पुलिस कांस्टेबल माहिनूर खातुन ने लॉकडाउन में पिता के ऑपरेशन के लिए जमा पैसों से गरीबों को दिया राशन, अब ”सपोर्ट माहिनूर” अभियान से बन रहीं बेसहाराओं का सहारा

लॉकडाउन के दौरान पुलिस कांस्टेबल माहिनूर खातून ने पुलिस कीड्यूटी बखूबी निभाई और लोगों को घर में रहने का संदेश दिया। लेकिन वे खुदगरीबों को राशन बांटने के लिए घर से बाहर काम करती रहीं।पश्मिचम बंगाल के पूर्वी बर्दवान जिले की 37 वर्षीय खातुनअपनी ड्यूटी से अलग समाज की सेवा कर रही हैं।

माहिनूर उस इलाके में रहती हैं जहां उनके अधिकांश पड़ोसी दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चलाने वाले या ठेले पर सब्जी बेचने वाले हैं।

यहीं रहते हुएखातुन की मां ने दुकानों पर पेपर बैग बनाकर बेचें और उनके पिता ने ट्रक ड्राइवरी कर अपनी बेटी को पढ़ाया है।
लॉकडाउन के दौरान खातुन ने अपने फर्ज को पूरा करते हुए इस बात पर गौर किया कि उनके पड़ोस में रहने वाले लोगों के लिए घर में रहते हुए दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल है।वे कहती हैं लॉकडाउन के दौरानमैंने देखा लोग एक दूसरे से आलू या चावल मांग रहे हैं।

कौन किसकी मदद करेगा

मैं पिछले 12 साल से नौकरी कर रही हूं। इस दौरान मैंने इतने खराब हालातों में अपने पड़ोसियों को कभी नहीं देखा। उनकी हालत देखकर मुझे बहुत अफसोस हुआ। मैंने सोचा किजब हर कोई पड़ोस में गरीब है तो कौन किसकी मदद करेगा।

गरीबो को राशन बांटती हुई माहिनूर और उसका परिवार

मदद करने का फैसलाकिया

माहिनूर की तनख्वाह 40,000 प्रतिमाह है। इस वेतन में वे अपने माता-पिता और एक बेटे की देखभाल कर रही हैं। उनके पिता मसूद चौधरी की उम्र 70 साल है। उनकी कार्डियक सर्जरी के लिए माहिनूर लंबे समय से बचत करके पैसे जमा कर रही हैं।

जब अपने पड़ोसियों की खराब हालत उनसे देखी नहीं गई तो उन्होंने अपने बचते किए हुए पैसों से गरीबों की मदद करने का फैसला किया।

गरीबों में बांटना शुरू किया
वे कहती हैं जब मैंने अपने पिता से पूछा कि क्या इन पैसों से हम गरीबों की मदद कर सकते हैं तो उन्होंने फौरन हां कहदिया। खातुन ने अपने जमा किए हुएपैसों से तेल, चावल, आटा, दाल, प्याज और आलू के पैकेट बनाकर गरीबों में बांटना शुरू किया।
मिलाप संस्था की मदद से माहिनूर ने अप्रैल में ”सपोर्ट माहिनूर” अभियान की शुरुआत की और लगभग 6 लाख रुपए इकट्‌ठा किए। खातुन अब तक 10,000 राशन के पैकेट वितरीत कर चुकी हैं।

तीन महीनों से हमारे काम बंद हैं
माहिनूर के पड़ोस में रहने वाली इशरत कहती हैं मेरे परिवार में सात लोग हैं। पिछले तीन महीनों से हमारे काम बंद हैं। अगर ऐसे में माहिनूर मदद नहीं करती तो हम भूख से मर जाते।माहिनूर की पड़ोसन रमिशा के अनुसारखातुन का दरवाजा गरीबों के लिए हमेशा खुला रहता है।

मैं ये जानती हूं कि अगर मैं बीमार हूं और माहिनूर के पास मदद के लिए जाऊंगी तो वह कभी मना नहीं करेगी।

बचत करना शुरू कर दिया है
माहिनूर के पिता को इस बात की खुशी है कि जो पैसा उनके इलाज के लिए जमा किया गया था, उसका इस्तेमाल नेक काम में हुआ। माहिनूर ने पिता के इलाज के लिए एक बार फिर बचत करना शुरू कर दिया है।
बुर्दवान के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस भास्कर मुखर्जी कहते हैं माहिनूर के इस प्रयास को निश्चित रूप से सराहा जाना चाहिए। हमें उस पर गर्व है।

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