पितृ पक्ष की चतुर्थी आज:सुबह गणेश पूजा, दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान और सूर्यास्त के बाद करें चंद्र की पूजा

आज (21 सितंबर) पितृ पक्ष की चतुर्थी है। इस तिथि पर उन पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म करें, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की चतुर्थी तिथि पर हुई हो। पितृ पक्ष, चतुर्थी और शनिवार के योग में किए गए पूजा-पाठ, दान-पुण्य से अक्षय पुण्य मिलता है, ऐसा पुण्य जिसका असर जीवनभर बना रहता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणपति हैं, क्योंकि इसी तिथि पर उनका अवतार हुआ था। जो लोग गणेश जी को अपना आराध्य मानते हैं तो सालभर की सभी चतुर्थियों पर व्रत-उपवास करते हैं। एक साल में कुछ 24 चतुर्थियां आती हैं और जब किसी वर्ष में अधिकमास आता है तो इस तिथि की संख्या 2 बढ़कर 26 हो जाती है। चतुर्थी व्रत घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है। महिला-पुरुष दोनों ही ये व्रत कर सकते हैं। ऐसे कर सकते हैं चतुर्थी व्रत जो लोग ये व्रत करना चाहते हैं, वे सुबह गणेश जी की पूजा करें और पूजा में भगवान के सामने चतुर्थी व्रत करने का संकल्प लें। दिनभर अन्न का त्याग करें। भूखे रहना संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं, दूध का सेवन कर सकते हैं। दिनभर गणेश जी कथाएं पढ़ें-सुनें। गणेश के मंत्रों का जप करें। शाम को करें चंद्र पूजा चतुर्थी व्रत में चंद्र पूजा करने की परंपरा है। शाम को सूर्यास्त के बाद जब चंद्र दिखाई दे तो चंद्र देव के दर्शन करें और अर्घ्य अर्पित करें, पूजा करें। इसके बाद गणेश जी की पूजा करें और फिर भोजन सकते हैं। ये चतुर्थी व्रत करने की सामान्य विधि है। इस तरह चतुर्थी व्रत पूरा हो जाता है। शनिदेव के लिए करें ये शुभ काम आज शनिवार, पितृ पक्ष और चतुर्थी योग होने से शनिदेव की पूजा करने का महत्व और अधिक बढ़ गया है। शनिदेव को काले तिल, सरसों का तेल, काले-नीले कपड़े और फूल चढ़ाएं। शनिदेव के मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जप करें। मंत्र जप कम से कम 108 बार करें। शनिवार को हनुमान जी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें। हनुमान के मंत्र ऊँ रामदूताय नम: का जप करें। आप चाहें तो राम नाम का जप भी कर सकते हैं। दोपहर में करें पितरों के लिए धूप-ध्यान पितरों के श्राद्ध करने का सबसे अच्छा समय दोपहर का ही माना जाता है। दोपहर में करीब 12 बजे गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं और जब कंडे से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी अर्पित करें, पितरों का ध्यान करें। हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को चढ़ाएं।