लालच की वजह से बहुत अच्छा अवसर हाथ से निकल सकता है। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक बूढ़ा तीन गठरियां लेकर रास्ते में खड़ा था। बूढ़े ने एक लड़के से कहा कि बेटा क्या तुम मेरी मदद करोगे, मेरी एक गठरी बहुत भारी है, इसे मेरे गांव तक पहुंचा दो। मैं तुम्हें दो स्वर्ण मुद्राएं दूंगा।
लड़के ने कहा कि मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं। लड़के ने एक गठरी उठा ली, वह बहुत भारी थी। लड़के ने वृद्ध से पूछा कि बाबा इसमें क्या है?
बूढ़े ने धीरे से जवाब दिया कि इसमें सिक्के हैं। लड़का सोचने लगा कि इतने सारे सिक्के, लेकिन मुझे इनसे क्या करना है? मैं बेईमानी नहीं करूंगा। दोनों आगे बढ़ते रहे।
कुछ देर बाद वे एक नदी के किनारे पहुंच गए। उन्हें नदी पार करना थी। लड़का नदी में उतर गया, लेकिन बूढ़ा किनारे पर ही खड़ा था। बूढ़े ने कहा कि मैं नदी में दो गठरियां उठाकर चल नहीं सकता, क्या तुम मेरी एक और गठरी उठा सकते हो? लड़के ने हां कर दी।
बूढ़े ने कहा कि तुम ये गठरियां लेकर भाग तो नहीं जाओगे, क्योंकि दूसरी गठरी में चांदी के सिक्के हैं। लड़के ने कहा कि क्या मैं आपको चोर दिखता हूं। मैं एक ईमानदार इंसान हूं, मुझे धन का लालच नहीं है। अब लड़के के दो गठरियां हो गईं।
दोनों आगे बढ़ने लगे। कुछ देर बाद एक पहाड़ी आई। बूढ़े ने कहा कि बेटा मेरी ये तीसरी गठरी भी तुम ही ले लो, लेकिन भागना मत, क्योंकि इसमें सोने के सिक्के हैं। लड़के ने कहा कि आप चिंता न करें, मैं लालची नहीं हूं।
बूढ़े ने तीसरी गठरी भी उस लड़के को दे दी। अब वह लड़का तेजी से चलने लगा। बूढ़ा काफी पीछे रह गया। लड़के ने सोचा कि अगर मैं ये तीनों गठरियां लेकर भाग जाऊंगा तो मेरी गरीबी खत्म हो जाएगी। बूढ़ा तो मुझे पकड़ भी नहीं पाएगा। ये सोचकर वह तीनों गठरियां लेकर भाग गया।
लड़के ने घर पहुंचकर गठरियां खोली तो उसमें मिट्टी के सिक्के थे। ये देखकर वह हैरान था। उसने सोचा कि उस बूढ़े ने मुझसे झूठ क्यों बोला? तभी उसे सिक्कों के साथ एक चिट्ठी भी थी।
चिट्ठी में लिखा था कि ये पूरा नाटक इस राज्य के खजाने की सुरक्षा के लिए ईमानदारी व्यक्ति की खोज के लिए रचा गया है। वह बूढ़ा कोई और नहीं बल्कि इस राज्य के राजा हैं। अगर तुम ईमानदार रहते तो तुम्हें मंत्रीपद मिलता और राजा से मान-सम्मान भी मिलता। व्यक्ति को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा। उसने छोटे से लालच में बड़ा अवसर खो दिया था।