चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था 12.6 फीसदी तक फिसलने का अनुमान है। जीडीपी को प्री-कोविड लेवल तक पहुंचने में 2 साल या उससे अधिक का समय लग सकता है। नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमी रिसर्च (NCAER) ने इकोनॉमी में सुधार के लिए 1991 जैसे कदम उठाने की आवश्यकता जताई है। इससे पहले 30 जून को समाप्त पहली तिमाही में देश की सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट देखी गई थी।
जीडीपी में गिरावट का अनुमान
नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमी रिसर्च (NCAER) के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था दूसरी तिमाही में भी 12.6 फीसदी नीचे गिरेगी। यह गिरावट तीसरी और चौथी तिमाही में भी रहेगी, जो क्रमश: 8.6% और 6.2% तक फिसल सकती हैं। इससे पहले कोरोना महामारी के कारण पहली तिमाही में भारतीय जीडीपी रिकॉर्ड 23.9 फीसदी नीचे गिरी थी। इसमें एकमात्र कृषि सेक्टर में बढ़त देखने को मिला था।
कोरोना और बढ़ते एनपीए के कारण रिपोर्ट के मुताबिक जीडीपी में पिछले वित्त वर्ष के स्तर की सुधार के लिए 2022-23 या उससे अधिक समय लग सकता है। इससे पहले अनुमान था कि 2022 तक जीडीपी में 7 फीसदी की ग्रोथ देखने को मिल सकती है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि प्री-कोविड स्तर पर पहुंचने के बाद अर्थव्यवस्था में 5.8 फीसदी की ग्रोथ दोबारा देखने को मिल सकती है।
महंगाई दर
दूसरी तिमाही में महंगाई दर 6.6 फीसदी रहने का अनुमान है, जो चालू वित्त वर्ष के लिए तय किए गए 6.5 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है। महंगाई की दोनों दरें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की 2-6 फीसदी टोलरेंस बैंड से दूर हैं। यह आर्थिक संकट के साथ जुड़ा हुआ है।
दूसरी तिमाही में जीडीपी की 13 फीसदी गिरावट का असर वित्तीय मोर्चे पर भी होगा, जिससे राजकोषीय घाटा और बढ़ेगा। इससे सरकार को पब्लिक सेक्टर से जीडीपी के 14-15 फीसदी के बराबर कर्ज लेने की आवश्यकता होगी। इससे आरबीआई पर दबाव बढ़ेगा।
1991 जैसे सुधारों की आवश्यकता
थिंक टैंक के मुताबिक आर्थिक मोर्चे पर सुधार के लिए 1991 के जैसे सुधारों की आवश्यकता होगी। इसके लिए सरकार को बैंक और फाइनेंशियल संस्थानों की मजबूत निगरानी करनी पड़ेगी और स्थिरता बनाए रखने पर ध्यान देना होगा। इसके अलावा एनपीए की समस्या को खत्म करने के लिए पब्लिक सेक्टर बैंकों में गुड गवर्नेंस और माइक्रो, स्मॉल और मिडीयम इंटरप्राइजेज (एमएसएमई) को कर्ज के जरिए राहत देने की भी आवश्यकता है।