अभी पितृ पक्ष चल रहा है और इन दिनों में पितरों के लिए पिंडदारन, श्राद्ध और तर्पण करने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार तर्पण करते समय हाथ में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को चढ़ाया जाता है। जिन लोगों की मृत्यु तिथि मालूम न हो, उनका श्राद्ध कर्म पितृ पक्ष की अमावस्या पर कर सकते हैं। इस बार अमावस्या 17 सितंबर को है।
श्राद्ध कर्म करते समय पिंडों पर अंगूठे की मदद से धीरे-धीरे जल चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से वे तृप्त होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। हस्तरेखा ज्योतिष के मुताबिक हथेली में अंगूठे और तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) के मध्य भाग के कारक पितर देवता होते हैं। इसे पितृ तीर्थ कहा जाता है।
हथेली में जल लेकर अंगूठे से चढ़ाया गया जल हमारे हाथ के पितृ तीर्थ से होता हुआ पितरों को अर्पित होता है। इस वजह से पितरों को जल्दी तृप्ति मिलती है।
जीवित लोगों को हथेली अंदर की ओर करके भोजन परोसा जाता है, जबकि मृत के लिए जल अर्पित करते समय अंगूठे की ओर से जल चढ़ाया जाता है। पितर देवता का स्थान हमारी दुनिया में नहीं होता है। अंगूठे से जल चढ़ाने का एक अर्थ यह है कि पितरों के लिए ये एक संकेत है कि अब आपका स्थान हमारी दुनिया में नहीं, दूसरी दुनिया में है। हथेली से जल चढ़ाकर हम उनके लिए दूसरी दुनिया की ओर इशारा करते हैं।
पितृ पक्ष में ये बातें भी ध्यान रखें
पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को अधार्मिक कर्मों से बचना चाहिए। पितृ पक्ष में किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। अगर नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं तो घर पर सभी तीर्थों का और पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद गरीब व्यक्ति दान में अनाज और धन दें। घर-परिवार में सुख-शांति बनाए रखनी चाहिए।