंद्र भारद्वाज को उतारा है। वे राजनगर से पार्षद हैं और 2013 में इसी सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं, कांग्रेस ने इसी सीट से विधायक रहे देवेंद्र सहरावत को टिकट दिया है। उन्होंने 2015 का चुनाव AAP के टिकट पर जीता था और दो बार के विधायक सत प्रकाश राणा को 19 हजार से ज्यादा वोट से हराया था। 12. गांधी नगर इस सीट पर भाजपा ने अरविंदर सिंह लवली को उम्मीदवार बनाया है। लवली दिल्ली कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं और मई, 2024 में ही भाजपा में शामिल हुए थे। साल 2017 में भी वे कुछ महीनों तक भाजपा का हिस्सा रहे थे। इसके अलावा वे ज्यादातर समय कांग्रेस में ही रहे हैं। लवली 1998 में पहली बार इसी सीट से विधायक बने थे। इसके बाद 2013 तक लगातार चार बार इस सीट से विधायक चुने गए। वे 2003 से 2013 तक शीला दीक्षित सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। इस दौरान शिक्षा और परिवहन जैसे कई अहम विभाग उनके पास रहे थे। वहीं, AAP ने एक बार फिर नवीन चौधरी को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में वे भाजपा के अनिल कुमार बाजपेयी से करीब 6 हजार वोटों से हारे थे। कांग्रेस ने कमल अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है। 13. रोहिणी इस सीट से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता भाजपा की ओर से मैदान में हैं। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी के के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनकी चुनावी राजनीति की शुरुआत 1997 में निगम पार्षद चुने जाने से होती है। इसके बाद वे रोहिणी वार्ड से तीन बाद पार्षद रहे। विजेंद्र दिल्ली भाजपा के सचिव और अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2013 में उन्होंने अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के खिलाफ नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा था। करीब 18 हजार वोट के साथ वे तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके बाद 2015 में रोहिणी सीट से विधायक चुने गए। उस चुनाव में भाजपा सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी थी। विजेंद्र ने AAP के राजेश नामा को करीब 12 हजार वोट से हराया था। इसके बाद अप्रैल, 2015 से अब तक नेता प्रतिपक्ष रहे। AAP ने इस सीट पर प्रदीप मित्तल को उतारा है। वे रोहिणी- ए वार्ड से पार्षद हैं। कांग्रेस ने एक बार फिर सुमेश गुप्ता को टिकट दिया है। वे 2020 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। तब उन्हें करीब 2 हजार वोट मिले थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। 14. शकूर बस्ती इस सीट से दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन AAP की ओर से मैदान में हैं। मई, 2022 में मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार होने से पहले वे तीन बार दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री रहे थे। जैन सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते थे, लेकिन एग्रीकल्चर कंसल्टेंसी फर्म खोलने के लिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। वे अन्ना आंदोलन में भी सक्रिय रहे और फिर AAP से जुड़ गए। 2013 में पहली बार पार्टी की सरकार बनी तो जैन को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। भाजपा ने मंदिर प्रकोष्ठ के अध्यक्ष करनैल सिंह को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है। वे मुस्लिम समुदाय पर दिए गए बयानों के चलते कई बार विवादों में रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने सतीश लूथरा को टिकट दिया है।