बुधवार, 12 अगस्त को गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय से जुड़े लोग जन्माष्टमी मनाएंगे। महाभारत में दिए गए श्रीकृष्ण के उपदेशों को जीवन में उतार लिया जाए तो हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने हर कदम पर सभी पांडव युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव का मार्गदर्शन किया और सभी पांडवों ने श्रीकृष्ण की बातों को माना भी। इसी वजह से विशाल कौरव सेना को पराजित कर दिया। श्रीकृष्ण की एक सीख यह है कि हमें अपनी कोशिश पूरी ईमानदारी से करना चाहिए, उसका फल क्या मिलेगा, ये भगवान पर छोड़ देना चाहिए।
द्रौपदी के स्वयंवर में श्रीकृष्ण की सीख
महाभारत में दुर्योधन ने सभी पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह की रचना की थी। इस षड़यंत्र से सभी पांडव बच गए और वेश बदलकर वन में रहने लगे थे। उस समय राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी का स्वयंवर आयोजित किया था।
स्वयंवर में पांडव में भी ब्राह्मणों के वेश में पहुंचे। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। यहां भूमि पर रखे पानी में देखकर छत पर घूम रही मछली की आंख पर निशाना लगाना की शर्त रखी गई थी। इस शर्त को पूरी करने वाले यौद्धा से द्रौपदी का विवाह होना था।
अर्जुन इस प्रतियोगिता में शामिल होने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि कैसे मछली की आंख में निशाना लगाना है। ये सुनकर अर्जुन बोले कि अगर सबकुछ मुझे ही करना है तो आपकी क्या आवश्यकता है?
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम वह काम करो जो तुम्हारे वश में है और मैं वह करूंगा जो तुम्हारे वश में नहीं है। मैं हिलते हुए पानी को स्थिर करूंगा ताकि तुम्हें निशाना लगाने में कोई परेशानी न हो। तुम सिर्फ अपना काम बेहतर से बेहतर करने की कोशिश करो।
इस प्रसंग की सीख यही है कि हमें सिर्फ अपनी कोशिश पूरी ईमानदारी से करनी चाहिए। लक्ष्य पूरा होगा या नहीं ये तो भगवान पर छोड़ देना चाहिए। अगर हम धर्म के साथ हैं और ईमानदारी से कर्म कर रहे हैं तो भगवान की कृपा से हमें सफलता जरूर मिलेगी।