हाल ही में बॉलीवुड एक्टर परेश रावल ने एक इंटरव्यू में दावा किया है कि उन्होंने घुटने की चोट से उबरने के लिए 15 दिनों तक अपना यूरिन पिया और इससे उन्हें फायदा हुआ। उनके इस बयान से एक बार फिर से विवादित यूरिन थेरेपी चर्चा में आ गई है। कुछ वैकल्पिक मेडिकल प्रैक्टिस में यह थेरेपी समय-समय पर काफी लोकप्रिय भी रही है। इसे लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। लोगों के मन में बहुत से सवाल उठ रहे हैं। यह मिथक है या इसमें कुछ सच्चाई भी है। इसलिए ‘जरूरत की खबर’ में आज यूरिन थेरेपी का बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- एक्सपर्ट: डॉ. संजीव गुलाटी, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली सवाल: क्या यूरिन पीने से शरीर को कोई फायदा होता है? जवाब: नहीं, यूरिन में ऐसे तत्व होते हैं, जिन्हें शरीर ने पहले ही हानिकारक मानकर बाहर निकाला है। इसमें यूरिया, यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन जैसे कई टॉक्सिन्स होते हैं। अगर हम यूरिन को दोबारा शरीर में डालते हैं तो ये विषैले तत्व फिर से शरीर पर बोझ बनेंगे। इसके अलावा, यूरिन में बैक्टीरिया भी हो सकते हैं जो संक्रमण का कारण बन सकते हैं। सवाल: क्या यूरिन पीने से किसी बीमारी का इलाज हो सकता है? जवाब: वैज्ञानिक रूप से इसका कोई प्रमाण नहीं है। कुछ वैकल्पिक मेडिकल प्रैक्टिस में ऐसा दावा जरूर किया जाता है, लेकिन साइंस इसे पूरी तरह नकारता है। यूरिन पीने का मतलब है कि हमने फिर से शरीर में उन हानिकारक तत्वों को डाल दिया गया है, जिसे शरीर ने हानिकारक मानकर बाहर निकाला था। सवाल: यूरिन में कौन से हानिकारक तत्व होते हैं? जवाब: यूरिन में कई ऐसे हानिकारक तत्व होते हैं जिन्हें शरीर खुद बाहर निकाल देता है। इनमें सबसे प्रमुख है- यूरिया, जो प्रोटीन के टूटने से बनता है और इसकी मात्रा ज्यादा होने पर यह विषैला हो सकता है। इसके अलावा क्रिएटिनिन होता है, जो किडनी की कार्यक्षमता पर असर डाल सकता है। सवाल: क्या यूरिन पीने से शरीर का केमिकल बैलेंस बिगड़ जाता है? जवाब: हां, शरीर का pH लेवल, इलेक्ट्रोलाइट्स और फ्लूइड बैलेंस बहुत नाजुक होते हैं। यूरिन पीने से इनका संतुलन बिगड़ सकता है, क्योंकि इसमें मौजूद अमोनिया, यूरिक एसिड और कई केमिकल्स शरीर के इंटरनल एनवायर्नमेंट को असंतुलित कर सकते हैं। सवाल: क्या यूरिन थेरेपी से घाव और स्किन प्रॉब्लम ठीक हो जाते हैं? जवाब: नहीं, यह मिथक है। यूरिन थेरेपी को लेकर ऐसे कई मिथक हैं। इन सभी बातों का कोई साइंटिफिक बैकअप नहीं है। यह भी दावा किया जाता है कि यूरिन स्टेरलाइज्ड होता है, जबकि सच ये है कि यूरिन में बैक्टीरिया, यूरिया और कई वेस्ट होते हैं। इसे लेकर मिथक और सच्चाई क्या है, ग्राफिक में देखिए- सवाल: अगर यूरिन शरीर का हिस्सा है तो यह हानिकारक क्यों है? जवाब: यूरिन शरीर का हिस्सा नहीं है। शरीर ने इसे गैर-जरूरी लगने पर ही बाहर निकाला है। हमारे शरीर में ऐसी कई प्रक्रियाएं होती हैं, जिनका उद्देश्य विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना होता है, जैसे- पसीना, कार्बन डाइ-ऑक्साइड या यूरिन। अगर हम इन चीजों को वापस शरीर में डालते हैं तो यह प्रक्रिया शरीर के नेचुरल ‘डिटॉक्सिफिकेशन’ के खिलाफ है। इसे ऐसे समझिए कि किसी कार से डीजल या फ्यूल के इस्तेमाल से धुआं निकला है और हम इसे वापस कार के इंजन में डालने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल: यूरिन पीने से किडनी पर क्या असर होता है? जवाब: यूरिन पीने से किडनियों के ऊपर काम का अतिरिक्त दबाव पड़ता है। किडनी का काम शरीर से टॉक्सिन्स और वेस्ट प्रोडक्ट्स को बाहर निकालने का है। अगर कोई अपना यूरिन फिर से पीता है, तो इसका सीधा सा मतलब है कि शरीर में फिर से ढेर सारे वेस्ट प्रोडक्ट भर दिए गए हैं। जिन्हें किडनी फिर से छानकर बाहर निकालेगी। इसके अलावा, यूरिन में मौजूद हानिकारक तत्व किडनी की कार्यक्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं। सवाल: यूरिन पीने से लिवर पर क्या असर होता है? जवाब: यूरिन हमारे शरीर का फिल्टर्ड वेस्ट प्रोडक्ट है, जिसे किडनी ब्लड से फिल्टर करके बाहर निकालती है। इसमें यूरिया, क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड और अमोनिया होता है। इसमें दवाओं के और हार्मोन्स के बायप्रोडक्ट्स होते हैं, जो शरीर के लिए गैर-जरूरी या पॉइजनस होते हैं। अगर कोई व्यक्ति इसे पी रहा है तो वह लिवर और किडनी दोनों के ऊपर ‘री-प्रोसेसिंग लोड’ बढ़ा रहा है। लिवर को फिर से इन टॉक्सिन्स को मेटाबोलाइज करना पड़ता है, जिससे लिवर की कोशिकाओं पर ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस बढ़ सकता है। इससे लिवर की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है, खासकर अगर किसी को पहले से कोई लिवर कंडीशन है तो यह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। लगातार ऐसा करने से फैटी लिवर, इंफ्लेमेशन या माइल्ड लिवर डैमेज तक हो सकता है। सवाल: कई दिन तक यूरिन पीने से क्या समस्याएं हो सकती हैं? जवाब: यूरिन कंप्लीटली वेस्ट प्रोडक्ट है। इसे एक बार भी पीने से नुकसान ही होता है। अगर कोई लंबे समय तक पी रहा है तो किडनी से लेकर कई अंगों को गंभीर नुकसान हो सकते हैं। किडनी पर असर: टॉक्सिन्स दोबारा शरीर में जाने से किडनी पर बार-बार फिल्टरिंग का दबाव बढ़ता है। इससे उसकी कार्यक्षमता कमजोर हो सकती है। लिवर डैमेज का खतरा: बार-बार विषाक्त पदार्थों को प्रोसेस करने से लिवर में इंफ्लेमेशन हो सकता है और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस बढ़ सकता है। इससे लिवर डैमेज हो सकता है। संक्रमण का खतरा: यूरिन में ई. कोलाई जैसे बैक्टीरिया हो सकते हैं, जो पेट में गड़बड़ी, यूटीआई और लूज मोशन जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। पाचन में गड़बड़ी: यूरिया और अमोनिया जैसे तत्वों के कारण मतली, उल्टी और पेट दर्द हो सकता है। इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है: बार-बार टॉक्सिन्स के संपर्क में आने से शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है। …………………….
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