संसद में चल रहे मानसून सत्र के दौरान गुरूवार को लेबर बिल पर चर्चा के बीच भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी ने देश के विभिन्न प्रांतों के मजदूरों के हितों का मामला उठाया। सांसद तिवारी ने सदन के समक्ष सवाल रखा कि एक राज्य से दूसरे राज्य में काम करने वाले कामगारों को प्रवासी मजदूर कहा जाता है जो कहीं ना कहीं उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
तिवारी ने कहा कि यहां तक कि कोरोना काल में इन मजदूरों को केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त राहत को भी दिल्ली सहित कई राज्यों की सरकारों द्वारा सुचारू नहीं किया गया। जिससे दुखी होकर वह पलायन के लिए मजबूर हुए। तिवारी ने कहा कि बड़ा उदाहरण है कि केंद्र से मिलने के बावजूद मुफ्त राशन की व्यवस्था ऐसे कामगारों तक नहीं पहुंची। क्योंकि न तो उनका कोई लेखा-जोखा दिल्ली सरकार के पास था और ना ही सरकार ने उन्हें सूचीबद्ध करने की जरूरत समझी।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश विहार और झारखंड के लाखों कामगार व्यवस्था की इस चूक से प्रभावित हुए है और मुझे भरोसा है कि मोदी सरकार की पहल से ऐसे कामगारों के हितों की रक्षा होगी। तिवारी ने कहा कि देश के हर नागरिक को देश के अंदर कहीं भी रोजी-रोटी के लिए मेहनत मजदूरी करने का अधिकार है और उसमें वर्गीकरण नहीं होना चाहिए।
संसद में इस लेबर बिल पर चर्चा के दौरान मामला उठाते हुए मनोज तिवारी ने कहा कि कोरोना के चलते देश ने एक दुखद और बड़ा पलायन देखा। इस दौरान पलायन करने वाले मजदूरों को प्रवासी कहा गया और कई राज्यों ने कहीं ना कहीं मजदूरों के साथ वह व्यवहार नहीं किया गया जिसके वह सही हकदार हैं।