बाल आयोग बोला- राज्य मदरसों को फंड देना बंद करें:ये राइट टू एजुकेशन नियम नहीं मानते; धार्मिक शिक्षा, बेसिक एजुकेशन की कीमत पर नहीं दे सकते

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सभी राज्यों को लेटर लिखकर कहा कि मदरसों को दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए। ये राइट टू एजुकेशन (RTE) नियमों का पालन नहीं करते हैं। आयोग ने ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे’ नाम से एक रिपोर्ट तैयार करने के बाद ये सुझाव दिया। NCPCR ने कहा- मदरसों में पूरा फोकस धार्मिक शिक्षा पर रहता है। जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों से पिछड़ जाते हैं। बाल आयोग की 3 सिफारिश बाल आयोग कि रिपोर्ट पर रिएक्शन संविधान से बनी हर चीज को यह उलटना चाहते हैं। यह वह लोग है जो नफरत पर राजनीति करना चाहते हैं, जो भेदभाव पर राजनीति करना चाहते हैं। यह वह लोग हैं जो धर्म जातियों को लड़ा कर राजनीति करना चाहते हैं। अखिलेश यादव, सपा प्रमुख UP मदरसा एक्ट पर विवाद रहा, SC रोक लगा चुका
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल 2024 को ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही केंद्र और यूपी सरकार से जवाब भी मांगा। कोर्ट का कहना था कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा। छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं है। दरअसल 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मदरसा बोर्ड की याचिका पर सुनवाई की। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट प्रथमदृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है। यहां तक कि यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में मदरसा एक्ट का बचाव किया था। इसके जवाब में यूपी सरकार की तरफ से ASG केएम नटराज ने कहा, ”हमने हाईकोर्ट में जरूर इस एक्ट का बचाव किया था, मगर कोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक करार दे दिया था। इसके बाद हमने भी कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया है।” एक्ट के खिलाफ 2012 में पहली बार दाखिल हुई थी याचिका
मदरसा एक्ट के खिलाफ सबसे पहले 2012 में दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने याचिका दाखिल की थी। फिर 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज, 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। सभी मामलों को नेचर एक था। इसलिए हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया। क्यों हुआ था सर्वे
यूपी सरकार को सामाजिक संगठनों और सुरक्षा एजेंसियों से इनपुट मिले थे कि अवैध तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है। इस आधार पर उत्तर प्रदेश परिषद और अल्पसंख्यक मंत्री ने सर्वे कराने का फैसला लिया था। इसके बाद हर जिले में 5 सदस्यीय टीम बनाई गई। इसमें जिला अल्पसंख्यक अधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक शामिल थे। क्या है UP मदरसा बोर्ड कानून
यूपी मदरसा बोर्ड एजुकेशन एक्ट 2004 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित कानून था। जिसे राज्य में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत मदरसों को न्यूनतम मानक पूरा करने पर बोर्ड से मान्यता मिल जाती थी। मदरसे से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें… यूपी सरकार ने SC में कहा- मदरसों में सिर्फ 12वीं पास नौकरी लायक पढ़ाई होती है उत्तर प्रदेश सरकार ने 19 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मदरसे से पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ 10वीं-12वीं की योग्यता वाली नौकरियों के लायक हैं। ये प्रदेश सरकार ने मदरसा शिक्षा व्यवस्था पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था। स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सिलेबस के अनुसार मदरसों में मेनस्ट्रीम सब्जेक्टस सिर्फ 8वीं तक पढ़ाएं जाते हैं। 9वीं और 10वीं में मेनस्ट्रीम सब्जेक्ट्स पढ़ना कंपलसरी नहीं है। पढ़ें पूरी खबर…