सवाल- मैं इंदौर की रहने वाली हूं। मेरा 13 साल का एक बेटा है। एक दिन वह अपना कमरा बंद करके लैपटॉप में पोर्न वीडियो देख रहा था। जब मैं अचानक उसके कमरे में पहुंची तो यह देखकर शॉक्ड हो गई। मैंने गुस्से में आकर उसे मारा-पीटा। काफी डांटने और पूछने पर पता चला कि यह क्लिप उसे क्लास के एक लड़के ने दी थी। बेटे की उम्र अभी बहुत कम है और वह अभी इन सब चीजों को समझने के लिए मेच्योर नहीं है। कहीं उसे इसकी लत न लग जाए, जिससे उसकी पढ़ाई, सेहत व करियर प्रभावित हो। मैं बहुत चिंतित हूं कि आखिर उसे इस बारे में कैसे समझाऊं। एक्सपर्ट: रिद्धि दोषी पटेल, चाइल्ड एंड पेरेंटिंग साइकोलॉजिस्ट, मुंबई जवाब- आपने जिस घटना का जिक्र किया, इसमें कुछ भी असहज करने वाला या अस्वाभाविक नहीं है। हो सकता है कि आपको ये जानकर थोड़ी परेशानी हो रही हो क्योंकि पेरेंट्स के लिए इन चीजों को स्वीकार करना बहुत आसान नहीं होता है। इसका मुख्य कारण हमारी पारंपरिक परवरिश है। दरअसल हमारे समाज में ये सारे सवाल और मुद्दे अभी इतना ज्यादा टैबू बने हुए हैं कि मां-बाप खुद इसके साथ असहज होते हैं। ऐसे में बच्चे का पोर्न देखना पेरेंट्स को शॉक दे सकता है। लेकिन सबसे पहले आप अपने दिमाग से इस डर और शॉक को बाहर निकाल दीजिए क्योंकि ये बहुत स्वाभाविक है। दरअसल इस समय बच्चा उस उम्र से गुजर रहा है, जब उसके मन में इस तरह की तमाम जिज्ञासाएं और सवाल हो सकते हैं। इस बीच जब बच्चे के किसी दोस्त ने उसे पोर्न दिखाया है तो सहज ही उसके मन में जिज्ञासा पैदा होगी कि ये क्या है। हालांकि यहां एक महत्वपूर्ण सवाल ये है कि क्या बच्चे की उम्र और उसका मानसिक विकास उस स्तर पर पहुंचा है कि वह इसे समझ सके। जवाब है नहीं, क्योंकि वह अभी छोटा है, इमेच्योर है, अभी उसका मानसिक विकास पूरी तरह नहीं हुआ है। ऐसे में घर के बड़ों की, माता-पिता की और आसपास के लोगों की ये जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चे की जिज्ञासाओं का समाधान सही ढंग से करें। हालांकि इस दौरान कुछ गलतियां बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। बच्चा जो कर रहा है, वह उसके उम्र में स्वाभाविक है। वह इस विषय पर सही और वैज्ञानिक समझ रखे, इसके लिए जरूरी है कि उसे सही स्रोतों से सही जानकारी मिले। एक बात हर माता–पिता और शिक्षक को समझनी चाहिए कि अगर वे सही ढंग से बच्चे को नहीं बताएंगे तो बच्चा गलत स्रोतों से गलत जानकारियां हासिल करेगा। इसलिए बच्चे को ये बताएं या महसूस कराएं कि अगर तुमने पोर्न देखा तो कोई बात नहीं। मैं समझ रही हूं कि ये बहुत स्वाभाविक है। लेकिन बेटा हर चीज को जानने की एक सही उम्र और सही तरीका होता है। इसके लिए उसे कुछ उदाहरण भी दे सकती हैं। जैसेकि- उदाहरण-1 मैं किचन में खाना बनाती हूं तो उसका एक तरीका है कि कैसे सब्जी बनानी है, कैसे आटा गूंथना है, उसमें कब और कितना पानी डालना है वगैरह-वगैरह। इसमें थोड़ी भी असावधानी भोजन को खराब कर सकता है। उदाहरण-2 ऐसे ही जब तुम फुटबाल खेलते हो तो कब दौड़ लगाना है, कहां और कैसे गोल करना है, फुटबाल पर कब किक मारना है, सबका एक निश्चित समय है, उससे पहले कोई भी काम करने पर खेल खराब हो जाता है। उदाहरण-3 जब तुम क्रिकेट खेलते हो तो कहां से बॉल फेंकना है, कब और कैसे शॉट मारना है, कैसे आउट करना है। इसका भी एक निश्चित समय और तरीका है, जिसके बारे में जानकारी होना जरूरी है। ऐसे ही हर काम का एक निश्चित समय और तरीका होता है, जिसके बारे में पहले जानना जरूरी है। किताबों या वीडियोज के माध्यम से समझाएं बाजार में ऐसी बहुत सारी किताबें मौजूद हैं, जिनमें टीन एज बच्चों की ऐसी जिज्ञासाओं और सवालों के वैज्ञानिक तरीके से जवाब दिए गए हैं। इन किताबों का अध्ययन करके आप बच्चे को आसानी से समझा सकती हैं। लेखक प्रकाश कोठारी की एक किताब है, जिसका नाम ‘कॉमन सेक्सुअल प्रॉब्लम्स-सॉल्यूशंस’ है। अगर बच्चा 18 साल के करीब हाे तो उसे भी ऐसी किताबें पढ़ने के लिए दे सकती हैं, जिससे उसकी बुनियादी जिज्ञासाओं का समाधान हो जाएगा। इसके अलावा इंटरनेट पर कुछ एक्सपर्ट्स के वीडियोज भी मौजूद हैं, जो इस बारे में बेहतर और समुचित जानकारी देते हैं। इसे बच्चे को सुना सकती हैं। एक बात याद रखें कि आपका बेटा अभी मेच्योर नहीं है। उसे आपकी मदद और मार्गदर्शन की जरूरत है। उसे समझाएं ताकि वह अपनी भावनाओं और चिंताओं को आपसे शेयर कर सके। इसके साथ ही कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखें। इन सबके साथ ही सबसे पहले आप अपने भीतर से शर्म और डर को निकालिए। बच्चा गलतियां न करे और सही रास्ते पर चले, इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उसके आसपास के लोग उसे समझें। उसके सवालों के जवाब दें और उसे सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करें। टीन एज बच्चे की पेरेंटिंग में इन बातों रखें ख्याल आपको ये भी समझना होगा कि टीन एज के दौरान बच्चों में शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक बदलाव आते हैं। इस उम्र में बच्चे नए दोस्त बनाना, नई-नई चीजों को जानना-समझना और एक्सप्लोर करना चाहते हैं। इस दौरान कई बार पेरेंट्स जाने-अनजाने में कुछ गलतियां करते हैं। कुछ पेरेंट्स बच्चे की खराब आदतों को सुधारने के लिए मारने-पीटने का तरीका अपनाते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इससे बच्चे मां-बाप से डरने लगते हैं और उनके साथ अपनी कोई भी बात शेयर करने से घबराते हैं। टीन एज में बच्चे पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं। इसके लिए हर बात पर रोक-टोक न करें, लेकिन पेरेंट्स उसकी एक्टिविटी पर नजर जरूर बनाए रखें। जैसे कि बच्चा कब-कहां आता-जाता है, कैसे बच्चों के साथ उसकी दोस्ती है, वह मोबाइल फोन में क्या देखता है, वगैरह-वगैरह। अंत में ये कहकर अपनी बात खत्म करना चाहूंगी कि ये बहुत दुखद है कि हमारे देश में सेक्स एजुकेशन का अभाव है। ये सारी बुनियादी बातें बच्चों को स्कूलों में बताई जानी चाहिए। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो आप ये जिम्मेदारी जरूर लें क्योंकि यही एकमात्र तरीका है, जो बच्चे को सुरक्षित रख सकता है। साथ ही गलत रास्ते पर जाने और खतरनाक परिणाम भुगतने से रोक सकता है। ……………………. पेरेंटिंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए रिलेशनशिप- टाइगर पेरेंटिंग बच्चे के लिए खतरनाक: इन 9 संकेतों से पहचानें कहीं आप टाइगर पेरेंट तो नहीं, साइकोलॉजिस्ट के 10 सुझाव टाइगर पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों के जीवन से जुड़े सभी फैसले खुद लेते हैं और उनकी हमेशा निगरानी करते रहते हैं। हालांकि इस तरह की सख्त पेरेंटिंग बच्चों के लिए नुकसानदायक होती है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक, टाइगर पेरेंटिंग से बच्चों में प्रतिभा का विकास नहीं हो पाता है। पूरी खबर पढ़िए…