देवउठनी एकादशी आज:शादियों का सीजन शुरू, अगले साल देव सोने तक 73 विवाह मुहूर्त; जानिए शालिग्राम–तुलसी पूजा की विधि

आज देवउठनी एकादशी है। यानी भगवान विष्णु 3 महीने 26 दिन सोने के बाद आज जाग रहे हैं। ऐसी धारणा है कि भगवान विष्णु हर साल आषाढ़ महीने की एकादशी पर सोते हैं और कार्तिक महीने की एकादशी पर जागते हैं। जागने वाली एकादशी को देव प्रबोधिनी कहते हैं। क्या सच में भगवान इतने दिनों तक सोते हैं? इस बारे में पंडितों का कहना है कि भगवान सोते नहीं बल्कि योग निद्रा में चले जाते हैं। ये एक तरह का मेडिटेशन होता है। इसे ही आमतौर पर भगवान का सोना कहा जाता है। भगवान का ये ध्यान हर साल जून-जुलाई में आषाढ़ महीने की एकादशी से शुरू होता है और नवंबर में कार्तिक महीने की एकादशी पर खत्म होता है। तकरीबन चार महीने के इस पीरियड को चातुर्मास कहते हैं। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु शयन करते हैं तब शादियां और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक काम नहीं करते। इस दौरान सिर्फ पूजा-पाठ होती है। भगवान के जागने के बाद ही मांगलिक कामों के लिए मुहूर्त शुरू होते हैं। अब 12 नवंबर को देव जागने के साथ शादियों का सीजन शुरू हो गया है। ये सीजन 7 महीने 26 दिनों का रहेगा। अगले साल 6 जुलाई को फिर से भगवान सो जाएंगे। इस साल नवंबर में 11 और दिसंबर में 5 दिन शादियां हो पाएंगी। हर साल 15 दिसंबर से मकर संक्रांति तक शादियों के मुहूर्त नहीं होते हैं, क्योंकि इस समय सूर्य धनु राशि में होता है। इसी तरह 14 मार्च से 13 अप्रैल तक कोई मुहूर्त नहीं रहेगा। इस वक्त सूर्य मीन राशि में रहता है। तुलसी-शालिग्राम विवाह की परंपरा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा चलती है और आरती होती है। शाम को शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु और तुलसी रूप में लक्ष्मी जी का विवाह होता है। घर-मंदिरों को सजाकर दीपक जलाते हैं। जो लोग तुलसी-शालिग्राम विवाह नहीं करवा पाते, वो सामान्य पूजा कर के भी ये त्योहार मनाते हैं। देव जागने और तुलसी विवाह से जुड़ी 3 कहानियां… वैज्ञानिक मान्यता : 6 करोड़ साल पहले बने जीवाश्म पत्थर साइंस की भाषा में शालिग्राम डेवोनियन-क्रिटेशियस पीरियड का एक काले रंग का एमोनोइड शेल फॉसिल्स है। यानी एक तरह का जीवाश्म। डेवोनियन-क्रिटेशियस पीरियड 40 से 6.6 करोड़ साल पहले था। ये वो पीरियड था जब धरती के 85% हिस्से पर समुद्र होता था। जीवाश्म करोड़ों सालों तक पृथ्वी की सतह में गहरे दबे हुए जीव और वनस्पति अवशेष से बने हैं। ये जीव अवशेष धीरे-धीरे तलछट के नीचे इकट्‌ठा हो जाते हैं। जिससे इन्हें ऑक्सीजन नहीं मिलती। इन जीव अवशेषों का ऑक्सीकरण नहीं हो पाता है और न ही विघटन। इसी के चलते ये मजबूत और कठोर चट्‌टान में बदल जाते हैं। ऐसे ही शालिग्राम पत्थर बने हैं। प्राचीनकाल की मूर्तिकला में इस पत्थर का इस्तेमाल किया जाता रहा है। शालिग्राम पत्थर बेहद मजबूत होते हैं। इसलिए शिल्पकार बारीक से बारीक आकृति उकेर लेते हैं। अयोध्या में भगवान राम की सांवली प्रतिमा इसी पत्थर से बनी है। इस पत्थर को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। यह विष्णु के प्रतीक यानी शंख जैसा होता है। शालिग्राम अलग-अलग रूपों में मिलते हैं। कुछ अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छेद होता है। इस पत्थर में शंख, चक्र, गदा या पद्म की तरह निशान बने होते हैं। —————————- देवउठनी एकादशी से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… 12 नवंबर को तुलसी विवाह: चार माह विश्राम के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी पर भगवान विष्णु जागेंगे निद्रा से, शाम को तुलसी के पास जलाएं दीपक मंगलवार, 12 नवबंर को कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। आषाढ़ महीने की देवशयनी एकादशी से कार्तिक की देवउठनी एकादशी तक तकरीबन चार महीने भगवान विष्णु आराम करते हैं। जब विष्णु जी आराम करते हैं, तब शुभ कामों के लिए मुहूर्त नहीं रहते हैं। देवउठनी एकादशी से शादी, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ जैसे संस्कारों के लिए शुभ मुहूर्त मिलना शुरू हो जाते हैं, इसलिए इस एकादशी पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने की भी परंपरा है। जानिए देव उठनी एकादशी से जुड़ी मान्यताएं और परंपराओं के बारे में पूरी खबर यहां पढ़ें