दिल का रिश्ता, वर्क फ्रॉम होम और छोटी सी चाहत, महिलाओं और पुरुषों के अलग-अलग रूप को दर्शाती 3 लघुकथाएं

1. दिल का रिश्ता

लेखिका : सुशी सक्सेना

शाम की तनहाई में भावेश अकेलेपन को महसूस कर रहे थे। तभी उन्हें झगड़े की आवाज़ सुनाई दी जो उनके बहू और बेटे के कमरे से आ रही थी। झगड़े को सुनकर उनका मन और भी भारी हो गया। जब से उसकी पत्नी सरस्वती का निधन हुआ है तब से घर की तस्वीर ही बदल गई है।

घर-गृहस्थी का सारा बोझ बहू के कंधों पर आ गया था जिसे उठाने में वो ख़ुद को असमर्थ महसूस कर रही थी और स्वभाव से चिड़चिड़ी होती जा रही थी। अपने पति और बच्चों का काम तो उसे करना ही पड़ता था पर जिन ससुर जी की तारीफ़ करते कभी वह थकती नहीं थी वे उसे आज बोझ नज़र आ रहे थे।

उनकी आदतें अब उसे बुरी लगने लगी थीं। ज़रा-ज़रा सी बात पर घर में झगड़ा होने लगा था। कलह इस क़दर बढ़ गई थी कि भावेश ने वृद्धाश्रम जाने का फ़ैसला कर लिया। दिल पर भारी पत्थर रखकर बेटे ने भी स्वीकृति दे दी क्योंकि रोज़-रोज़ की कलह से वह भी तंग आ चुका था।भावेश वृद्धाश्रम जाने को निकल गए।

वृद्धाश्रम के दरवाज़े पर उन्हें अपने बेटे का दोस्त भुवन मिला जो काफ़ी उदास दिख रहा था। उसे देखकर भावेश ने पूछा, ‘और बेटे कैसे हो, यहां क्या करने आए हो?’भावेश के सवाल पर भुवन की आंखों में आंसू आ गए। बोला, ‘क्या बताऊं चाचा जी, कुछ दिनों पहले मेरे पिता जी का देहांत हो गया।

मेरा पांच साल का बेटा उनके ग़म में बहुत बीमार है। डॉक्टर का कहना है कि यदि उसके दादा जी उसे न मिले तो कुछ भी हो सकता है। इसलिए वृद्धाश्रम से किसी बज़ुर्ग को लेने आया हूं।’ इतना कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगा। भावेश ने उसे चुप कराया और उसके साथ उसके घर चले गए।

भुवन का बेटा उन्हें अपने दादा जी समझकर ख़ुश हो गया और कुछ दिनों में बिल्कुल ठीक भी हो गया। भुवन और उसकी पत्नी दोनों उनका बहुत ख़्याल रखते थे। उन्हें वहां बहुत अच्छा लगने लगा। इसी बीच भुवन को भी भावेश के बारे में सबकुछ पता चल चुका था।

कुछ दिनों तक वहां रहने के बाद भावेश जाने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि दुबारा उन्हें फिर वही ठोकर खानी पड़े। कुछ दिनों तक तो ठीक है पर हमेशा के लिए रहे तो शायद इनको भी बोझ लगने लगेंगे। जब वे जाने लगे तो भुवन ने उन्हें रोका और कहा, ‘मुझे एक पिता की ज़रूरत है और आपको एक बेटे की।

क्या हमारे बीच यही रिश्ता काफ़ी नहीं। दिल के रिश्ते ख़ून के रिश्तों से बढ़कर होते हैं।’ भावेश की आंसुओं से भरी आंखें भुवन का प्रेम देखकर इंकार न कर सकीं। और भावेश चाचा ने वहां रुकने का फ़ैसला कर लिया।

2. वर्क फ्रॉम होम

लेखिका :शालिनी बड़ोले

मेघना ने घड़ी की तरफ़ देखा तो शाम के 5 बज चुके थे। काम करते-करते टूट चुकी थी, सोचा 10 मिनट कमर सीधी कर लूं। तभी याद आया कि आज बेटे अर्णव की ऑनलाइन क्लास छूट गई थी, इसलिए उसने अपनी फ्रेंड नंदिनी को फोन लगा दिया। नंदिनी के फोन उठाते ही मेघना बोली, ‘सॉरी यार, तुझे बार-बार परेशान करती हूं।

आज मीटिंग थी, इसलिए अर्णव का पहला पीरियड मिस हो गया। प्लीज़ क्लास वर्क भेज देना।’ नंदिनी की बेटी रिया और अर्णव एक ही क्लास में हैं, इसलिए पढ़ाई को लेकर ऐसा आदान-प्रदान होता रहता है। लेकिन मेघना को अब बार-बार नंदिनी से कहने में झिझक महसूस होने लगी थी।

फोन रखा ही था कि अर्णव दौड़ता हुआ आया, ‘मम्मा, दादा ने चाय बनाने के लिए कहा है।’ मेघना किचन में गई कि अर्णव भी पहुंच गया, ‘मम्मा, पॉपकॉर्न बना दो न, भूख लग रही है।’मेघना ने हंसते हुए कहा, ‘ठीक है, बनाती हूं।’ तभी पति आकाश बोले, ‘एक कप कॉफ़ी बना दो प्लीज़।’

मेघना को पता था किचन में घुसना मतलब आधे घंटे का ब्रेक। ससुरजी को फीकी चाय और आकाश को कॉफ़ी देने के बाद उसने अपने और सासू मां के लिए अदरक-तुलसी की चाय बनाई और छानते हुए अर्णव से पूछा, ‘बेटा, दादी कहां हैं?’ अर्णव ने बताया, ‘छत पर हैं, टहल रही हैं।’

मेघना ने चाय के कप ट्रे में रखे और सीढ़ियां चढ़ने लगी। तभी उसके कानों में बाजू वाली शर्मा आंटी की आवाज़ पड़ी। वे पूछ रही थीं, ‘आजकल आकाश और मेघना तो दिखाई ही नहीं देते।’ सासू मां का स्वर उभरा, ‘आकाश को एक पल भी फुर्सत नहीं है।

प्राइवेट वाले तो पूरा निचोड़ लेते हैं।’ शर्मा आंटी बोलीं, ‘मेघना घर पर है, आपको तो आराम होगा।’ ‘अरे काहे का आराम, वर्क फ्रॉम होम के चक्कर में दिनभर फोन और लैपटॉप पर लगी रहती है। अभी भी किसी सहेली से बतिया रही थी।

काम तो मुझे ही करना पड़ता है।’ मेघना ठिठक गई, मानो उसके पैर जम गए हों। सुबह घर के सभी काम निबटाने के बाद ऑफिस वर्क, फिर अर्णव की क्लासेस, उसके असाइनमेंट करवाते-करवाते रात तक निढाल हो जाती है। शर्मा आंटी की आवाज़ से उसकी तंद्रा भंग हुई- ‘भाभीजी, नेहा इस बार नहीं आ पाई छुट्टियों में?’

सासू मां ने रुआंसे स्वर में कहा, ‘अरे, बेचारी नेहा भी फंसी हुई है ऑनलाइन क्लासेस और दिनभर घर के कामों में। सोच तो रही हूं संडे आकाश को भेज देती हूं नेहा को लिवा लाने। कुछ दिन आकर यहां रह जाएगी तो उसे आराम हो जाएगा।’

मेघना को याद आया कि दो दिन पहले उसका भाई भी उसे लिवाने आया था, मगर उसने यह कहकर लौटा दिया कि सासू मां के घुटनों में दर्द रहता है, बाई भी नहीं आ रही है, ऐसे में कितना काम करेंगी। फिर अपने आप को संभालते हुए वह छत पर गई और सासू मां को चाय का कप थमाकर नीचे आ गई।

पीछे से सासू मां की आवाज़ आई, ‘मेघना, चाय ठंडी हो गई है।’मेघना सीढ़ियां उतरते हुए सोच रही थी- ‘वर्क फ्रॉम होम किसी के लिए मज़ा है और किसी के लिए सज़ा।’

3. छोटी-सी चाहत

लेखिका : पूनम पांडे

मीरा बार-बार आग्रह करने लगी तो रवि ने साथ चलने की सहमति दे दी। रास्ते में मीरा उसको बताने लगी, ‘रवि, आज हम जहां जा रहे हैं न, वो सब लोग ग़ज़ब के उद्यमशील हैं। उनमें से कोई सर्दी में पहनने के लिए ऊनी मोज़े बुनता है तो कोई सस्ते और टिकाऊ जूते-चप्पल और बरसाती बूट बनाता है।

उनमें से कितने लोगों ने पूरे बिजनौर वालों को खेती करने के लिए औज़ार बनाकर दिए। इन लोगों ने पानी पीने के लिए मटकी, सुराही, यहां तक कि हमारी यह कार आराम से दौड़ती रहे, इसके लिए पक्की सड़क भी बनाई। मगर वे सब आजकल बहुत परेशानी मे हैं।

रवि, सुन रहे हो न?’ ‘हूं, हूं,’ कहता हुआ रवि सर हिला रहा था।रवि कोई कठोर हृदय इंसान नहीं था। वह मीरा के हर अच्छे काम को तवज्जो दिया करता था। बस फुरसत में कम ही रहता था। मगर वह मीरा की सराहना करता था। उसके साथ हर जगह जाना चाहता था पर उसकी अपनी मसरूफियत थी।

‘रवि, मैं यह जानती हूं कि उन लोगों को कई संस्थान, बहुत से लोग काफ़ी मदद दे रहे हैं पर मेरा मन नहीं मानता। मैं तो उन सबकी आंखें देखती हूं और वो क्या कह रही हैं सुनती हूं। रवि पता है, उनके बच्चे भी परेशान हैं। जब अपनी ज़िंदगी से तनाव होता है न तो उन बच्चों को याद करती हूं जो फुटपाथ पर पैदा हुए और वहीं रहते हैं।

कैसे रहते होंगे, सोचो रवि।’बातें करते करते वे पहुंच गए। मीरा ने खाने के पैकेट और सूती चादरें बांट दीं। वे अब मीरा को ख़ूब पहचानते थे। मीरा को देखकर हमेशा ज़ोर से कहते, ‘ये आंटीजी आ गई। ये कभी फोटो नहीं लेती।’ आज भी वे लोग आपस में वही बातें कर रहे थे।

वहां पर एक युवती बार-बार मीरा को देखकर मुंह पर हाथ रख लेती थी। मीरा ने पास जाकर कहा, ‘हां, बोलो न, कुछ कहना चाहती हो?’‘एक फोटो खींच दो न।’ वह अपने ही झुंड से किसी दस साल के बालक को खींच लाई। उसके पास एक मोबाइल था। ‘यह कैमरे वाला फोन है।’

वह मीरा से बोली, ‘इससे फोटो खींच दो।’‘हां-हां, बिलकुल खींच लो,’ मीरा ने कहा तो वह हंस पड़ी। मीरा उसके पास आ गई पर वह उससे दूर जाने लगी। मीरा ने सवाल किया, ‘अब क्या हो गया? तुमको तो तस्वीर लेनी थी न?’‘हां-हां, फोटो खिंचवानी है पर उनके साथ, आपके साथ नहीं।’

वह रवि की ओर संकेत करने लगी। उधर रवि ने सब सुन लिया था। मीरा और रवि दोनों हंस पड़े।कैमरे की खटाक की आवाज़ आई और छोटी-सी चाहत पूरी हुई।

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3 short stories depicting the different forms of women and men, Dil ka Rishta, Work from Home and Little Wishes