करीब 3 महीने से चला आ रहा नेपाल का सियासी संकट अब तक हल नहीं हुआ। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और उनके मुख्य विरोधी पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच 10 बार हुई बातचीत बेनतीजा रही। अब प्रचंड का रुख बेहद सख्त नजर आ रहा है। प्रचंड ने अपने समर्थकों से साफ कह दिया है कि उन्हें बुरे वक्त के लिए तैयार रहना चाहिए। हालांकि, यह साफ नहीं है कि प्रचंड के बयान के मायने क्या हैं।
दोनों जिद पर अड़े हैं
प्रचंड की मांग है कि ओली या तो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दें या फिर पार्टी अध्यक्ष छोड़ें। प्रचंड के साथ एनसीपी के कई नेता भी यही मांग कर रहे हैं। हालात ये हैं कि ओली पार्टी की स्टैंडिग कमेटी की मीटिंग बुलाने से भी बच रहे हैं। क्योंकि, उन्हें वहां उनके विरोधियों की तादाद काफी ज्यादा है। अब तक सात बार इस मीटिंग को किसी न किसी बहाने से टाला जा चुका है। ओली दोनों में से कोई पद नहीं छोड़ना चाहते। अगर वे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देते हैं तो पावर चला जाएगा और पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ते हैं तो प्रचंड उस पर काबिज हो जाएंगे।
प्रचंड के बयान के मायने क्या?
पिछले कुछ हफ्तों में दोनों नेताओं के बीच कुल मिलाकर 10 बार अकेले में बातचीत हुई। जून में एक बार स्टैंडिंग कमेटी की मीटिंग भी हुई थी। माना जा रहा है कि प्रचंड का बयान ओली पर दबाव बढ़ाना है। प्रचंड ने कहा- हमारा मकसद कुर्सी हासिल करना या सत्ता पाना नहीं है। हम चाहते हैं कि सरकार और पार्टी सही तरह काम करे। जो गलत हुआ है या जो गलत हो रहा है, हम दोनों का विरोध करेंगे। माना जा रहा है कि प्रचंड अब सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ आवाज उठाएंगे। वे पहले भी ऐसा कर चुके हैं।
क्या इस्तीफा देंगे ओली?
स्टैंडिंग कमेटी की पिछले महीने आखिरी बैठक हुई थी। तब इसके 44 में से 33 सदस्यों ने साफ तौर पर प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग की थी। इसके बाद से मीटिंग टलती आ रही है। लेकिन, अगर ये मीटिंग होती तो ओली को किसी एक पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। पहले इस तरह की खबरें भी आईं थीं कि ओली और प्रचंड के बीच समझौता हो गया है। लेकिन, प्रचंड के नए बयान से साफ हो गया है कि दोनों नेताओं का टकराव जारी है।
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