ज़िंदगी के कुछ बुनियादी मंत्र होते हैं, जिन्हें या तो बड़े सिखा सकते हैं या अनुभव। अनुभव कड़वाहट भी देते हैं, इसलिए बेहतर है कि बड़े सिखाएं। जीवन में बहुत कुछ ऐसा होता है जो बड़ों से, वक़्त या अनुभवों से सीखा जाता है।
इसे तहज़ीब या जीने का कौशल कहते हैं जिसे छुटपन से सिखाया जाना ज़रूरी होता है। इसमें बात करने के सलीक़े से लेकर अपनी बात रखने जैसी कई ज़रूरी गुण शामिल होते हैं।
1. धैर्य से काम लेना
ये गुण आजकल के बच्चों तो क्या बड़ों में भी कम ही देखने को मिलता है। बच्चे अपनी बात कहना तो जानते हैं पर सुनना उन्हें ख़ास पसंद नहीं आता। इसलिए जब कोई ऐसी बात कहता है जो उन्हें बेमतलब या फिज़ूल लगती है तो वे वहां से खिसक लेते हैं या फिर उस बात को अनसुनी कर देते हैं।
बच्चों को सिखाएं कि जब वे सामने वाले की बात सुनेंगे तब ही वह आपकी बात सुनेगा। पूरी बात सुनेंगे, तो सही-ग़लत का निर्णय ले सकेंगे। अपना पक्ष रखने का धैर्य भी रखें। सब्र से सुनें और सब्र से बोलें।
2. हार स्वीकार करना
ये दिक़्क़त तक़रीबन हर बच्चे के साथ आती है कि वे अपनी जीत का जश्न तो भरपूर मनाते हैं लेकिन हार जाने पर मायूस हो जाते हैं या फिर हार स्वीकार ही नहीं कर पाते। ऐसे में वे पीछे हट जाते हैं या फिर जो साथी जीता है उससे दूरी बना लेते हैं।
बच्चों को सिखाएं कि हार-जीत जीवन का हिस्सा हैं। हारने के बाद ही जीत का महत्व समझ में आता है। इसलिए हारने से घबराएं नहीं बल्कि दोबारा नई तैयारी के साथ मैदान में उतरें।
3. कैसे और कब माफ़ी मांगें
सॉरी शब्द का चलन जिस तेज़ी से बढ़ा है उसी तेज़ी से इस शब्द ने अपनी गरिमा खो दी है। पर इस शब्द का असल अर्थ समझना बेहद ज़रूरी है। आजकल ग़लती दोहराना आम है। जब ग़लती पकड़ी जाती है तो सॉरी कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं।
बच्चों को सॉरी का महत्व समझाना और उसकी गरिमा बनाए रखना ज़रूरी है। इसके लिए उन्हें बताएं कि सॉरी कहने के साथ ही ये भी कहें कि अब ये ग़लती नहीं दोहराई जाएगी। इससे सामने वाला व्यक्ति आपके शब्दों की क़द्र करेगा।
4. भावनाओं को संभालना
बच्चे जब बड़े होने लगते हैं तो वो अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना चाहते हैं, लेकिन किसके सामने क्या कहना है या किससे अपनी बातें साझा करनी हैं ये जानना ज़रूरी है। माता-पिता बच्चों को बताएं कि उन्हें अपनी कौन-सी बातें साझा करनी हैं और कौन-सी नहीं।
पारिवारिक मसले बाहरी लोगों के साथ नहीं बल्कि घर के सदस्यों के साथ ही साझा करें। इसके अलावा, अपनी निजी समस्याएं भी भरोसेमंद व्यक्ति को ही बताएं। ये परखने की समझ घरवालों से ही मिलती है।
5. ख़ाली समय का उपयोग
बच्चे अक्सर ये कहते पाए जाते हैं कि वे अकेले बोर होते हैं। ऐसे में बच्चों को सिखाएं कि वे ख़ुद की कंपनी यानी कि अकेले अपने समय को जिएं। इसमें वे ड्रॉइंग कर सकते हैं, डांस कर सकते हैं, पेंटिंग कर सकते हैं या कुछ नया सीख सकते हैं।
ऐसे में वे अकेले रहने पर घबराएंगे भी नहीं और समय का बेहतर तरीक़े से उपयोग कर सकेंगे। इसके अलावा, अकेले में वे किताब पढ़ने के साथ ही सुन भी सकते हैं। इसमें ऑडियो बुक मददगार होंगी।