जीवन में जब अचानक संकट आता है, तब हमारा साथ कौन देता है? हम कैसे प्रतिक्रिया करते हैं? और मुश्किल समय में हमें किस पर भरोसा करना चाहिए? श्रीमद्भागवत की गजेंद्र मोक्ष कथा से इन तीनों बातों को समझ सकते हैं। पढ़िए भगवान विष्णु और गजेंद्र की कथा… पुराने समय में हाथियों का एक राजा था – गजेंद्र। वह अपने परिवार, मित्रों और सेवकों के साथ एक शांत सरोवर में स्नान करने गया। जल में उतरते ही गजेंद्र आनंद में डूब गया और लापरवाह हो गया। लापरवाही में वह सरोवर में कुछ आगे निकल गया। उसी सरोवर में एक शक्तिशाली मगरमच्छ भी रहता था। उसने गजेंद्र का पैर पकड़ लिया और उसे खींचने लगा। गजेंद्र ने पूरी ताकत से संघर्ष किया और अपने साथियों से गुहार लगाई– “कोई मुझे खींच रहा है, मुझे बाहर निकालो वरना मैं डूब जाऊँगा!” शुरू में सभी मित्रों ने उसकी मदद की, लेकिन जब देखा कि मगरमच्छ बहुत बलवान है तो एक-एक करके सभी साथी उसका साथ छोड़ गए। गजेंद्र ने पीछे मुड़कर देखा – सब किनारे पर खड़े थे, कोई पास नहीं था। तब उसने समझा— “जो मेरे साथ आए थे, वे साथ नहीं देंगे। जन्म के समय जो साथ आए हैं — आत्मा और परमात्मा — वही अंत तक साथ रहेंगे।” उसने भगवान विष्णु को पुकारा। भगवान अपने भक्त की आवाज सुनकर तुरंत रक्षा के लिए पहुंच गए। विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उस मगरमच्छ का वध किया और गजेंद्र को जीवनदान दिया। बाहर आकर गजेंद्र ने कहा: “सही समय पर मुझे ये ज्ञान हो गया कि सिर्फ परमात्मा ही सच्चे सहायक हैं।” कथा की 5 सीख