‘भाई मेरे से नहीं हो रहा बिल्‍कुल’:Deloitte के एक्‍स एम्‍प्‍लॉई ने शेयर किए स्‍क्रीनशॉट, कहा- एना पर क्‍या बीता समझ सकता हूं

‘भाई अब मेरे से नहीं हो रहा बिल्‍कुल… चक्‍कर आ रहे हैं… मैं इस बार पक्‍का शिकायत करने वाला हूं…’ ये व्‍हॉट्सऐप मैसेज Deloitte के एक्‍स एम्‍प्‍लॉई जयेश जैन ने अपने X अकाउंट पर शेयर किए हैं। जयेश ने कहा, ‘EY यानी Ernst Young कंपनी में जो हुआ वो सिर्फ एक उदाहरण है। मैं आपसे Deloitte में मेरे काम करने के दौरान का अनुभव शेयर कर रहा हूं।’ दरअसल, कुछ दिन पहले पुणे स्थित EY कंपनी की एग्जिक्‍यूटिव एना सेबेस्टियन पेरायिल की मौत हो गई थी। डॉक्‍टर्स का कहना था कि एना न ठीक से सो रही थी, न समय से खाना खा रही थी, जिसकी वजह से उसकी जान चली गई। एना की मां ने आरोप लगाए थे कि एक्‍सट्रीम वर्क प्रेशर के चलते एना की जान गई। इस घटना के बाद से सोशल मीडिया पर बड़ी कंपनियों के टॉक्सिक वर्क कल्‍चर पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। इसी कड़ी में X पर एक यूजर जयेश ने Deloitte के अपने एक साथी के साथ हुई बातचीत के स्‍क्रीनशॉट शेयर किए। जयेश ने लिखा कि ये मैसेज सुबह 5 बजे के थे। इसमें दोनों टीममेट एक दूसरे से शिकायत कर रहे हैं कि बस अब और काम नहीं कर पाएंगे। जयेश ने कहा, ‘मैं अच्‍छे से समझ सकता हूं एना पर क्‍या बीती होगी। हमने भी कंपनी में हर दिन 20-20 घंटे काम किया है। कॉर्पोरेट लाइफ मुश्किल है। शुक्र है मैं समय रहते वहां से निकल गया। एक और यूजर जिगर शाह ने लिखा, ‘मेरी बहन भी बिग 4 में से एक कंपनी में काम करती है। एक बार वो अपने ऑफ के दिन डेंटिस्‍ट के पास गई। इसी दौरान उसके मैनेजर ने उसे फोन किया और कहा कि काम करना पड़ेगा। मना करने पर मैनेजर नाराज हो गया। हर्ष गोयनका ने कहा- शोक संदेश नहीं बदलाव की जरूरत
RPG ग्रुप के चेयरमैन और नामी बिजनेसमैन हर्ष गोयनका ने X पर लिखा, ‘एना की मौत पर संवेदना जताने की बजाय बदलाव लाने की जरूरत है। दरअसल EY के चेयरमैन राजीव मेमानी ने एना की मौत की वजह वर्क लोड के होने की बात मानने से इनकार किया था। हालांकि, उन्‍होंने खुद या कंपनी की तरफ से किसी के भी एना के फ्यूनरल (ईसाई अंतिम संस्‍कार) में न जाने पर दुख भी जताया है। उन्‍होंने कहा है, ‘कंपनी में लगभग 1 लाख एम्‍प्‍लॉई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सभी को मेहनत से काम करना पड़ता है। एना ने हमारे साथ सिर्फ 4 महीने काम किया। उसे भी उतना ही काम अलॉट किया गया जितना किसी और को। हम ये नहीं मानते कि काम के प्रेशर की वजह से एना की जान गई।’ लेबर मिनिस्‍ट्री करेगी एना की मौत की जांच
एना की मौत पर उठे बवाल के चलते 19 सितंबर को सेंट्रल लेबर मिनिस्‍ट्री ने मामले की जांच की घोषणा की है। लोकसभा मेंबर शोभा करंदलाजे ने इसकी जानकारी दी। उन्‍होंने ट्वीट कर एना की मौत पर दुख भी जताया। एना की मां ने लिखा था राजीव मेमन को लेटर एना ने 4 महीने पहले 19 मार्च 2024 को कंपनी में बतौर एग्जिक्‍यूटिव ज्‍वाइन किया था। 6 जुलाई को जब एना के माता-पिता उससे मिलने पुणे आए तो उसने सीने में दर्द की शिकायत की थी। डॉक्‍टर को दिखाने पर पता चला कि एना न ठीक से सो रही थी, न समय से खाना खा रही थी। उसे हर समय ऑफिस के काम की फिक्र थी। अस्‍पताल से जांच कराकर भी एना सीधे ऑफिस पहुंची। कोच्चि से पुणे आए माता-पिता के लिए भी समय नहीं था। रात को देर को लौटी और सुबह फिर जल्‍दी चली गई। हद से ज्‍यादा स्‍ट्रेस, एंग्‍जायटी और फिजिकल-मेंटल प्रेशर के चलते 20 जुलाई को एना की मौत हो गई। जिस कंपनी के लिए काम करते हुए एना की जान चली गई, उस कंपनी से कोई भी उसके लास्‍ट रिचुअल्‍स (ईसाई अंतिम संस्‍कार) में शामिल नहीं हुआ। एना की मां अनीता ऑगस्टिन का कहना है कि उनकी बेटी की मौत एक सबक है। एक्‍सट्रीम वर्क कंडीशंस में काम कर रही एना एकलौती नहीं है। कंपनियों में काम को लेकर संजीदगी पागलपन की हद तक बढ़ना एक खतरनाक संकेत है। ऐसे में उन्‍होंने EY के कंट्री चेयरमैन राजीव मेमानी को एक इमोशनल चिट्ठी लिखी। डियर राजीव,
मैं एक मां हूं जिसने अपनी प्‍यारी बेटी को खो दिया है। ये चिट्ठी लिखते हुए मेरा दिल भारी है और आत्‍मा चूर-चूर है। मगर मुझे लगता है कि ऐसा करना जरूरी है ताकि कोई और परिवार उस पीड़ा से न गुजरे जिससे मैं गुजरी हूं। मार्च 2024 की बात है। एना ने नवंबर 23 का CA एग्‍जाम क्लियर किया और पुणे में EY कंपनी ज्‍वाइन की। ये उसके लिए कोई सपना पूरा होने जैसा मौका था। इतनी बड़ी और नामी कंपनी में नौकरी पाकर वो खुशी से पागल थी। मगर 4 महीने बाद ही, 20 जुलाई को जब मुझे उसकी मौत की खबर मिली, तो मेरे लिए वक्‍त जैसे वहीं रुक गया। मेरी बच्‍ची महज 26 साल की थी। ये भला कोई मरने की उम्र होती है। एना बचपन से ही हर चीज में अव्‍वल थी। पढ़ाई हो या खेलकूद। EY में काम करते हुए उसने अपना सब-कुछ दे दिया। उसे जो काम सौंपा गया, उसे पूरा किया। हालांकि, नई जगह, काम का प्रेशर और कभी न खत्‍म होने वाले काम ने उसपर मेंटली, इमोशनली और फिजिकली असर डालना शुरू कर दिया। उसे एंग्‍जायटी और स्‍ट्रेस होने लगे। सोने के लिए वक्‍त ही नहीं मिल रहा था। वो तब भी कमर तोड़ मेहनत करती रही। उसे तो यही पता था कि मेहनत से कामयाबी मिलती है। 6 जुलाई की बात है। मैं और मेरे पति एना का कॉलेज कॉन्‍वोकेशन अटेंड करने पुणे पहुंचे थी। वो रात करीब 1 बजे अपने PG पहुंची। उसने बताया कि लगभग एक सप्‍ताह से उसे सीने में दर्द है। हम उसे पुणे के ही एक अस्‍पताल लेकर गए। उसका ECG तो ठीक था, पर डॉक्‍टर ने बताया कि वो ठीक से सो नहीं रही है और खाना भी समय पर नहीं खा रही। इसके बावजूद उसने हमसे कहा कि ऑफिस के लिए लेट नहीं हो सकती, और अस्‍पताल से सीधे ऑफिस चली गई। उस रात भी देर से ही लौटी। 7 जुलाई को उसका कॉन्‍वोकेशन था। उस दिन भी वो सुबह जल्‍दी उठकर दोपहर तक घर से काम करती रही। इसकी वजह से हम कॉन्‍वोकेशन भी देरी से पहुंचे। मेरी बेटी का सपना था अपनी पेरेंट्स को अपने कमाए पैसों से अपने कॉन्‍वोकेशन लेकर जाना। उसने हमारी फ्लाइट टिकट्स बुक कीं और हम कॉन्‍वोकेशन पहुंचे। ये बताते हुए मेरा दिल भर आ रहा है कि अपने बेटी के साथ बिताए वो आखिरी दो दिन भी वो काम के प्रेशर के चलते परेशान थी। जब एना ने अपनी टीम जॉइन की थी, उसे पता चला था कि इससे पहले कई लोग वर्क प्रेशर के चलते नौकरी छोड़ चुके हैं। मगर मैनेजर ने उससे कहा, ‘एना, तुम्‍हें डट कर काम करना है और टीम के बारे में सबकी सोच बदलनी है।’ मेरी बेटी को तब अंदाजा भी नहीं था कि इसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी। उसके मैनेजर अक्‍सर क्रिकेट मैच के समय मीटिंग रीशेड्यूल कर देते थे जिसके चलते उसे देर रात तक काम करना पड़ता था। एक ऑफिस पार्टी में एक सीनियर ने उससे मजाक में कहा था कि जिस मैनेजर के अंडर वो काम कर रही है, वहां काम करना आसान नहीं है। वो बात आखिरकार सच साबित हुई। एना हमें अक्‍सर बताती थी कि मैनेजर उसे काम पर काम दिया करते थे। वो मना करती तो उसपर प्रेशर बनाया जाता। वो लगभग हर रात देर तक काम करती। छुट्टी के दिनों में भी काम करती। एक बार तो उसके मैनेजर ने आ‍धी रात को फोन कर उसे एक काम थमा दिया जो सुबह तक पूरा होना था। न उसे आराम करने का समय मिल रहा था न कुछ सोचने समझने का। जब उसने अपनी बात मैनेजर के सामने रखी तो उसने जवाब दिया, ‘तुम्‍हे रात को भी काम करना पड़ेगा, हम सब करते हैं।’ एना रात को थक का चूर होकर रूम पर लौटती थी। कई बार बगैर कपड़े बदले या कुछ खाए सीधे बिस्‍तर पर गिरकर सो जाती थी। तब भी उसे और काम के मैसेज आते रहते थे। वो हर काम समय पर पूरा करने के लिए हद से ज्‍यादा काम कर रही थी। हमने उससे कई बार कहा कि काम छोड़ दे। मगर वो एक फाइटर थी, आखिर तक हार नहीं मानती थी। एना कभी अपने मैनेजर पर उंगली नहीं उठाती। मेरी बेटी जरूरत से ज्‍यादा शालीन थी। पर मैं खामोश नहीं रह सकती। नए लोगों पर इतना काम डालना, उनसे रात-दिन काम कराना, ये कतई सही नहीं है। मेरी बेटी ने अभी अपना घर छोड़ा था, अपने परिवार से दूर आई थी। जगह, भाषा, नौकरी, सब उसके लिए नए थे। वो एडजस्‍ट करने की पूरी कोशिश कर रही थी। मैनेजर ने उसके नए होने का पूरा फायदा उठाया और उसपर बेतरतीब काम लाद दिया। ये किसी मैनेजर या टीम की नहीं, पूरे सिस्‍टम की गड़बड़ी है। कभी न खत्‍म होने वाली डिमांड, ऊटपटांग डेडलाइंस और एक्‍सट्रीम प्रेशर ने एक लड़की की जान ले ली, जो जिंदगी में बहुत कुछ कर सकती थी। एना अभी जवान थी, अपना करियर शुरू ही किया था। उसके जैसे और बच्‍चों की तरह उसे भी बाउंड्री तय करना नहीं आता था। उसे नहीं पता था कि कब और कैसे ‘ना’ कहना है। वो खुद को साबित करना चाहती थी, इसके लिए खुद को पुश कर रही थी। और आज वो हमारे बीच ही नहीं है। काश मैं उसे बचा पाती। उसे बता पाती कि उसकी सेहत और खुशी ही हमारे किए सबसे जरूरी है। पर अब बहुत देर हो गई है। राजीव, मैं आपको ये इसलिए बता रही हूं, क्‍योंकि मुझे यकीन है कि EY अपने कर्मचारियों की मेंटल, फिजिकल हेल्‍थ को लेकर भी संजीदा है। एना का उदाहरण ये बताता है कि दफ्तरों में हद से ज्‍यादा काम करने का कल्‍चर कितना खतरनाक है। ये सिर्फ मेरी बेटी की बात नहीं है। ये हर नई उम्र के प्रोफेशनल्‍स की बात है जिनके सपने काम के बोझ के नीचे दब रहे हैं। मैंने EY के ह्यूमन राइट्स स्‍टेटमेंट को अच्‍छी तरह पढ़ा। इस पर आपके दस्‍तखत भी हैं। स्‍टेटमेंट में लिखी बातें और जो मेरी बेटी ने झेला उसमें जमीन आसमान का अंतर है। EY ऐसे खोखले उसूलों पर कैसे काम कर सकता है? एना की मौत EY के लिए एक सबक होनी चाहिए। आपको फौरन अपने वर्क कल्‍चर में सुधार करने और अपने काम करने वालों की सेहत पर ध्‍यान देने की जरूरत है। आपको ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहां लोग अपनी बात कहने में डरें नहीं। जहां मैनेजर वर्कलोड कम करने में मदद करें। जहां प्रोडक्टिविटी के लिए लोगों को जान दांव पर लगाकर काम न करना पड़े। EY में से कोई भी एना के फ्यूनरल (ईसाई अंतिम संस्‍कार) में शामिल नहीं हुआ। जिस कंपनी के लिए एना ने अपना सबकुछ दे दिया, वहां से किसी के भी फ्यूनरल तक में शामिल न होने से मैं बेहद दुखी हूं। एना ये डिजर्व नहीं करती थी। न ही कंपनी के बाकी लोग करते हैं जो ऐसी वर्किग कंडीशंस में काम कर रहे हैं। मेरे दिल में सिर्फ अपनी बेटी को खोने का दुख नहीं है। दुख इस बात का भी है कि जिन लोगों को उसे गाइडेंस और सपोर्ट देना था, उनमें से किसी ने भी संवेदना तक नहीं दिखाई। एना के फ्यूनरल के बाद मैंने उसके मैनेजर से बात करने की कोशिश की। मगर कोई जवाब नहीं मिला। कोई कंपनी जो ह्यूमन राइट्स और वैल्‍यूज की बात करती है, तो अपने ही एम्‍प्‍लॉई के आखिरी समय में मौजूद कैसे नहीं थी? एक CA बनने के लिए कड़ी मेहनत और लगन की जरूरत होती है। ये मेहनत सिर्फ बच्‍चों की नहीं उनके माता-पिता की भी होती है। मेरी बेटी की सालों की मेहनत महज 4 महीने में EY के संवेदनहीन रवैये की भेंट चढ़ गई। उम्‍मीद करती हूं कि इस आप इस चिट्ठी की गंभीरता को समझेंगे। मुझे नहीं पता कोई उस मां के दर्द को समझेगा जिसने अपनी जवान बेटी को दफनाया हो। वो बेटी जिसे अपनी बांहों में खिलाया, खेलते, रोते, बड़े होते देखा। मुझे उम्‍मीद है अब कोई बदलाव आएगा। ताकि कोई और परिवार वो दर्द न झेले जो मैंने झेला। मेरी एना अब हमारे बीच नहीं है, मगर उसकी कहानी जरूर कोई बदलाव ला सकती है। अनीता ऑ‍गस्टिन