तारीख 9 दिसंबर, भारत में रात के करीब 12 बजे थे। तभी खबर आई कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद अपना देश छोड़कर पूरे परिवार के साथ रूस भाग चुके हैं। 27 नवंबर को जब सीरिया के विद्रोहियों ने वहां के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर हमला किया तो शायद ही असद ने सोचा होगा कि उनके शासन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। एक-एक कर 11 दिन के भीतर सीरिया में असद परिवार को सत्ता से बेदखल करने के पीछे 42 साल का सुन्नी नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी है। जो दुनिया के सबसे क्रूर आतंकियों में से एक अबू बकर अल बगदादी का लेफ्टिनेंट रह चुका है। स्टोरी में सीरिया के राष्ट्रपति असद को इस्तीफा देकर भागने को मजबूर करने वाले अबू मोहम्मद अल-जुलानी की पूरी कहानी… विद्रोही के घर में जन्मा, विद्रोही बना तारीख 26 जुलाई, साल-1956
मिस्र में राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली इस नहर पर पहले ब्रिटेन का कब्जा था। इस फैसले से नासिर पूरी दुनिया खासकर अरब देशों में लोकप्रिय हो गए। सीरिया जो हाल ही में ब्रिटिश सरकार के कंट्रोल से आजाद हुआ था, वहां नासिर को हीरो की तरह देखा जाने लगा। नासिर का सपना अरब वर्ल्ड बनाने का था, जहां सबकी राष्ट्रीयता ‘अरबी’ हो। इसे पूरा करने के लिए उन्होंने मिस्र और सीरिया को मिलाकर एक देश बनाने की पहल की। 21 फरवरी 1958 को मिस्र और सीरिया मिलकर एक देश यूनाइटेड अरब रिपब्लिक (UAR) बन गए। लेकिन कुछ समय बाद सीरिया की बाथ पार्टी इस फैसले के खिलाफ हो गई क्योंकि इससे जुड़े नेताओं को अहम पदों पर से हटा दिया गया था। 8 मार्च 1961 को बाथ पार्टी ने सीरिया में तख्तापलट कर दिया जिससे UAR 3 साल ही चल सका। सीरिया में एक शख्स ने इस तख्तापलट का खूब विरोध किया, उसका नाम अहमद हुसैन था। हुसैन नासेर के फैन थे और एक अरब दुनिया का सपना उनके दिल के काफी करीब था। CBS न्यूज के मुताबिक तख्तापलट का विरोध करने की वजह से हुसैन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ समय बाद ही वे जेल से भागकर जॉर्डन चले गए। वहां भी उन्हें कैद कर लिया और सऊदी या फिर इराक चले जाने का फरमान सुनाया। हुसैन ने इराक जाना चुना। वहां उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। इराक में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सीरिया लौट गए। यहां हुसैन ने चुनाव भी लड़ा लेकिन वे जीत नहीं सके। इसके बाद वे सऊदी अरब चले गए। वे पेट्रोलियम इंजीनियर थे। सऊदी में हुसैन ने 10 साल तक काम किया। इसी दौरान 1982 में जुलानी का जन्म हुआ। मेडिकल की पढ़ाई छोड़, आतंक से जुड़ा जुलानी
जुलानी सिर्फ 7 साल के थे जब 1989 में उनके पिता परिवार समेत सीरिया लौट आए। जुलानी की पढ़ाई दमिश्क में ही हुई। 2000 की शुरुआत में उसने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। एक लिबरल इस्लाम वाले माहौल में पला-बढ़ा जुलानी जब कॉलेज पहुंचा तो उसका सामना कट्टर इस्लाम वाली विचारधारा रखने वाले लोगों से हुआ। ये वो दौर था जब आतंकी संगठन अलकायदा ओसामा बिन लादेन की लीडरशिप में मीडिल ईस्ट में अपने पैर पसार रहा था। एक साल बाद ही 2001 में अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ था। इसी समय जुलानी वो फिलिस्तीनियों के संघर्ष से वाकिफ हुआ। 2003 में जब उसे लगा कि अमेरिका इराक पर हमला करने वाला है तो वह विचलित हो गया और मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर जंग लड़ने चला गया। इराक पहुंचकर जुलानी, अलकायदा नेताओं के संपर्क में आया। जून 2006 में उसे अमेरिकी सेना ने पकड़ लिया और जेल भेज दिया। जेल में रहने के दौरान जुलानी बगदादी से जुड़े लोगों के संपर्क में आया। इन्हीं में से एक शख्स 2010 में जब रिहा हुआ तो उसने बगदादी को बताया कि जेल में उसकी मुलाकात एक 28 साल के लड़के से हुई है जो सीरिया के चप्पे-चप्पे के बारे में जानता है। ये लड़का जुलानी था। बगदादी को बताया गया कि ये संगठन के काम आ सकता है। ठीक 4 महीने बाद लगभग 5 साल जेल में बिताने के बाद जुलानी 2011 में बाहर आया। जेल के बाहर जुलानी का इंतजार अलकायदा का वही नेता कर रहा था, जिसने बगदादी से उसकी तारीफ की थी।अलकायदा के नेता ने जुलानी को कहा कि वह बगदादी को चिट्ठी लिखे। इसके बाद जुलानी ने बगदादी को 50 पन्नों की एक चिट्ठी लिखी। जिसमें सीरिया के सैकड़ों सालों के इतिहास और इलाकों के बारे में पूरी जानकारी थी। इसे पढ़कर बगदादी काफी प्रभावित हुआ। उसने 2011 में जुलानी को 6 लड़ाकों के साथ सीरिया भेज दिया। सीरिया पहुंचते ही जुलानी ने आत्मघाती हमलों की झड़ी लगा दी। जुलानी का खौफ पूरे सीरिया में छा गया। 6 लोगों के साथ सीरिया में कदम रखने वाले जुलानी ने एक साल के भीतर 5000 लड़ाके जुटाए। इसके बाद उसने 2012 में अलकायदा की सीरिया शाखा जबात अल-नुस्र का गठन किया। जबात ने सीरिया में कई सारी आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया। बगदादी का साथ छोड़ा, खुद का संगठन खड़ा किया
बगदादी ने 2014 में ISI को सीरिया तक फैलाने के लिए ISIS यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया की स्थापना की। उसने जुलानी को ISIS से जुड़ने का आदेश दिया, लेकिन इससे जुलानी ने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद बगदादी और जुलानी के रास्ते अलग हो गए। हालांकि, इस वक्त तक उसने अलकायदा और लादेन के बाद अलकायदा के दूसरे सबसे बड़े नेता अलजवाहिरी से अपने संबंधों को अच्छा रखा। उसका मकसद अलकायदा के रास्ते पर चलकर सीरिया में असद सरकार को गिराना और वहां शरिया लागू करना था। जुलानी इजराइल और अमेरिका को इस्लाम का दुश्मन मानता था। जुलानी के लिए काम करने के लिए इराक और अफगानिस्तान से लोग आने लगे। शरिया के नाम पर लोगों के सिर कलम किए जाने लगे। 2016 में सीरिया में असद रूस और ईरान के समर्थन से ताकतवर हो गए। उन्होंने अलेप्पो पर कब्जे के बाद हमा और होम्स जीत लिया। असद इदलिब पर भी कब्जा चाहते थे लेकिन रूस ने उन्हें रोक दिया। जुलानी इदलिब का बादशाह बन गया। यहां पर 40 लाख लोग रहते हैं। उसने तुर्की समर्थित फ्री सीरियन आर्मी से हाथ मिला लिया। अब उसे महसूस होने लगा था कि अलकायदा से जुड़े रहना उसके लिए परेशानी बन सकता है। उसने अपने संगठन का नाम बदलकर फतह अल-शाम कर लिया। 2016 में जुलानी ने जबात अलकायदा से अलग होने का ऐलान कर सबको चौंका दिया। इस समय तक दुनिया जुलानी के सिर्फ नाम से वाकिफ थी, लेकिन किसी ने उसका चेहरा नहीं देखा था। वह टीवी पर कभी इंटरव्यू नहीं देता था, और सार्वजनिक जगहों पर जाने के दौरान अपना चेहरा ढंक कर रखता था। लेकिन कुछ ही महीने बाद 2017 में जुलानी ने एक वीडियो जारी किया और दुनिया के सामने आया। उसने हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के गठन का ऐलान किया। उसने कहा कि उसके संगठन का किसी बाहरी देश या पार्टी से कोई संबंध नहीं है। जुलानी ने कहा कि उसका एकमात्र मकसद सीरिया को असद सरकार से आजाद कराना है। क्योंकि उसी की वजह से सीरिया में रूस से लेकर अमेरिका और ईरान तक घुस चुके हैं। वह अपने देश को अमेरिका और रूस जैसे वर्ल्ड पावर्स से बचाएगा। हालांकि, उसने अमेरिका और इजराइल के खिलाफ काम करना बंद किया, जो सीरिया में ईरान के खिलाफ लड़ रहे थे। इसका फायदा जुलानी को हुआ अमेरिका और इजराइल ने भी उसे टारगेट नहीं बनाया। हालांकि 2018 में अमेरिका ने HTS को आतंकी संगठन घोषित कर दिया और अल-जुलानी के सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम भी रखा। जुलानी असद सरकार और ईरान का सबसे बड़ा विरोधी बन कर उभरा। साल 2021 में जुलानी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह अमेरिका और उसके साथी देशों के खिलाफ जंग नहीं छेड़ना चाहता। जुलानी ने सीरिया में ISIS के कई नेताओं का सफाया किया। उसे सबसे बड़ी सफलता 2023 में मिली, जब उसने सीरिया में ISIS के सबसे बड़े लीडर अबू हुसैन अल-हुसैनी की हत्या कराई। पहली बार दुनिया ने जाना जुलानी का असली नाम
जुलानी का असली नाम अहमद अल शारा है। यह खुलासा इसी सप्ताह हुआ है। दरअसल, 5 दिसंबर को हमा शहर पर कब्जे के बाद HTS ने बयान जारी किया था इसमें उसका असली नाम ‘अहमद अल शारा’ दर्ज था। CNN के मुताबिक अलकायदा से संबंध तोड़ने के 8 साल बाद जुलानी के रहन-सहन और पहनावे में भी बदलाव आया है। पहले जहां वह इस्लामिक लिबास में रहता था, अब वह ब्लेजर और जींस पहनने लगा है। हालांकि उसने अब तक जिहादी मानसिकता होने का खंडन नहीं किया है। 5 दिसंबर को हमा शहर पर कब्जे के बाद जुलानी ने CNN को इंटरव्यू दिया। इसमें वह हरे रंग की सैन्य वर्दी पहने हुए था। उसकी दाढ़ी संवरी हुई थी और वह बेहद शांति से अपनी बात रख रहा था। इंटरव्यू के दौरान उसने खुद को उदार दिखाने की कोशिश की। उसने कहा कि उसका मकसद सीरिया से असद सरकार को उखाड़ फेंकना है। सीरिया में तानाशाही खत्म होगी और जनता की सरकार चुनी जाएगी। इस इंटरव्यू के 3 दिन बाद जुलानी ने असद सरकार को उखाड़ फेंका। इसमें HTS को ज्यादा मुश्किलें भी नहीं आई। सीरिया में असद सरकार को गिराने वाले HTS के सुप्रीम लीडर अबू मोहम्मद अल-जुलानी ने रविवार को दमिश्क की सबसे पवित्र उमय्यद मस्जिद में भाषण दिया। यह 1300 साल पुरानी मस्जिद दुनिया की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से है। CNN के मुताबिक जुलानी ने अपने भाषण में कहा कि दमिश्क में विद्रोहियों की जीत से पांच दशकों से कैद लोगों को आजादी मिली है। मिडिल ईस्ट में एक नया इतिहास लिखा गया है। अब सीरिया की जनता ही असली मालिक है। जुलानी ने कहा कि सीरिया में किसी से बदला नहीं लिया जाएगा। सीरिया, सभी सीरियाई लोगों का है। जुलानी ने अपने भाषण में असद को अलावी (शिया) और खुद को सुन्नी जताने की कोशिश की। जुलानी ने ईरान से कहा कि सीरिया में अब उनका हस्तक्षेप खत्म हो गया है। अब सीरिया की सरकार ईरान के इशारे पर नहीं चलेगी। ईरान सीरिया की जमीन से लेबनान तक नहीं पहुंच सकता। हमारे देश में अब ईरान के हथियार नहीं दिखेंगे। जुलानी ने कैसे किया तख्तापलट
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2016 में जब सीरिया का गृह युद्ध थमा तब से जुलानी अपनी लड़ाकों को मजबूत करने मे ंजुट गया। चीन के उईगर मुसलमानों से लेकर अरब और सेंट्रल एशिया से लोगों की मदद से उसने अपनी फौज तैयार की। उसने सही समय का इंतजार किया। जो इजराइल-हमास जंग और रूस-यूक्रेन जंग की वजह से आया। 2022 में यूक्रेन में जंग शुरू हो गई और रूस वहां व्यस्त हो गया। इसके चलते रूस ने अपने सैनिकों को सीरिया से निकाल लिया। फिर 2023 में इजराइल और हमास के बीच जंग शुरू हुई। नतीजा ये हुआ कि ईरान और हिजबुल्लाह जो सीरिया में असद की मदद कर रहे थे वे अब उनपर ध्यान नहीं दे पाए। हसन नसरल्लाह की मौत के बाद हिजबुल्लाह कमजोर हो गया। इसी का फायदा उठाकर जुलानी ने सीरियाई सेना पर हल्ला बोल दिया और 11 दिन में राष्ट्रपति का तख्तापलट कर दिया।
मिस्र में राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली इस नहर पर पहले ब्रिटेन का कब्जा था। इस फैसले से नासिर पूरी दुनिया खासकर अरब देशों में लोकप्रिय हो गए। सीरिया जो हाल ही में ब्रिटिश सरकार के कंट्रोल से आजाद हुआ था, वहां नासिर को हीरो की तरह देखा जाने लगा। नासिर का सपना अरब वर्ल्ड बनाने का था, जहां सबकी राष्ट्रीयता ‘अरबी’ हो। इसे पूरा करने के लिए उन्होंने मिस्र और सीरिया को मिलाकर एक देश बनाने की पहल की। 21 फरवरी 1958 को मिस्र और सीरिया मिलकर एक देश यूनाइटेड अरब रिपब्लिक (UAR) बन गए। लेकिन कुछ समय बाद सीरिया की बाथ पार्टी इस फैसले के खिलाफ हो गई क्योंकि इससे जुड़े नेताओं को अहम पदों पर से हटा दिया गया था। 8 मार्च 1961 को बाथ पार्टी ने सीरिया में तख्तापलट कर दिया जिससे UAR 3 साल ही चल सका। सीरिया में एक शख्स ने इस तख्तापलट का खूब विरोध किया, उसका नाम अहमद हुसैन था। हुसैन नासेर के फैन थे और एक अरब दुनिया का सपना उनके दिल के काफी करीब था। CBS न्यूज के मुताबिक तख्तापलट का विरोध करने की वजह से हुसैन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ समय बाद ही वे जेल से भागकर जॉर्डन चले गए। वहां भी उन्हें कैद कर लिया और सऊदी या फिर इराक चले जाने का फरमान सुनाया। हुसैन ने इराक जाना चुना। वहां उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। इराक में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सीरिया लौट गए। यहां हुसैन ने चुनाव भी लड़ा लेकिन वे जीत नहीं सके। इसके बाद वे सऊदी अरब चले गए। वे पेट्रोलियम इंजीनियर थे। सऊदी में हुसैन ने 10 साल तक काम किया। इसी दौरान 1982 में जुलानी का जन्म हुआ। मेडिकल की पढ़ाई छोड़, आतंक से जुड़ा जुलानी
जुलानी सिर्फ 7 साल के थे जब 1989 में उनके पिता परिवार समेत सीरिया लौट आए। जुलानी की पढ़ाई दमिश्क में ही हुई। 2000 की शुरुआत में उसने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। एक लिबरल इस्लाम वाले माहौल में पला-बढ़ा जुलानी जब कॉलेज पहुंचा तो उसका सामना कट्टर इस्लाम वाली विचारधारा रखने वाले लोगों से हुआ। ये वो दौर था जब आतंकी संगठन अलकायदा ओसामा बिन लादेन की लीडरशिप में मीडिल ईस्ट में अपने पैर पसार रहा था। एक साल बाद ही 2001 में अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ था। इसी समय जुलानी वो फिलिस्तीनियों के संघर्ष से वाकिफ हुआ। 2003 में जब उसे लगा कि अमेरिका इराक पर हमला करने वाला है तो वह विचलित हो गया और मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर जंग लड़ने चला गया। इराक पहुंचकर जुलानी, अलकायदा नेताओं के संपर्क में आया। जून 2006 में उसे अमेरिकी सेना ने पकड़ लिया और जेल भेज दिया। जेल में रहने के दौरान जुलानी बगदादी से जुड़े लोगों के संपर्क में आया। इन्हीं में से एक शख्स 2010 में जब रिहा हुआ तो उसने बगदादी को बताया कि जेल में उसकी मुलाकात एक 28 साल के लड़के से हुई है जो सीरिया के चप्पे-चप्पे के बारे में जानता है। ये लड़का जुलानी था। बगदादी को बताया गया कि ये संगठन के काम आ सकता है। ठीक 4 महीने बाद लगभग 5 साल जेल में बिताने के बाद जुलानी 2011 में बाहर आया। जेल के बाहर जुलानी का इंतजार अलकायदा का वही नेता कर रहा था, जिसने बगदादी से उसकी तारीफ की थी।अलकायदा के नेता ने जुलानी को कहा कि वह बगदादी को चिट्ठी लिखे। इसके बाद जुलानी ने बगदादी को 50 पन्नों की एक चिट्ठी लिखी। जिसमें सीरिया के सैकड़ों सालों के इतिहास और इलाकों के बारे में पूरी जानकारी थी। इसे पढ़कर बगदादी काफी प्रभावित हुआ। उसने 2011 में जुलानी को 6 लड़ाकों के साथ सीरिया भेज दिया। सीरिया पहुंचते ही जुलानी ने आत्मघाती हमलों की झड़ी लगा दी। जुलानी का खौफ पूरे सीरिया में छा गया। 6 लोगों के साथ सीरिया में कदम रखने वाले जुलानी ने एक साल के भीतर 5000 लड़ाके जुटाए। इसके बाद उसने 2012 में अलकायदा की सीरिया शाखा जबात अल-नुस्र का गठन किया। जबात ने सीरिया में कई सारी आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया। बगदादी का साथ छोड़ा, खुद का संगठन खड़ा किया
बगदादी ने 2014 में ISI को सीरिया तक फैलाने के लिए ISIS यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया की स्थापना की। उसने जुलानी को ISIS से जुड़ने का आदेश दिया, लेकिन इससे जुलानी ने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद बगदादी और जुलानी के रास्ते अलग हो गए। हालांकि, इस वक्त तक उसने अलकायदा और लादेन के बाद अलकायदा के दूसरे सबसे बड़े नेता अलजवाहिरी से अपने संबंधों को अच्छा रखा। उसका मकसद अलकायदा के रास्ते पर चलकर सीरिया में असद सरकार को गिराना और वहां शरिया लागू करना था। जुलानी इजराइल और अमेरिका को इस्लाम का दुश्मन मानता था। जुलानी के लिए काम करने के लिए इराक और अफगानिस्तान से लोग आने लगे। शरिया के नाम पर लोगों के सिर कलम किए जाने लगे। 2016 में सीरिया में असद रूस और ईरान के समर्थन से ताकतवर हो गए। उन्होंने अलेप्पो पर कब्जे के बाद हमा और होम्स जीत लिया। असद इदलिब पर भी कब्जा चाहते थे लेकिन रूस ने उन्हें रोक दिया। जुलानी इदलिब का बादशाह बन गया। यहां पर 40 लाख लोग रहते हैं। उसने तुर्की समर्थित फ्री सीरियन आर्मी से हाथ मिला लिया। अब उसे महसूस होने लगा था कि अलकायदा से जुड़े रहना उसके लिए परेशानी बन सकता है। उसने अपने संगठन का नाम बदलकर फतह अल-शाम कर लिया। 2016 में जुलानी ने जबात अलकायदा से अलग होने का ऐलान कर सबको चौंका दिया। इस समय तक दुनिया जुलानी के सिर्फ नाम से वाकिफ थी, लेकिन किसी ने उसका चेहरा नहीं देखा था। वह टीवी पर कभी इंटरव्यू नहीं देता था, और सार्वजनिक जगहों पर जाने के दौरान अपना चेहरा ढंक कर रखता था। लेकिन कुछ ही महीने बाद 2017 में जुलानी ने एक वीडियो जारी किया और दुनिया के सामने आया। उसने हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के गठन का ऐलान किया। उसने कहा कि उसके संगठन का किसी बाहरी देश या पार्टी से कोई संबंध नहीं है। जुलानी ने कहा कि उसका एकमात्र मकसद सीरिया को असद सरकार से आजाद कराना है। क्योंकि उसी की वजह से सीरिया में रूस से लेकर अमेरिका और ईरान तक घुस चुके हैं। वह अपने देश को अमेरिका और रूस जैसे वर्ल्ड पावर्स से बचाएगा। हालांकि, उसने अमेरिका और इजराइल के खिलाफ काम करना बंद किया, जो सीरिया में ईरान के खिलाफ लड़ रहे थे। इसका फायदा जुलानी को हुआ अमेरिका और इजराइल ने भी उसे टारगेट नहीं बनाया। हालांकि 2018 में अमेरिका ने HTS को आतंकी संगठन घोषित कर दिया और अल-जुलानी के सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम भी रखा। जुलानी असद सरकार और ईरान का सबसे बड़ा विरोधी बन कर उभरा। साल 2021 में जुलानी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह अमेरिका और उसके साथी देशों के खिलाफ जंग नहीं छेड़ना चाहता। जुलानी ने सीरिया में ISIS के कई नेताओं का सफाया किया। उसे सबसे बड़ी सफलता 2023 में मिली, जब उसने सीरिया में ISIS के सबसे बड़े लीडर अबू हुसैन अल-हुसैनी की हत्या कराई। पहली बार दुनिया ने जाना जुलानी का असली नाम
जुलानी का असली नाम अहमद अल शारा है। यह खुलासा इसी सप्ताह हुआ है। दरअसल, 5 दिसंबर को हमा शहर पर कब्जे के बाद HTS ने बयान जारी किया था इसमें उसका असली नाम ‘अहमद अल शारा’ दर्ज था। CNN के मुताबिक अलकायदा से संबंध तोड़ने के 8 साल बाद जुलानी के रहन-सहन और पहनावे में भी बदलाव आया है। पहले जहां वह इस्लामिक लिबास में रहता था, अब वह ब्लेजर और जींस पहनने लगा है। हालांकि उसने अब तक जिहादी मानसिकता होने का खंडन नहीं किया है। 5 दिसंबर को हमा शहर पर कब्जे के बाद जुलानी ने CNN को इंटरव्यू दिया। इसमें वह हरे रंग की सैन्य वर्दी पहने हुए था। उसकी दाढ़ी संवरी हुई थी और वह बेहद शांति से अपनी बात रख रहा था। इंटरव्यू के दौरान उसने खुद को उदार दिखाने की कोशिश की। उसने कहा कि उसका मकसद सीरिया से असद सरकार को उखाड़ फेंकना है। सीरिया में तानाशाही खत्म होगी और जनता की सरकार चुनी जाएगी। इस इंटरव्यू के 3 दिन बाद जुलानी ने असद सरकार को उखाड़ फेंका। इसमें HTS को ज्यादा मुश्किलें भी नहीं आई। सीरिया में असद सरकार को गिराने वाले HTS के सुप्रीम लीडर अबू मोहम्मद अल-जुलानी ने रविवार को दमिश्क की सबसे पवित्र उमय्यद मस्जिद में भाषण दिया। यह 1300 साल पुरानी मस्जिद दुनिया की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से है। CNN के मुताबिक जुलानी ने अपने भाषण में कहा कि दमिश्क में विद्रोहियों की जीत से पांच दशकों से कैद लोगों को आजादी मिली है। मिडिल ईस्ट में एक नया इतिहास लिखा गया है। अब सीरिया की जनता ही असली मालिक है। जुलानी ने कहा कि सीरिया में किसी से बदला नहीं लिया जाएगा। सीरिया, सभी सीरियाई लोगों का है। जुलानी ने अपने भाषण में असद को अलावी (शिया) और खुद को सुन्नी जताने की कोशिश की। जुलानी ने ईरान से कहा कि सीरिया में अब उनका हस्तक्षेप खत्म हो गया है। अब सीरिया की सरकार ईरान के इशारे पर नहीं चलेगी। ईरान सीरिया की जमीन से लेबनान तक नहीं पहुंच सकता। हमारे देश में अब ईरान के हथियार नहीं दिखेंगे। जुलानी ने कैसे किया तख्तापलट
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2016 में जब सीरिया का गृह युद्ध थमा तब से जुलानी अपनी लड़ाकों को मजबूत करने मे ंजुट गया। चीन के उईगर मुसलमानों से लेकर अरब और सेंट्रल एशिया से लोगों की मदद से उसने अपनी फौज तैयार की। उसने सही समय का इंतजार किया। जो इजराइल-हमास जंग और रूस-यूक्रेन जंग की वजह से आया। 2022 में यूक्रेन में जंग शुरू हो गई और रूस वहां व्यस्त हो गया। इसके चलते रूस ने अपने सैनिकों को सीरिया से निकाल लिया। फिर 2023 में इजराइल और हमास के बीच जंग शुरू हुई। नतीजा ये हुआ कि ईरान और हिजबुल्लाह जो सीरिया में असद की मदद कर रहे थे वे अब उनपर ध्यान नहीं दे पाए। हसन नसरल्लाह की मौत के बाद हिजबुल्लाह कमजोर हो गया। इसी का फायदा उठाकर जुलानी ने सीरियाई सेना पर हल्ला बोल दिया और 11 दिन में राष्ट्रपति का तख्तापलट कर दिया।