सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में बेटियों को भी पिता या पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सेदार माना है। जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के फैसले में कहा गया है कि ये उत्तराधिकार कानून 2005 में संशोधन की व्याख्या है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ”बेटियां हमेशा बेटियां रहती हैं। बेटे तो बस विवाह तक ही बेटे रहते हैं। यानी 2005 में संशोधन किए जाने से पहले भी किसी पिता की मृत्यु हो गई हो तब भी बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटे या बेटों के बराबर ही हिस्सा मिलेगा”।
सोशल मीडिया पर ये खबर आते ही लोगों के मिले-जुले रिएक्शन आना शुरू हो गए। एक तरफ कुछ लोग इस फैसले की सराहना कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसे अपने तर्क देते हुए गलत करार दे रहे हैं।
सार्थक गुप्ता ने अपने ट्विट में कहा ”यह सुप्रीम कोर्ट का लैंडमार्क डिसीजन है। इसे न सिर्फ हिंदूओं पर बल्कि अन्य समुदाय की बेटियों पर भी लागू किया जाना चाहिए”।
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प्रकाश साहू ने अपने ट्विट में इस फैसले के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा है – ”यह फैसला देश के हर हिस्से में हिंसा का कारण बनेगा जिसके लिए सिर्फ सुप्रीम कोर्ट खुद ही जिम्मेदार होगा। सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला उन पैरेंट्स के हक में भी देना चाहिए जो अपने बेटे या बेटी द्वारा प्रताड़ित हैं। कृपया सिर्फ पैरेंट्स की प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी के फैसले देना बंद करें”।
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लॉ स्टूडेंट भाविक ने ट्विटर के जरिये अपने विचार कुछ इस तरह बयां किए – ”ये फैसला सिर्फ पारिवारिक संपत्ति पर लागू होता है। लेकिन एक पिता खुद अपनी संपत्ति बेटे के नाम कर दे, तब क्या होगा”।
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बेटियों को हक मिलने से नाराजगी जाहिर करने वाले इस फैसले के प्रति एक ट्विटर का गुस्सा इस ट्विट के माध्यम से सामने आया। वे लिखते हैं – ”कोर्ट और सरकार को सारे अधिकार महिलाओं को दे देना चाहिए। उन्हें सिर्फ ये कहना चाहिए कि पुरुषों की जरूरत ही नहीं है”।
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राम कृष्ण ने ट्विट किया – ”क्या इस फैसले का अर्थ यह है कि हमारा संविधान अन्य समुदाय की लड़कियों को उनका हम नहीं दिलाएगा”?