बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शनिवार को एक कट्टरपंथी इस्लामी ग्रुप हिफाजत-ए-इस्लाम से जुड़े 20 हजार लोगों ने रैली निकाली। इसमें सरकार से महिला सुधार आयोग को खत्म करने की मांग की गई। रैली में आए लोगों ने महिला आयोग को इस्लामी आस्था के खिलाफ बताया। प्रदर्शनकारियों के हाथों में बैनर और तख्तियां थीं, जिस पर लिखा था ‘हमारी महिलाओं पर पश्चिमी कानूनों को न थोपो, बांग्लादेश जागो।’ हिफाजत-ए-इस्लाम से जुड़े एक नेता मामुनुल हक ने महिला सुधार आयोग के सदस्यों के लिए सजा की भी मांग की। उन्होंने कहा कि इस आयोग ने देश के बहुसंख्यक लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया है। महिला मदरसा के शिक्षक मोहम्मद शिहाब उद्दीन ने रैली में कहा कि पुरुष और महिला कभी समान नहीं हो सकते। कुरान में महिलाओं और पुरुषों के लिए जीवन जीने के खास नियम बताए गए हैं। सभी को इसे मानना होगा। महिलाओं के अधिकारों का विरोध कर रहे कट्टरपंथी बांग्लादेश में नाबालिग लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ अपराध में इजाफा हुआ है। इसके रोकने के लिए यूनुस सरकार ने महिला सुधार आयोग का गठन किया है। इस आयोग ने महिलाओं के अधिकारों, लैंगिक समानता, और धर्मनिरपेक्ष नीतियों को बढ़ावा देने से जुड़े कुछ प्रस्ताव पेश किए हैं। इसमें सभी धर्मों की महिलाओं के लिए एक समान पारिवारिक कानून लागू करने की सिफारिश की गई है। बांग्लादेश में फिलहाल पारिवारिक कानून धर्म के आधार पर लागू होते हैं। मुस्लिम महिलाओं के लिए शरिया-आधारित कानून हैं जबकि हिंदू महिलाओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ लागू होते हैं। बाकी धर्मों के लिए भी उनके धर्मों के हिसाब से कानून लागू होते हैं। हिफाजत-ए-इस्लाम इसका विरोध कर रही है। इस ग्रुप का कहना है कि यह प्रस्ताव इस्लामी मूल्यों को कमजोर करता है और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता को थोपती है। हिफाजत-ए-इस्लाम ने यूनुस सरकार को चेतावनी दी है कि महिला सुधार लागू किए गए तो उनका हाल शेख हसीना जैसा होगा। मांगे न मानने पर फिर से रैली निकालेगी हिफाजत इस ग्रुप ने धमकी दी है कि अगर सरकार उनकी मांगे पूरी नहीं करती है तो वे 23 मई को पूरे देश में रैलियां निकालेंगे। हिफाजत-ए-इस्लाम कौमी मदरसों के उलेमा और छात्रों से बना ग्रुप है। इसकी स्थापना फरवरी 2010 में चटगांव में हुई थी। इसका गठन तब हुआ था जब शेख हसीना सरकार ने महिला विकास नीति और संविधान में संशोधन जैसे कदम उठाए, जिन्हें कुछ इस्लामी समूहों ने इस्लाम के खिलाफ माना। इसका गठन इस्लाम की रक्षा और इस्लामी मूल्यों को बढ़ावा देने के मकसद से किया गया था। यह ग्रुप बांग्लादेश में शरिया कानून लागू करने की वकालत करता है। हिफाजत-ए-इस्लाम, जमात-ए-इस्लामी की तरह राजनीतिक दल नहीं है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, हिफाजत को सऊदी अरब से फंडिंग मिलती है, जो इसके प्रभाव को बढ़ाने में मदद करती है। 2021 में मोदी के दौरे का विरोध में की थी हिंसा पीएम मोदी मार्च 2021 में बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने पर ढाका गए थे। तब इस ग्रुप ने उनकी यात्रा के विरोध में हिंसक प्रदर्शन किया था। इस दौरान सरकारी संपत्तियों और मंदिरों को निशाना बनाया गया था जिसमें 12 लोगों की जान चली गई थी।