पुणे के हॉस्पिटल में कोरोना पीड़ित मां से नवजात में कोविड-19 फैलने का मामला सामने आया है। यह देश का पहला ऐसा मामला है। विशेषज्ञों ने इसे वर्टिकल ट्रांसमिशन बताया है, इसका मतलब होता है कोख में कोरोना का संक्रमण फैलना। कोरोना का संक्रमण गर्भनाल के जरिए हुआ है। यह मामला ससून जनरल हॉस्पिटल का है।
डिलीवरी के एक हफ्ते पहले मां में लक्षण दिखे
हॉस्पिटल की शिशु रोग विभाग की हेड डॉ. आरती किणिकर के मुताबिक, यह मामला काफी चुनौतीभरा रहा क्योंकि गर्भवती महिला में लक्षण डिलीवरी के एक हफ्ते पहले दिखे थे। आईसीएमआर की गाइडलाइन के मुताबिक, डिलीवरी से पहले हर महिला की कोविड-19 जांच जरूरी है। जब महिला की जांच की गई तो उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी। डिलीवरी के बाद जब बच्चे का स्वैब नमूना, अम्बलिकल कॉर्ड और गर्भनाल से नमूना लिया गया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
जन्म के 3 दिन बाद दिखे नवजात में लक्षण
डॉ. आरती के मुताबिक, बच्ची को अलग वॉर्ड में शिफ्ट किया गया। जन्म के तीन दिन बाद उसमें कोरोना के तेज लक्षण दिखने शुरू हुए थे। उसमें बुखार और साइटोकाइन स्टॉर्म के लक्षण थे। जब शरीर को बचाने वाला इम्यून सिस्टम ही शरीर के विरुद्ध काम करने लगता है तो उसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं। शरीर का इम्यून सिस्टम बेकाबू होने लगता है।
मां और बच्ची दोनों में बनीं एंटीबॉडी
डॉ. आरती के मुताबिक, बच्ची को दो हफ्तों तक आईसीयू में रखा गया। 15 दिन बाद वह रिकवर हुई। मां और बच्ची दोनों को अब डिस्चार्ज किया जा चुका है। जांच के दौरान नवजात में वर्टिकल ट्रांसमिशन की पुष्टि हुई। हमने तीन हफ्ते तक उनके ब्लड सैम्पल्स की जांच ताकि एंटीबॉडी की स्थिति पता चल सके। रिपोर्ट में सामने आया कि दोनों में एंटीबॉडी बनीं। मां में एंटीबॉडी का स्तर अधिक था और बच्ची में ये कम विकसित हुई थीं।
मई के अंतिम सप्ताह में हुई थी डिलीवरी
डॉ. आरती ने कहा, यह मामला काफी चुनौतीभरा था। बच्ची में कोरोना के गंभीर लक्षण दिख रहे थे उसे बेहद खास देखरेख की जरूरत थी। लगातार देखभाल के बाद वह अब स्वस्थ है। अब इस मामले को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित कराने की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं।
हॉस्पिटल के डीन डॉ. मुरलीधर तांबे के मुताबिक, देश में वर्टिकल ट्रांसमिशन का यह पहला मामला है। मैं डॉक्टर्स को बधाई देता हूं जिन्होंने लगातार मेहनत और लगन से मां और बच्ची का इलाज किया। बच्ची का जन्म मई के अंतिम सप्ताह में हुआ था। तीन हफ्ते बाद मां और नवजात को डिस्चार्ज कर दिया गया था।