शिव पुराण में भगवान शिव के कई नाम बताए गए हैं। जिनके गहरे मतलब निकलते हैं और उन रूपों से कुछ सीखने को भी मिलता हैं। भगवान शिव त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें नटराज, भक्तवत्सल, सदाशिव, और अर्धनारेश्वर आदि नामों से भी जाना जाता है। भगवान का नटराजजहां प्रलयका रूप है वहीं येरूप जीवन में उल्लास, उमंग और कला प्रेम भी बताता है। शिवजी का भक्तवत्सल रूप कभी परेशान नहीं होने की सीख देता है। जिस रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है उसी के अनुसार पूजा का फल मिलता है। इन रूपों में भगवान शिव की पूजा करने से शुभ फल मिलते हैं।
नटराज
शिव को नटराज कहा जाता है। यह स्वरूप कला के प्रति उनके प्रेम को दिखाता है। क्रोध में तांडव से जहां प्रलय आ जाता है वहीं खुशी में किया गया नृत्य वातावरण को उल्लास और उमंग से भर देता है।
भक्तवत्सल
शिव दैव, दानव, भूत, पिशाच, गण यानी सभी को साथ लेकर चलते हैं भगवन शिव। माना जाता है कि उनका यह स्वभाव यदि इंसान खुद में समाहित करे तो वह जिंदगी में कभी परेशान नहीं होगा।
सदाशिव
शिव ने स्वयं का विवेक इतना प्रबल किया कि उनके सामने भोग-विलास की दुनिया कुछ भी नहीं। वह कैलाश पर योगियों की तरह भभूत धारी रूप में निवास करते हैं। शिव की इस बात से विवेक के बारे में सीख सकते हैं।
अर्धनारेश्वर
पूरी दुनिया जब जेंडर इक्विलिटी की बात कर रही है तब शिव का यह स्वरूप महिला-पुरुष के समान अधिकार और समान सत्ता की बात कहता है। शिव के इस स्वरूप से नारी के प्रति नर द्वारा सम्मान का भाव बढ़ता है।